पेशे-ख़िदमत है अश्विनी जेतली की इस हफ़्ते की ग़ज़ल
अश्विनी जेतली वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ एक बेहतरीन शायर भी हैं
लबों का गीत बन जा तू, तुझे मैं गुनगुना लूँगा
ग़मों में मुस्कुराऊँगा, मैं ग़म में भी मज़ा लूँगा
तेरी चाहत में हर हद से गुज़रना, शौक है मेरा
ख़ता तेरी भी हो अगर, मैं ख़ुद को ही सज़ा दूँगा
मोहब्बत में है कितना दम, ज़माने को दिखा दूँगा
मैं तेरे इक इशारे पर ही तख़्तों को हिला दूँगा
तू मेरा हमसफ़र तो बन, राह के कांटे चुन लूँगा
तुझे रस्ते में रिश्तों के अर्थ समझा दूँगा
नज़र के सामने रहना, कभी तुम दूर मत जाना
अगर तू इतना कर देगा, मैं गंगा ही नहा लूँगा
शिकायतें तो मुझे भी हैं, सिस्टम से मगर यारा
अभी हूँ इश्क में मशगूल, मशालें फिर उठा लूँगा