लघुकथा/सर्वोत्तम चाय
कमलेश भारतीय
अजी , चाय तो चाय है । पानी डालो । पत्ती उबालो और पी जाओ । यह विज्ञापन जब जब आता है , तब तब उसे एक प्याली चाय की याद चली आती है । उन दिनों वह दो काम एक साथ कर रहा था-पहला प्राईवेट तौर पर एम ए की तैयारी, दूसरा एक लड़की से प्रेम । उनका प्रेम मुखर नहीं था । कुछ कुछ महसूस करने तक था । रोज शाम वह उसके घर जाता था और एकाध झलक या बातचीत कर लौट आता था ।आखिर परीक्षा की घडी आ गई । प्रेम व पढ़ाई-दोनों की , एक साथ । बिना उसे कहे युवा मन ने यह ठान लिया था कि वह चाय पिलायेगी तो परीक्षा देने जाऊंगा ।
क्या प्रेम इसी को कहते हैं ? बिना कहे मन की बात एक से दूसरे तक अपने-आप पहुंच जाये? उस शाम जब वह उस लड़की के घर गया तब उसने चाय का प्रस्ताव रखा । और वह रसोई में चाय बनाने चली गई । चाय बनाने में अनुमान से अधिक समय लगा । उसने चाय की प्याली थमाते कहा -स्टोव में तेल खत्म हो गया था ।घर में ईंधन था नहीं । यकीन करो मैंने रद्दी अखबार इकट्ठे कर यह चाय बनाई है , बडी मुश्किल से ।इसमें शायद धुआं व राख भी शामिल हैं , पर मैं जानती थी कि यदि तुम्हें चाय नहीं पिलाई तो तुम परीक्षा देने नहीं जाओगे ।
युवक ने कहा , बस, बस,,, यह मेरे जीवन की सर्वोत्तम चाय है और वह गट गट चाय की पूरी प्याली पी गया ।
सच , चाय , सिर्फ, चाय नहीं होती ।
फोटो :श्रेया कुमार