जंतर मंतर के बाद अलग राह? 

जंतर मंतर के बाद अलग राह? 

-*कमलेश भारतीय
क्या जंतर मंतर पर यौन शोषण के विरुद्ध धरने के बाद से साक्षी मलिक व विनेश फौगाट की राहें अलग हो गयी हैं या राहें अलग हो चुकी थीं ? यदि साक्षी मलिक की 'विटनेस' किताब की मानें तो विनेश फौगाट और बजरंग पूनिया के मन में लालच भर गया था और बिना ट्रायल के एशियाड में चयन, यही संकेत देता है । हालांकि विनेश इसमें भाग भी नहीं ले पाई थी लेकिन दरार तो पड़ ही गयी थी । 
इस पर अब विधायक व पूर्व‌ में पहलवान विनेश फौगाट ने पलटवार करते कहा कि अपनी पहलवान बहनों के लिए बोलना या उनके हक में आवाज़ उठाना लालच है तो उसे मैं बुरा नहीं मानती ! यही नहीं देश के लिए ओलम्पिक पदक लाने का लालच आज भी मेरे मन में है और  मरते दम तक यह लालच मन में रहेगा । हालांकि साक्षी ने यह तो माना कि यौन शोषण के खिलाफ सबने एकजुट  होकर संघर्ष किया । विनेश फौगाट ने भी कहा कि यह लड़ाई अभी जारी है और तब तक जारी रहेगी जब तक दोषी को सज़ा नहीं मिल जाती । अच्छी बात तो यह है कि हमने लड़ाई लड़ी और देश का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहीं । विनेश ने दोहराया कि महिलाओं के लिए, अपनी बहनों के लिए बोलने का लालच मैंने किया और करती रहूंगी । 
दूसरी ओर विनेश फौगाट की चचेरी बहन गीता फौगाट का कहना है कि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं । गीता ने कहा कि बबिता ने राजनीति या पहलवानी में जो मुकाम हासिल किया, वह अपने बल पर । रही बात अध्यक्ष बनने की तो सब जानते हैं कि अध्यक्ष बनने का लालच किसके अंदर था । यानी राजनीति ने साक्षी, विनेश और गीता व बबिता की राहें अलग अलग कर दी हैं । विधानसभा चुनाव में जुलाना से विनेश फौगाट विजयी रही कांग्रेस की टिकट पर और बजरंग पूनिया ने भी कांग्रेस किसान प्रकोष्ठ के कार्यकारी अध्यक्ष का कार्यभार संभाल लिया । दोनों ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी जबकि बबिता फौगाट पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा टिकट पर चरखी दादरी से लड़ी थी लेकिन हार गयी और इस बार तो टिकट भी नहीं दी भाजपा ने । कोच महावीर फौगाट भी विनेश के राजनीति में आने से खुश नहीं थे और चाहते थे कि विनेश फौगाट स्वर्ण पदक जीतकर लाने का सपना पूरा करे। अब सबकी राहें अलग अलग हैं और विटनेस से पता नहीं कितनी राहें और अलग हो जायें । तभी तो निदा फ़ाज़ली कहते हैं : 
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो, गौर से देखना ! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी