एक प्यारा सा खत कुलदीप बिश्नोई के नाम

एक प्यारा सा खत कुलदीप बिश्नोई के नाम
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
मैं वरिष्ठ कांग्रेस नेता कैप्टन अजय यादव की तरह यह तो नहीं कह सकता कि जब कुलदीप निक्कर पहन कर घूमते थे , तब से मैं राजनीति करता हूं । हां , यह जरूर कह सकता हूं कि हिसार में अब तक बिताये पच्चीस वर्षो से मैं चौ भजन लाल और कुलदीप बिश्नोई ही नहीं , रेणुका बिश्नोई को भी जानता हूं । जसमां बिश्नोई को भी चुनाव लड़ते देखा है । कहूं कि रेणुका बिश्नोई की पहली बार इंटरव्यू मैंने ही की थी और चौ भजन लाल दौड़े दौड़े अंदर आए थे और कहा था कि मेरी बहू की पहली इंटरव्यू है , भाई , जरा अच्छे से देना ।  मेरी बेटी रश्मि की शादी इनके बहुत करीबी गुरमेश बिश्नोई के भांजे से हुई तो मेरा नाम लेने की बजाय चौ भजन लाल मुझे 'ओ म्हारो रिश्तेदार आ ग्यो' कह कर बुलाते और सम्मान देते । बेटी की ससुराल सेक्टर पंद्रह में ही थी तो जब उसे यूनिवर्सिटी छोड़ने जाता तब तक चौ भजन लाल अपने आसन पर जम चुके होते और मैं मोटरसाइकिल रोककर नमस्कार करने और कुशल मंगल पूछने जाता ।  सुबह सबेरे ही अपने हरे हरे लाॅन में टहलने के बाद चौ भजनलाल अखबार पढ़ने बैठ जाते थे । उसके बाद तो आने जाने वालों का तांता लग जाता । चौ भजनलाल सबके बीच एक बात कहते थे कि मेरो राज आ ग्यो न तो इस रिश्तेदार पत्रकार को जरूर कुछ बनाऊँगा । यह बात पंडित रामजी लाल भी मुझे बताते पर मैं तो चौ भजनलाल की वह जादूगरी देख रहा था कि कैसे चश्मा साफ करने के बहाने उन्होंने आदमपुर के वोट अजय चौटाला की ओर ट्रांस्फर कर दिये थे । चश्मा साफ करता इतना ही पूछा था बालसमंद की रैली में कि आपणो चुनाव निशान तो पता है न? मुझे किसी पद की तलाश में नहीं था । पद फिर भी मुझे मिल गया चौ साहब की दुआओं से ।

अब आते हैं कुलदीप बिश्नोई की ओर । जब पहली बार मंडी आदमपुर यानी अपने बनाये राजनीतिक किले से कुलदीप बिश्नोई को चुनाव मैदान में उतारा तो अनेक बार मैं भी पत्रकार के रूप में साथ साथ रहा । जैसे कोई अपने बच्चे को उंगली पकड़कर ले जा रहा हो । ऐसे प्यार से राजनीति में लाए । जीतना ही था जीते भी कुलदीप । फिर आया वह दिन जब कांग्रेस को भारी बहुमत मिला लेकिन चौ भजनलाल को नेतृत्व नहीं मिला यानी मुख्यमंत्री नहीं बनाये गये । ऐसे में विरोध स्वरूप मंडी आदमपुर में काफी हंगामा भी हुआ लेकिन बात खत्म और चौ भजनलाल बुरी तरह आहत और इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाये । बेशक काग्रेस ने भरपाई के लिए चंद्रमोहन बिश्नोई को उपमुख्यमंत्री बना दिया । चौ भजनलाल को भी राज्यपाल बनाये जाने की ऑफर दी और कुलदीप को केंद्र में राज्यमंत्री बनाये जाने की चर्चा थी । चौ भजनलाल ने सक्रिय राजनीति न छोड़ने की बात कही और राज्यपाल बनना स्वीकार नहीं किया और न ही कुलदीप ने राज्यमंत्री बनने की पेशकश स्वीकार की । चंद्रमोहन ने फिजां की प्रेम कहानी से अपना उपमुख्यमंत्री पद भी खो दिया । 
आखिर कुलदीप के अंदर के विरोध ने जोर मारा और हरियाणा जनहित कांग्रेस यानी हजकां बना ली अलग से पार्टी । चौ भजनलाल इस्तीफा देकर फिर मंडी आदमपुर से चुनाव लड़े और जीते । 

गैर जाट की राजनीति का नारा देकर हजकां सामने आई । राकेश काम्बोज ने कांग्रेस विधायक होते हुए भी कुलदीप बिश्नोई का साथ दिया । अपने विधायक पद से भी गये राकेश  । अब वह फिर से काग्रेस में है । खैर , बड़ी बात कि प्रदेश के बड़े बड़े नेता कुलदीप के साथ आ खड़े हुए । पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धर्मपाल मलिक ही आये । वे अब वापस कांग्रेस में हैं । लगता था कि मुख्यमंत्री पद का सपना सच हो जायेगा । हजकां की रैलियों में तुम अपने कुर्बान किये पद गिनाते थे । लेकिन कुलदीप की वरिष्ठ नेताओं को द्वार पर बिठाये रखने की आदत ने कहीं का नहीं रहने दिया और धीरे धीरे ये नेता हजकां से निराश होकर चले गये । छह विधायक जीते थे और चाहते तो कुलदीप कांग्रेस को समर्थन देकर कुछ सुधार कर सकते थे लेकिन समर्थन नहीं दिया और विनोद भ्याणा 

जैसे विधायक खुद ही कांग्रेस में चले गये । सरकार बन गयी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की । अकेले कुलदीप और रेणुका ही रह गये । केस चलता रहा और सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया । यहां भी परिपक्वता नहीं दिखाई । यह मौका भी गंवाया । 

फिर राजनीतिक गठबंधन किये । कभी भाजपा के साथ तो कभी बसपा के साथ । भाजपा में तो सुषमा स्वराज संभालती रहीं । बसपा का गठबंधन तो चुनाव से पहले ही खत्म हो गया । कुलदीप अकेले के अकेले रह गये । आखिरकार वापस कांग्रेस में आए यानी अपने घर वापसी । इसके बावजूद वह मुख्यमंत्री बनने का सपना आता रहा और हर राजनेता को आना भी चाहिये । इसके बावजूद वे मिल कर या कहें कि घुल मिल कर नहीं चलते । यह बहुत बड़ी कमी है इनके व्यक्तित्व में । किसी के तो हो जाओ या किसी को तो अपना बना लो । पहली बार इनके मुख से रणदीप सुरजेवाला की तारीफ सुन रहा हूं ।यह आदत बना लेनी चाहिए । अगर अच्छा नेता बनना है तो ।

कुलदीप ने अब फिर विद्रोह की मुद्रा बना ली है क्योंकि उन्हें प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनाया गया । वे नाराज चल रहे हैं राहुल गांधी और सोनिया गांधी से । इसलिए राज्यसभा चुनाव में अपना रोष अंतरात्मा की आवाज कह कर और इसका आह्वान कर निकालने की बात कर रहे हैं । यही मौका है काग्रेस में रहने का जब संकट है । जब कांग्रेस को अपनी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त करनी है । जब कांग्रेस कुलदीप को मना भी रही है और अच्छे पद पर बिठाना भी चाहती है और ऐसे में कुलदीप मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिल रहे हैं तो कभी नितिन गडकरी की तारीफ कर रहे हैं । पहले भी गडकरी ही आये थे हिसार चौ भजनलाल के निधन पर शोक जताने और अब फिर वही पुरानी पहचान निकाल लाये हो । 

कुलदीप । मैं राजनीति नहीं करता । पत्रकार हूं और आपके परिवार के निकट भी रहा । आपके राजनीति में ऊपर उठने से खुशी होती है और ग्राफ नीचे जाने से दुख होता है । पता नहीं क्यों , एक पार्टी में टिक कर क्यों नहीं रहते ? कभी आप जगन रेड्डी भी बनना चाहते थे । नहीं बन पाये । संगठन के साथ कभी नहीं चले । जब गुलाम नबी आजाद बस लेकर निकले तो भी हिसार से नहीं बैठे थे । कहीं और जाकर सवार हुए थे । 

कुलदीप तुम अपनी अंतरात्मा से सवाल पूछो कि जगन रेड्डी क्यों नही बन पाये ? सवाल पूछो कि हजकां को सफल क्यों नहीं कर पाये ? सवाल पूछो अपनी अंतरात्मा से कि चौ भजनलाल की तरह चतुर चाणक्य क्यों नहीं बन पाये ? अपनी अंतरात्मा से पूछो कि क्या कमी है मेरे में कि बड़ा नेता बनते बनते रह जाता हूं ? 

कुलदीप कांग्रेस को मजा चखाने का समय नहीं है । कांग्रेस का साथ देने का समय है । बार बार राजनीति बदलने का समय नहीं है । एक जगह एक पार्टी में टिक कर राजनीति करने का समय है । कल भाजपा में भी वह न मिला जो चाहते हो , फिर कहां जाओगे ? बार बार कहां जाओगे ? कितनी बार दलबदल करोगे ?

कई बार मुलाकात हुई और तुमने कहा कि आपके साथ एक दिन बैठ कर आराम से बात करूंगा लेकिन वह दिन और वह समय कभी नहीं आया । यदि चौ भजनलाल की राजनीति पर चलते तो भव्य की जमानत जब्त होती क्या? वह आदमपुर में ही बहुमत खो देता ? सोचो तो कुलदीप । लोगों के बीच रहो । दुख में भी , सुख में भी । यही चौ भजनलाल का मंत्र था । तुमने चाहे कांग्रेस छुड़वा दी थी लेकिन इंदिरा गांधी की तस्वीर ड्राइंग रूम से हटाई न थी और कहते थे यही मेरी नेता है । अब बताओ प्यार करो तो इतना करो पार्टी से और अपनी नेता से । सोच लो । अपनी अंतरात्मा से अच्छी तरह से पूछ लो और झांक लो अपने अंदर । क्या चाहते हो और क्या पाओगे ? कैसे पाओगे ? कहां पाओगे ? वोट न देकर भी हासिल न पाया तो कहां जाओगे ? 
अंतरात्मा दूसरों की नहीं , अपनी जगाओ । मेरे से मिलने का समय हो तो बताना । हिसार ही रहता हूं । वैसे भी पत्रकारों से मिल कर कभी जायजा ले लिया करो कि दुनिया कैसी हो गयी है और मैं कहां रह गया हूं ? एक बार अपनी अंतरात्मा को अच्छे से टटोलना और दिल की सुनना । सिर्फ जमा माइनस ही न करते रहो ।

कल चौ भजनलाल को मैंने भी याद किया और नमन् किया । चौधरी भजनलाल की विरासत ध्यान से संभालो ।

मेरी ओर से शुभाशीष ।

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।