स्कूल जो बच्चों की ज़िंदगी बदल दे
-*कमलेश भारतीय
एक आइडिया जो आपकी ज़िंदगी बदल दे और एक स्कूल जो बच्चों की ज़िंदगी बदल दे । ऐसे एक स्कूल की चर्चा आज उत्तराखण्ड के बागेश्वर जिले के कपकोट कस्बे की पढ़ने जानने को मिली है । इसके सरकारी स्कूल में सन् 2016 में मात्र 26 बच्चे थे तो आज 300 बच्चे पढ़ते हैं और इस स्कूल के बच्चे सैनिक स्कूल, नवोदय स्कूल और देहरादून के अच्छे स्कूलों के लिए आगे की पढ़ाई के लिए चुने जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इस प्राइमरी स्कूल में एडमिशन न होने पर प्राइवेट स्कूल में मां बाप मजबूरी में दाखिला करवाते हैं बच्चों का यानी पहली पसंद सरकारी स्कूल बन गया है, यह खुशी की बात है । इसी तरह का स्कूल थ्री इडियट्स फिल्म में दिखाया गया था जो सचमुच है और ऐसी ही जीवन की शिक्षा दे रहा है दूरदराज पर्वतीय क्षेत्र में ।
मैं अपने शिक्षक के दिनों में लौट रहा हूं। सन् 1979 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने गवर्नमेंट आदर्श सीनियर स्कूल ऐसे ही सपने को लेकर खोले थे कि ग्रामीण बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा सरकारी फीस पर उपलब्ध करवा कर कम्पीटीशन के लिए तैयार किया जा सके । वे खुद शिक्षकों की इंटरव्यू में बैठे और उस जमाने में बिना पर्ची खर्ची के शिक्षकों का चयन किया, जिनमें खुशकिस्मती से मैं खटकड़ कलां के स्कूल के लिए हिंदी प्राध्यापक चुना गया । यहां आम स्कूल से दो घंटे ज्यादा समय था, जिसका आदर्श स्कूल भत्ता अलग से दिया जाता था । इन दो घंटों में एक घंटे में आधा स्कूल खेल के मैदान में तो आधा क्लासरूम में होमवर्क करता था क्योंकि ग्रामीण बच्चों के मां बाप अधिकांश कम पढ़े लिखे थे और होमवर्क में कोई मदद नहीं कर सकते थे। दूसरे घंटे में पहले वाले बच्चे क्लासरूम में और क्लासरूम वाले बच्चे खेल के मैदान में होते थे। हम बच्चों के लिए योगा, फोटोग्राफी, साहित्यिक पत्रिका निकालने जैसे क्लब बनाये हुए थे और हर माह हमारे बच्चे वाॅल मैगज़ीन बनाते थे । यही नहीं इन बच्चों को देहरादून, पांवटा साहिब व चंडीगढ़ जैसे स्थानों पर एक बस में भ्रमण के लिए ले जाते थे । हमारे अनेक बच्चे खिलाड़ी बने, अधिकारी बने और कभी कभी मुझ जैसे भूले बिसरे प्रिंसिपल को देश विदेश में बैठे याद कर लेते हैं । फेसबुक पर खोजकर लिखते हैं -सर! मैं आपका छात्र! एक छात्र अनिल जुनेजा ने हद कर दी जब अमेरिका से आया तो नवांशहर मिलने के लिए आमंत्रित किया और मैं गया भी सपरिवार और वह होटल में सबके सामने दंडवत हो गया कि सर! आपने हमें जीवन की राह दिखाई । वे आधा दर्जन आदर्श स्कूल आज भी चल रहे हैं । कभी कभी मैं जब घर जाता हूं तो खटकड़ कलां के स्कूल में भी जाता हूँ । मुझे उन दिनों बहुत से बड़े प्राइवेट स्कूलों से ऑफर मिले प्रिंसिपल बनने का लेकिन मैंने कहा कि इन गरीब और ग्रामीण बच्चो़ं को पढ़ाकर जो खुशी मिल रही है, वह आपके पैकेज में कहां मिलेगी? हमारा आदर्श स्कूल जिला जालंधर का श्रेष्ठ स्कूल बना और पुरस्कार मिला, यह मेरी या सारे स्टाफ की उपलब्धि रही ।
मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि हम चाहें तो सरकारी स्कूल को भी प्राइवेट से ऊपर बना सकते हैं और उत्तराखंड का यह स्कूल और इसके शिक्षक यही साबित कर रहे हैं । फिर किसी सरकारी स्कूल को सरकार बंद करने का फैसला नहीं कर सकती । स्कूलों के बंद होने का अवसर ही न बने, इतना अच्छा चलाओ । वैसे हिसार में उमेश रतन शर्मा, मधुर गुप्ता, मीनाक्षी तायल जैसे लोग हिसार व आसपास निर्धन बच्चों के लिए स्कूल चलाने की मशाल जलाये हुए हैं और इस मशाल को हम आगे बढ़ायें और शिक्षा का अधिकार दिलायें ।
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लोग आते गये कारवां बनता गया!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।