आज मंटो के स्याह हाशिए
रियायत
मेरी आंखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो
- चलो , इसी की बात मान लो । कपड़े उतार कर हांक दो एक तरफ ।
उलाहना
-देखो यार , तुमने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पैट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली ।
आराम की जरूरत
-मरे नहीं -देखो , अभी जान बाकी है ।
- रहने दो यार , मैं थक गया हूं ।
मंटो के ये स्याह हाशिए विभाजन के समय हुई मारकाट के जीवंत उदाहरण तो हैं ही लघुकथा के अनुपम उदाहरण भी क्योंकि ये सिखाते हैं कि कितने कम शब्दों में कितनी मारक बात कही जा सकती हैंं । संयोगवश मंटो का गांव हमारे नवांशहर के निकट ही था ।
-चयन : कमलेश भारतीय