दिल्ली में `आप' की जीत बदलेगी देश की राजनीति
निकट भविष्य में पंजाब की राजनीति पर असर पड़ने की प्रबल संभावना
दर्शन सिंह शंकर द्वारा
अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने हालिया दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी तीसरी बड़ी और ऐतिहासिक जीत हासिल की है। 70 सीटों वाली विधानसभा में, उसके 62 उम्मीदवार विजयी हुए, जबकि भाजपा अपनी सारी ताकत हारने के बावजूद केवल 8 पर पहुंच सकी। 'आप' से पहले दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 वर्षों तक चलने वाली कांग्रेस फिर से सिफ़र के आंकड़े को नहीं तोड़ पाई है और उसके 65 उम्मीदवार जमानत हासिल करने में विफल रहे हैं। `आप' को चुनाव में 53.7%, भाजपा को 38.5% और कांग्रेस को 4.3% वोट मिले। 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, भाजपा 56%, कांग्रेस 22% और `आप' तीसरे स्थान पर थी।
`आप' ने एक बार फिर पांच साल में शानदार प्रदर्शन की बदौलत 2015 के चुनावों में मिली 67 सीटों के करीब पहुंचकर एक नया इतिहास रचा है।
इन चुनावों के दौरान, केंद्र में शासन करने वाली भाजपा ने ध्रुवीकरण की सीमाओं को पार किया और समाज में तानाशाही सोच के साथ नफरत फैलाते हुए, अत्यंत नकारात्मक राजनीतिक पहुंच का प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, सभी सांसदों और सहयोगी दलों के नेताओं ने जनता के मुद्दों को किनारे कर दिया था। उन्होंने केजरीवाल को पूरे चुनाव अभियान को दौरान आतंकवादी और पाकिस्तानी समर्थित सिद्ध करने पर ही केंद्रित किया। भाजपा के नेता, मुख्य रूप से बहुचर्चित नागरिक संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को ठीक कहना भी कहीं ना कहीं लोगों द्वारा अच्छा नहीं समझा गया। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने अपने भाषणों में शाहीन बाग़ आंदोलनकारी महिलाओं को बेइज़्ज़त करने वाली भाषा का इस्तेमाल किया, उससे देश के लोगों के दिलों को गहरी चोट पहुँची है। पहले से ही, जनता भाजपा के आर्थिक कुप्रबंधन और बढ़ रही बेरोजगारी से नाराज थी। पिछले दिनों में दिल्ली पुलिस द्वारा जाएज़ मांगों के लिए प्रदर्शन करते विद्यार्थियों पर किये बेहद अत्याचारों के कारण भी लोगों के गुस्से को भाजपा नेता समझ नहीं सके। इस सबका गुस्सा दिल्ली के वोटरों ने भाजपा को नकार कर निकाला।
जहां तक कांग्रेस के प्रदर्शन का सवाल है, वह पूरे चुनाव प्रचार के दौरान गंभीर नहीं दिखी और न ही इसने समय रहते बिगड़े अक्स को सुधारने के लिए कोई प्रयास किया। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही केजरीवाल के खिलाफ मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं कर सके।इस समय केजरीवाल की पार्टी की बड़ी जीत को देश की राजनीति को नया मोड़ देने का संकेत समझा जा सकता है। चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि जनता ने भाजपा द्वारा धर्म व नफरत की राजनीति को पूरी तरह से नकार कर केजरीवाल के विकास और सुशासन नीति पर मुहर लगा दी है।
पूरा चुनाव अभियान भाजपा ने धर्म के आधार पर वोटरों को बांटने और शाहीन बाग में लम्बे समय से चल रहे नागरिक कानून संशोधन, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ महिलाओं के प्रदर्शन के विरुद्ध ज़हर उगलने पर केंद्रित की, जिसे दिल्ली की जनता ने सिरे से नकार दिया।
दूसरी ओर, केजरीवाल ने अपनी सरकार द्वारा शिक्षा स्वास्थ्य, मुफ्त पानी, सस्ती बिजली, विकास और कई अन्य सार्वजनिक सुविधाएं, विकास और सुशासन को आगे रखते हुए जनता से वोट मांगे। यह देश के इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी मुख्यमंत्री ने "यदि मैंने अच्छा कार्य किया है तो वोट दो" कह कर वोट मांगने की हिम्मत की और जनता ने भी ठोक बजा कर उस पर मुहर लगाई हो। इस जीत पर विरोधी पार्टियों के सभी प्रमुख नेताओं ने केजरीवाल को बधाई देते हुए सकारात्मक, धर्मनिरपेक्ष और विकासात्मक राजनीति को मजबूती मिलने की आशा व्यक्त की है। इन चुनाव परिणामों ने दो बातें स्पष्ट कर दीं हैं , पहली यह है कि देश में धर्म और नफरत की राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है और दूसरी यह कि अब जनता विकास और शानदार शासन के मुद्दे पर मतदान करने के रास्ते पर चल पड़ी है जोकि पूरी तरह से गंदी हो चुकी राजनीति को सही दिशा की तरफ मोड़ने का संकेत दे रही है। निकट भविष्य में इसका असर पंजाब की राजनीति पर अवश्य पड़ने की प्रबल संभावना है।
*लेखक दर्शन सिंह शंकर सेवानिवृत्त जिला जनसंपर्क अधिकारी हैं।