अदृश्य निराकार / नरेन्द्र मोहन
`दोनों में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है’
जानता हूँ, ‘मगर लोथल और गुंबद
खालीपन के तसुव्वर से क़रीब-क़रीब
एक जैसा जकड़े रखते हैं मुझे देर तक’
गुंबद में मेरी आवाज़
मुझ तक आती है
निचोड़ती मुझे खाली करती जाती
जबकि समुद्री तूफान के प्रकोप में
बाढ़ों की सर्वग्रासी लपेट में
`लोथल’ मुझे खाली करता गया है
झकझोरता गया है
और हज़ारों-लाखों लोग पानी की क़ब्र में दफ़न होते गए
अपनों की त्रासद स्मृतियों के साथ बेआवाज़ मरते गए
तहज़ीब किस चिड़िया का नाम है
पूछने लगे लोग
नए-पुराने मूल्यों की मंजूषाएँ
गिरने लगीं
तेज़ अँधड़ में
खोखली हो गयी हों जैसे
मर्यादाएँ और प्रतिबद्धताएँ
कई बार महसूस हुआ है
लोथल हो या कोई अदृश्य निराकार विषाणु
अपनी ख़ामोश ध्वनियों से
इस घर से उस घर, विश्व-भर में
दस्तक देते रहे हैं पहले भी
जैसे आज कोरोना
अपने अगोचर खूनी पंजों से
और मैं इतिहास के आखि़री पन्ने को
मुट्ठी में भींचे
असहाय खड़ा हूँ!
-नरेन्द्र मोहन
लोथल: हड़प्पाकालीन पुरातात्विक स्थल। शाब्दिक अर्थ ‘मृतकों का टीला’। यह नगर तीन-तीन बार तहस-नहस हुआ और उतनी ही बार पुनः बनाया गया। 1700 ई॰पू॰ के आसपास अंततः लोथल का विनाश हो गया।