समाचार विश्लेषण/भारत जोड़ो यात्रा की पीड़ा?
-*कमलेश भारतीय
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कन्याकुमारी से शुरू हुई और इसकी पीड़ा भारतीय जनता पार्टी में लगातार जारी है । शुरू में ही एक्ट्रेस से नेत्री बनीं स्मृति ईरानी ने बिना कुछ सोचे समझे आरोप लगाया कि राहुल गांधी कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद को मस्तक नवाना भूल गये ! इस पर काग्रेस ने वीडियो जारी किया जिसमें राहुल गांधी विवेकानंद की प्रतिमा की परिक्रमा करते दिखाई दिये । इसके बाद स्मृति ईरानी की पीड़ा कुछ शांत हुई । इसके बावजूद भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ ने यह जारी किया कि सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की तरह दाढ़ी बढ़ा लेने से कोई मोदी नहीं बन जाता लेकिन राहुल गांधी को मिल रहे समर्थन से यह दुष्प्रचार भी शांत हो गया । फिर राहुल के साथ जब पंजाबी अभिनेत्री ने हाथ पकड़कर यात्रा की तो उसको भी कहीं का कहीं जोड़ने की कोशिश बेकार गयी । कभी राहुल की महंगी टी शर्ट का शाॅट दिखाकर मज़ाक उड़ाया गया । जनता ने इसे भी बहुत सहजता से लिया ।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव में सुंदरनगर की एक जनसभा में भारत जोड़ो यात्रा की खिल्ली उड़ाते कहा कि यह यात्रा सत्ता से बेदखल लोगों की सत्ता में वापसी के लिए यात्रा के सिवाय कुछ नहीं है ! उन्होंने जनता को ऐसी पार्टी और लोगों को औकात दिखा देने का आह्वान भी किया ! उन्होंने मेधा पाटेकर का नाम लिये बिना कहा कि इस यात्रा में वः लोग भी चल रहे हैं जिन्होंने कानूनी याचिकाओं के माध्यम से नर्मदा बांध परियोजना को रोकने का काम किया । चालीस वर्ष तक गुजरात को प्यासा रखा । जनता उन्हें भी सबक सिखायेगी । उल्लेखनीय है कि मेधा पाटकर हाल ही में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुई थीं । मोदी ने फिर त॔ज कसा कि राहुल को मूंगफली और बिनौले की फसलों का ज्ञान तक नहीं ! गुजरात में बने नमक को खाकर भी गुजरात को गाली देते हैं !
प्रधानमंत्री मोदी की इन बातों से लगता है कि विपक्ष को कोई लोकतांत्रिक अधिकार नहीं कि वह कोई कार्यक्रम चलाये ! यदि ऐसा ही होता तो क्या भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा निकाल पाते ? क्या यह भी सत्ता पाने के लिए कई गयी यात्रा नहीं थी ? क्या उसी रथयात्रा के आधार पर भाजपा की बढ़ी लोकप्रियता के बल पर आज प्रधानमंत्री मोदी अपने राजनीतिक गुरु की मेहनत का फल नहीं खा रहे ? अब उन्हीं लालकृष्ण आडवाणी को मार्गदर्शक मंडल में एक तरीके से राजनीतिक स॔न्यास नहीं दे दिया गया ? यात्रा से परेशानी क्यों ? पीड़ा कैसी ? यह तो विपक्ष का अधिकार है और इसकी आलोचना क्यों ? खुद प्रधानमंत्री सारे गुजरात में सत्ता के लिये रैलियां कर यात्रा ही तो कर रहे हैं । क्या ये सत्ता के लिये नहीं है या कोई तीर्थ यात्रा पर निकले हैं ? आप करें तो सब सही और दूसरा करे तो सब गलत ?
राहुल गांधी के ज्ञान की कितनी विवेचना , कितने चुनावों तक भुनाते रहेंगे आप ? शुक्र है कि राहुल इतना ज्ञानवान नहीं हुआ कि कैसे सरकारें गिराई जाती हैं और कैसे थोक में दलबदल करवाया जाता है । नहीं तो बड़ी मुशाकिल होगी ! नमक के लिए सत्याग्रह महात्मा गांधी ने किया था और यात्रा भी तो क्या वह भी गलत थी ? हर चुनावी बहस को नया मोड़ देते हो । जैसे उत्तरप्रदेश की चुनाव में शमशान और कब्रिस्तान की बात चलते चलते गुजरात के गधों तक पहुंच गयी थी । आप देश के प्रधानमंत्री हैं और मर्यादा की आपसे उम्मीद है । इस तरह के आरोप कोई और नेता लगाये तो कोई बात नहीं लेकिन आप अपने पद के गौरव और मर्यादा में रहकर संयमित प्रचार कीजिए । यात्राओं की चिंता छोड़िये ! यात्राओं से कैसी पीड़ा ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।