ऐ जाते हुए लम्हो, जरा ठहरो
-कमलेश भारतीय
साल का यह आखरी दिन हैं। कल से नया साल आ रहा है। इस पर हमेशा की तरह ओशो का कथन याद आ रहा है कि न जाने हमने कितने वर्ष इसी सोच में बिता दिए कि नया वर्ष नया क्या लायेगा! हम खुद ही हर नये वर्ष को पुराना बनाने में देर नहीं लगाते क्योंकि कोई भी खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकने वाली! न जाने हम कितने नये वर्षों को पुराना बना चुके हैं और कितने और वर्षों को इसी तरह पुराने बनाते जायेंगे!
सच ही तो कहा है ओशो ने! हम वर्ष के पहले दिन कितने ही संकल्प लेते हैं और जनवरी माह में ही हवा में उड़ा देते हैं। कौन सा संकल्प, किसका संकल्प और कैसा संकल्प! जैसे हमने कोई संकल्प लिया ही न हो! हम तो इस तरह से संकल्प लेते हैं :
कल हमने पीने से तौबा की
आज कल न पीने की खुशी में
दो बार पी!
ऐसी दुर्दशा होती है हमारे संकल्पों की! इससे अच्छी बात तो यह हो कि हम कोई संकल्प लें ही न! मुक्त पंछियों की तरह जीवन जियें! कभी मैंने ऐसे ही भाव से कुछ पंक्तियां लिखी थीं :
नये वर्ष पर सूरज
पिछले वर्षों की तरह ही
धुंध में छिपा निकलेगा
और मुर्गा वैसे ही बांग देगा
जैसे घोषणा कर रहा हो
उठो नया सवेरा आ गया!
श्रमिक लोग वैसे ही
रोज़ी रोटी के लिए
काम की खोज में निकलेंगे !
श्रमिक को नये वर्ष से
क्या काम!
फिर भी नया वर्ष है
मुझे कोई काम दिला दे राम!
छोटे छोटे बच्चे वैसे ही
खिलखिलायेंगे
और उसी तरह कभी रूठेंगे
तो कभी मान जायेंगे!
कुछ बदनसीब बच्चे
आपके पीछे हाथ फैलायेंगे
कुछ दे दो बाबा!
इनके लिए नया साल
किस चिड़िया का नाम है?
वे नहीं जानते!
बाकी आज की रात बारह बजे तक खूब नाचेंगे और बोतलें खुलती चली जायेंगी। फिर औंधे मुंह बिस्तर पर गिर जायेंगे और सुबह से ही फोन पर बधाई ऐसी शुरु होगी जो पूरी जनवरी तक चलती रहेगी!
बस फरवरी से नया वर्ष अपनी चमक खो देगा!
यदि मैं हिसार की ओर नज़र दौड़ाऊँ तो यह साल धरनों में ही निकल गया! एक तरफ हिसार दूरदर्शन के यहाँ से चंडीगढ़ ले जाये जाने का धरना, दूसरी तरफ तलवंडी राणा का धरना और तीसरी तरफ मिनी सेक्रेटियट के सामने किसानों का धरना! ये धरने चल तो रहे हैं लेकिन इनके कोई ठोस समाधान नहीं हुए! वादे जरूर होते रहे !
क्या हुआ तेरा वादा!
वो कसम, वो इरादा!
यह भी कि
बंदा मैं सीधा साधा
वादे तेरे मारा गया!
असल में दूरदर्शन से सारी मशीनरी ले जाई जा चुकी है तो अब धरना किसलिए? हिसार एयरपोर्ट अपनी रफ्तार से बनेगा, फिर हाय तौबा कब तक? हां, विधानसभा में जरूर ये मामले उठते रहे! चाचा भतीजे की नोंक झोंक भी विधानसभा में सुनने क़ो मिली!
हरियाणा में राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा भी चर्चा में रही तो इनेलो के नेता अभय चौटाला की परिवर्तन यात्रा ने भी ध्यान आकर्षित किया तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का विपक्ष आपके समक्ष भी खूब चला! साल के अंत में भाजपा ने भी विकसित भारत और स्वदेशी मेलों के माध्यम से जनता में पैठ बनाने में कसर नहीं छोड़ी! जजपा अपनी चाबी को ठीक ठाक रखने की कोशिश में दिख रही है! सभी दल लोकसभा और विधानसभा के चुनावों को देखते दिन रात एक किये हुए हैं! साल के आखिर में पूर्व मंत्री निर्मल सिंह और उनकी बेटी चित्रा सरवारा ने आप को अलविदा कह दी। बाकी यह सवाल अभी चर्चा में है कि भाजपा जजपा गठबधंन रहेगा या नहीं? यह यक्ष प्रश्न है!
बाकी सबको नये साल की राम राम
हम तो चलते अपने गाँव!
कबीर के शब्दों में
कबीरा खड़ा बाजार में
मांगे सबकी खैर!
न काहू से दोस्ती
न काहू से वैर!!!