समाचार विश्लेषण/अमृत महोत्सव और तिरंगा यात्रायें
-कमलेश भारतीय
स्वतंत्रता के पचहतर वर्ष पूरे होने पर इवेंट मैनेजमेंट में माहिर भाजपा सरकार ने इस इवेंट को नाम दिया -अमृत महोत्सव । कभी अमृत निकला था सागर मंथन से और यह स्वतंत्रता का अमृत निकला था अनेक व असंख्य अनाम शहीदों की शहादत के चलते । तब चाहे मीडिया था या छात्र या कोई भी वर्ग सभी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे । महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में न जाने कितने लोगों ने अपनी नौकरियां छोड़ दीं तो कितने छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी । महात्मा गांधी को जहां अपार समर्थन मिला वहीं भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव ही नहीं सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी कदमों से भी अंग्रेजी सरकार घबराई और कभी सूरज न डूबने वाले साम्राज्य के झंडे को झुका कर उसकी जगह तिरंगा फहराया गया और लो नयी सुबह हो गयी । हमारा देश स्वतंत्र हो गया । इस स्वतंत्र देश को पचहतर वर्ष हो गये और अब हम मना रहे हैं -अमृत महोत्सव । एक बड़ा आयोजन ।
किसान आंदोलन के चलते भाजपा नेताओं का जनता के बीच जाने पर खूब काले झंडों से विरोध हो रहा था । यहां तक कि गाड़ियों पर पथराव और हिंसक घटनाएं भी होने लगी थीं । फिर आया यह अमृत महोत्सव और किसानों ने तिरंगा यात्रा का विरोध न करने का फैसला लिया । इसी को भाजपा ने अपने शक्ति प्रदर्शन में बदल लिया । अब हर शहर गांव में रोज़ हम तिरंगा यात्रायें देख रहे हैं । असल में यह शक्ति प्रदर्शन है न कि शहीदों का सम्मान और न ही तिरंगे का सम्मान । हर शहर में तिरंगा यात्राओं के बाद जगह जगह तिरंगा सडकों पर बिखरा मिलता है । ऐसे अनेक वीडियोज देखने को मिल रहे हैं जिसमें जिम्मेवार नागरिक बाद में इन तिरंगों को इकट्ठे करते दिखाई देते हैं । इन तिरंगा यात्राओं से किसका सम्मान हुआ ? इससे तो अच्छा है कि किसी बड़े हाॅल में आयोजन किये जायें और एक तिरंगा फहराया जाये और अपने अपने भाव व्यक्त किये जायें । इससे न केवल महंगे पेट्रोल की बात होगी बल्कि शहरों में लग रहे ट्रैफिक जाम से भी मुक्ति मिलेगी । शायद मेरी बात कहीं पहुंच पाये तो विचार कीजिएगा ।
(लेखक पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी हैं)