समाचार विश्लेषण/आंदोलन , खाप पंचायतें और राजनीतिक शतरंज
दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रहा महिला खिलाड़ियों के साथ हुए यौन शोषण के खिलाफ धरना अब खाप पंचायतों और राजनीतिक शतरंज में बदलता दिख रहा है । किसान आंदोलन की तरह दूर दूर से खाप पंचायतों के जत्थे धरना स्थल पर पहुंच रहे हैं जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं । राकेश टिकैत कह रहे हैं कि हमारे पास किसान आंदोलन को तेरह माह तक चलाने का अनुभव और संघर्ष है ।
-*कमलेश भारतीय
दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रहा महिला खिलाड़ियों के साथ हुए यौन शोषण के खिलाफ धरना अब खाप पंचायतों और राजनीतिक शतरंज में बदलता दिख रहा है । किसान आंदोलन की तरह दूर दूर से खाप पंचायतों के जत्थे धरना स्थल पर पहुंच रहे हैं जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं । राकेश टिकैत कह रहे हैं कि हमारे पास किसान आंदोलन को तेरह माह तक चलाने का अनुभव और संघर्ष है । आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा था । अब कश्मकश यह है कि इसका नेतृत्व किसान करें या पहले की तरह पहलवान करते रहें ? किसान यह चाहते हैं कि ऊपर से तो पहलवान ही नेतृत्व करते नजर आयें लेकिन पीछे से वे संचालन और कमान संभाले रहें । दूसरी ओर कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की हिम्मत देखिये कि वीडियो काॅल से यह कह रहे हैं महोदय कि आप गलती न करें और न ही दिल्ली आयें । जब मैं दोषी करार हो जाऊँ तो मैं खुद आपके पास आऊंगा, आप चाहे मुझे मार देना । यही कहना चाहता हूं कि बच्चे गलती करते है, आप गलती न करो । देखिये हिम्मत बृजभूषण की ! बृजभूषण तो इसे अध्यक्ष पद की लड़ाई भी बता कर असली मुद्दे से ध्यान हटाना चाहते हैं । वे सारा दोष हरियाणा से राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा पर मढ़ कर इसे राजनीति से प्रेरित साबित करने में लगे हैं । दीपेंद्र ने पलट कर कह दिया है कि बेटियों के सम्मान की लड़ाई लड़ रहा हूं , कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं । फिर पूछिये कि दुष्यंत चौटाला , अनिल विज और अब सासंद बृजेंद्र सिंह क्यों बेटियों के पक्ष में हैं ? क्या वे भी कुश्ती संघ के अध्यक्ष बनना चाहते हैं ? बृजेंद्र सिंह ने तो साफ शब्दों में कहा कि वे धरना देने वाले खिलाड़ियो के साथ हैं । हर विषय को पार्टी से जोड़कर नहीं देखना चाहिए । मनुष्य की अपनी वैचारिक स्वतंत्रता भी होती है !
उधर बजरंग पूनिया बार बार कह रहे हैं कि यह लड़ाई बेटियों के सम्मान और देश की गरिमा को बचाने की लड़ाई है । अब बेटियों को बचाने क्यों नहीं आगे आते ? बेटियों के सम्मान की कोई चिंता नहीं ? दिल्ली के जंतर-मंतर पर जहां पहलवानों ने केंडल मार्च निकाली , वहीं इनके आह्वान पर देश के कुछ शहरों में केंडल मार्च निकाले गये , इनमें हिसार भी प्रमुख रहा । पर ये केंडल मार्च या प्रतिदिन की अखबारों की कवरेज से कब तक आखें मूंदकर बैठे रहेगे सत्ता पक्ष के लोग ? महाभारत के धृतराष्ट्र की तरह आंखों पर पट्टी बांधे कब तक बैठे रहेंगे ? जिस पर दोष लगे हैं और हंगामा हो रहा है , वह व्यक्ति टीवी चैनलों और वीडियो संदेशों पर जुटा हुआ है । क्या कोई कार्यवाही होने की उम्मीद की जाये ? खेलमंत्री इतना कह कर चुप हैं कि जांच हो रही है और न्याय होगा । जांच चल रही है कछुआ रफ्तार से । यह तो जांच के नाम पर आंसू पोंछने वाली बात है - निरा आई वाॅश ! दुष्यंत कुमार के शब्दों में एक उम्मीद है :
वे मुतमईन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिये !
शायद आवाज पहुंच जाये कहीं !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।