पशु प्रेमियों को छोटे लोकल ग्रुप बनाने की जरूरत है

मानवाधिकारों की बात सुनते अरसा हो गया, लेकिन पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और नदियों के अधिकारों का क्या? धरती पर मानव जीवन सकुशल चलता रहे, इसके लिए यह नितांत आवश्यक है कि पूरा पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) दुरुस्त रहे।

पशु प्रेमियों को छोटे लोकल ग्रुप बनाने की जरूरत है

मानवाधिकारों की बात सुनते अरसा हो गया, लेकिन पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और नदियों के अधिकारों का क्या? धरती पर मानव जीवन सकुशल चलता रहे, इसके लिए यह नितांत आवश्यक है कि पूरा पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) दुरुस्त रहे। इकोसिस्टम की एक भी कड़ी टूटती है तो बाकी सभी प्राणियों का जीवन प्रभावित होता है। वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था कि यदि मधुमक्खियां समाप्त हो जायें तो धरती पर जीवन नहीं बचेगा। जानते हैं क्यों, क्योंकि मधुमक्खियां ही विभिन्न पेड़ पौधों के परागण और उनकी वंश वृद्धि में सहायक होती हैं। पिछले दो दशकों के दौरान खेती में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से कीट-पतंगों की 75 प्रतिशत प्रजातियां दुनिया से लुप्त हो गयी हैं। इसी का दुष्परिणाम है कि पक्षियों की संख्या कम होती गयी। बस्ती और कॉलोनियों में रहने वाले बेघर कुत्तों को सामुदायिक (कम्युनिटी) डॉग्स कहा जाता है। प्राचीन काल में मनुष्य ने कुत्तों को रखवाली और चौकीदारी के लिए पालतू बनाया था और उन्हें शिकार करने साथ ले जाता था। दोस्ती और सहभागिता का यह रिश्ता सदियों से चला आ रहा है। परंतु, आज आधुनिकता में डूबा मानव अपने इन साथियों की अनदेखी कर रहा है। बिना कुछ खाये, बगैर शाबाशी मिले भी ये जीव आज भी मुफ्त में पहरेदारी करते हैं।
 
देश भर के विशेषज्ञों की एक ट्विटर चैट में एक अहम सलाह सामने आयी कि देश भर के पशु प्रेमियों और दयालु लोगों को मोहल्ला स्तर पर समान सोच के लोगों के छोटे समूह बनाने चाहिए। ये छोटे समूह कम से कम अपनी गली और पड़ोस के जानवरों की रक्षा, चिकित्सा, नसबंदी, सर्दी गर्मी और भूख प्यास व अधिकारों की चिंता कर सकते हैं और मिल जुल कर उनके जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास कर सकते हैं। हर दस बीस मकानों वाली गली में तीन चार दयालु और पशु प्रेमी तो मिल ही जाते हैं। इन्हें आपस में संपर्क में रहना चाहिए और एक दूसरे की मदद से आस पड़ोस के जीवों की सहायता करनी चाहिए। एकता में शक्ति होती है, इसलिए इनकी मौजूदगी से असामाजिक तत्वों  की हिम्मत नहीं पड़ेगी कि वे अपनी बुरी नजरें इन बेजुबानों पर डाल पायें। खुद मेरी बेटी ने आसपास की तीन मादा डॉग्स की नसबंदी करवा कर उन्हें एक सुरक्षित जीवन दिया। जब एक अकेली बच्ची ऐसा कर सकती है, तो सोचिए कई लोगों का ग्रुप क्या नहीं कर सकता।
 
सर्दियों में और बारिश के समय मोहल्ला पड़ोस के डॉग्स की मदद कैसे की जाये? मैंने देखा है कि मेरे पड़ोस के दो घरों के दयालु लोगों ने स्ट्रीट डॉग्स के बैठने के लिए अपने गैराज के बाहर पुराने गद्दे बिछा दिये हैं और वे असामाजिक तत्वों से उनकी रक्षा भी करते हैं। असामाजिक तत्व अपना कर्मा तो खराब करते ही हैं, वे पूरे माहौल को भी विषैला और निगेटिव बना देते हैं। ऐसे में, एनिमल लवर्स को एकजुट होकर रहना चाहिए और अपने ग्रुप में अधिक से अधिक साथियों को शामिल करते रहना चाहिए। एक अच्छा सुझाव यह भी आया कि बेघर कुत्तों को जैकेट या स्वेटर न पहनाये जायें, क्योंकि ये किसी कार में फंस कर जानवर की मृत्यु का कारण बन सकते हैं। इसके बजाय जानवरों के खाने पीने का ध्यान रखा जाये, जिससे वे स्वस्थ और मित्रवत रहें। अधिक से अधिक लोगों को दयावान बनने की जरूरत है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)