राजनीति और सर्कस में कोई फर्क?

राजनीति और सर्कस में कोई फर्क?

-*कमलेश भारतीय
सर्कस अब पिट गयी क्योंकि यह काम राजनीति और राजनेताओं ने संभाल लिया । यदि आपको याद हो, सर्कस में पहला खेल रस्सी से इधर से उधर कूदने का होता है और राजनेता इसमें सर्कस के खिलाड़ियों से ज्यादा पारंगत हो चुके हैं । विचारधारा या पार्टी के प्रति वफादारी बीते जमाने की बातें हो चुकीं । अब तो चट मंगनी, पट ब्याह वाली स्थिति हो गयी है । इधर पार्टी में शामिल हुए, उधर टिकट लिया । इधर जीते, उधर मंत्रिपद पर दावा ठोका । मंत्री नहीं बनाया गया तो पाला  बदला और बन गये मंत्री । यह सब सर्कस में कहां ? इसलिए सर्कस का खेल पिट गया और राजनीति का खेल सुपरहिट हो गया । 
कल जींद में भाजपा की जनसभा में बम्पर ज्वाइनिंग हुई, कितने नेताओं ने  पाला बदल खेल दिखाया। जजपा के तीन विधायकों - रामकुमार गौतम, जोगीराम सिहाग व अनूप धानक ने भाजपा का कमल थाम लिया और जजपा को अंगूठा दिखा दिया। इसी प्रकार अम्बाला की मेयर व पूर्व केन्द्रीय मन्त्री विनोद शर्मा की पत्नी शक्ति रानी शर्मा भी भाजपा में शामिल हो गयीं । इनके बेटे कार्तिकेय पहले से भाजपा के समर्थन से हरियाणा से राज्यसभा सदस्य हैं । वैसे भाजपा परिवारवाद से बहुत परहेज करती है, बहुत दूर रहती है । कांग्रेस में गांधी परिवार पर कटाक्ष करने वाली भाजपा परिवारवाद को अपनी सुविधानुसार उपयोग करती रहती है । अभी पूर्व मंत्री देवेंद्र बवली को सर्कस का खेल दिखाना है । वैसे वे कांग्रेस में शामिल होने गये थे, टिकट मांगने गये थे लेकिन उन्हें कहा गया कि आप कांग्रेस के सदस्य ही नहीं तो टिकट कैसे ? यानी कांग्रेस ने उनके पाला बदल खेल को मान्यता प्रदान नहीं की तो वे अब अपने खेल का 'ट्रायल' भाजपा में दिखाने की सोच रहे हैं । नरवाना से विधायक रामनिवास सुरजेखेड़ा को भाजपा ने 'नो एंट्री' का बोर्ड दिखा दिया क्योंकि उनके खिलाफ कुछ दिन पहले दुष्कर्म का केस दर्ज हुआ है । फिर गोपाल कांडा में क्या खूबी है जो सुरजेखेड़ा में नहीं है ? हलोपा से गठबंधन का आधार क्या है ? इसके बावजूद इनेलो ने हथीन से दुष्कर्म के आरोपी तैयब हुसैन को टिकट देने में कोई संकोच नहीं किया । अपनी अपनी नियमावली है । 
महाराष्ट्र में सर्कस से भी ज्यादा रोमांचक खेल तो नहीं भूला होगा जब आधी रात को अजीत पंवार का सहयोग लेकर बिना बहुमत के सरकार बना दी थी ? फिर अढ़ाई साल बाद अघाड़ी सरकार गिराई भाजपा ने ! ऐसा खेल तो सर्कस में कभी न देखने को मिलेगा । अजब गजब खेल है प्यारे यह राजनीति । यहां ईमान के, विश्वास के और संबंधों के कोई मोल‌ नहीं । चाचा को छोड़कर भतीजा कहीं भी जाकर पद पा सकता है । महाराष्ट् और हरियाणा में चाचा भतीजे की यह लड़ाई सबने देखी कि नहीं? इसीलिये सर्कस से प्यारी है राजनीति ! हिमाचल में कांग्रेस के छह विधायक यही खेल दिखाने भाजपा के साथ हो लिए लेकिन बुरी तरह घायल हो गये और राजनीति खराब कर ली ।पिट गयी सर्कस, सुपरहिट हो गयी राजनीति !! बशीर बद्र कहते हैं :
कुछ तो मजबूरियां रही होंगीं
यूं ही कोई बेवफा नहीं होता!! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी। 

(2/9/2024)