यह भ्रष्टाचारकाल है

पुल गिर रहे या नेताओं का ईमान?

यह भ्रष्टाचारकाल है

-*कमलेश भारतीय
बिहार से लगातार नदियों पर बने पुलों के गिरने से यह सवाल उठता है कि ये पुल गिर रहे हैं या नेताओं का ईमान गिर रहा है? भरोसा उठ रहा है नेताओं से, उनके कामकाज से और बिहार की कहें कि सुशासन बाबू के सुशासन से भी भरोसा उठ रहा है।  क्या अब लालू यादव को ही चारा कांड के लिए जी भर कर कोसना सही है? अब तो चारा ही नहीं सीमेंट, रेत, बजरी भी खाने लगे। कब तक आपातकाल को कोसते रहेंगे? यह जो भ्रष्टाचारकाल बढ़ता और लम्बा खिंचता जा रहा है, इस पर कब कोई कदम उठाओगे? पुलों का गिरना तो ऐसे हो रहा है, जैसे ये ताश के बने पुल हों‌। ताश के महल ऐसे ही ढह जाते हैं, जैसे ये पुल ढह रहे हैं। पुल ही क्यों दिल्ली में एयरपोर्ट का एक छज्जा गिर जाने से एक आदमी कुर्बान हो गया। चर्चायें गर्म हैं कि ये पुल या एयरपोर्ट का काम सन् 2014 के बाद के हैं यानी इस बीच अमृत महोत्सव भी आया लेकिन इसमें भी भ्रष्टाचारकाल छाया रहा। कुछ लोग कह रहे हैं कि सत्तर साल में क्या किया, इसका जवाब ये ढहते हुए पुल‌ दे रहे हैं। आपके बनवाये पुल आपके राज में ही टूट रहे हैं और आप सत्तर साल का हिसाब मांग रहे हैं? 
याद है पंजाब में हमारे क्षेत्र में राहों से समराला की दूरी कम करने के लिए एक पुल‌ माछीबाड़ा के बीच बनाया गया था, जिसका उद्घाटन करने तत्कालीन मुख्यमंत्री, जो बाद में राष्ट्रपति भी बने, ज्ञानी जैल सिंह पहुंचे और उद्घाटन करते ही पुल ढह गया और वे बाल बाल बच गये। बाद में नया भ्रष्टाचार मुक्त पुल‌ बनाया गया लेकिन फिर‌ उद्घाटन किसने किया, याद नहीं पर उस पुल से गुजरते हुए यह घटना जरूर होंठों पर आ जाती है। सोशल मीडिया पर लोग व्यंग्य कर रहे हैं कि सफर से पहले कार की हवा, पेट्रोल सब चैक करने के साथ साथ राह में आने वाले पुल भी चैक करवा लेना। पुल नेताओं के भ्रष्टाचार को देखकर आत्महत्या कर रहे हैं, कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स ऐसे भी व्यंग्य कर रही हैं। पुलों‌‌ ने बढ़ती गर्मी को देखते नदियों में छलांग लगा दी, ऐसे भी लिखा जा रहा है। 
ज़रा गौर से सोचिये, यदि भाखड़ा नंगल डैम इतना कमज़ोर बनाया होता और टूट जाता तो पंजाब और हरियाणा कब के पानी में डूब गये होते। ज़रा इतना तो सोचिये कि आप पुल नहीं बना रहे, देश बना रहे हैं, अमृत महोत्सव मना रहे हैं और देश ऐसे पुलों से दौड़ेगा क्या? यह भ्रष्टाचारकाल है। किसी को कांग्रेस मुक्त नारा न देकर भ्रष्टाचारकाल मुक्त देश बनाने का संकल्प लेना चाहिए। अन्ना हजारे जी, सुन रहे हैं आप? 
दुष्यंत कुमार कहते हैं:
मुझ तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियां 
मुझको मालूम है पानी कहां ठहरा होगा!! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।