ज़िंदगी के दौर से उखड़ा अर्जुन बना सफल मनोवैज्ञानिक, मिला पुरस्कार
-कमलेश भारतीय
ज़िदगी के दौर से उखड़े अर्जुन गुप्ता आज एक सफल युवा मनोवैज्ञानिक बन कर मेरे सामने थे । जब मैं माॅडल टाउन स्थित अर्जुन से मिला तो उसने गर्मजोशी से हाथ मिलाया । एक खुशमिजाज नौजवान, सफलता में झूमते हुए मिला, जिसे बैंगलोर की ग्लोबल गवर्नेंस इनिशिएटिव संस्था द्वारा तीस वर्ष आयु वर्ग तक की केटेगरी में सम्मानित किया गया है। इसी खुशी को बांटने वह अपने परिवार से मिलने आया तो मुझे भी याद किया और हमने दिलचस्प बातचीत की ।
-अर्जुन आखिर आप जब प्रवेश परीक्षा पास कर गये थे डाॅक्टर बनने की तो बीच में क्यों छोड़ आये ?
-बस, मैं जिंदगी से उखड़ गया था पूरी तरह से । वह सन् 2015 का डेढ़ साल का दौर बहुत बुरा दौर था मेरे जीवन का ।
-क्या महसूस करते थे तब?
-अकेलापन बहुत अच्छा लगने लगा था, उखड़ा उखड़ा रहने लगा था और चिड़चिडापन व गुस्सा बढ़ गया था । सबसे अलग होकर बैठे रहना अच्छा लगने लगा था ।
-फिर इससे कैसे उभरे?
-मम्मी पापा ने बहुत स्पोर्ट किया। जैसे प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने कहा कि एक बार फिर से पूछो तो मेरे मम्मी पापा ने बार बार नहीं हज़ार बार मेरा हाल पूछा, देखभाल की । पुरूष जब डिप्रेशन के शिकार होते हैं, यह मैंने बाद में स्टडी में जाना कि वे गुस्सा ज्यादा करने लगते हैं। मेरा भी यही लक्षण था ।
-अब कौन सी शिक्षा ली?
-दिल्ली विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन ।
-अब क्या काम कर रहे हो ?
-यही मनोवैज्ञानिक का ऑनलाइन काम ।
-कैसे तरीके पहले अपनाये जाते रहे मनोरोगियों के लिए?
-उन्हें दबाये रखा जाता था । सही उपचार न करवा कर नशे की ओर धकेल देते थे, जो और भी गलत ट्रीटमेंट रहा ।
-फिर क्या करना चाहिए ?
-स्थिति का सामना करना चाहिए न कि भागना या मुंह फेर लेना चाहिए । काउंसलिंग जरूरी है । अपना सच बताना चाहिए ।
-अब सामने बैठे मनोरोगी को देखकर क्या लगता है?
-हम भी इस दौर से गुजरे थे तो कम से कम दूसरों को तो बचाने का हरसंभव प्रयास करें । मुझे उनमें खुद की छवि दिखती है । खुद की परछाईं लगते हैं ये डिप्रेशन के पेशेंट ।
-आपने किताबें भी लिखी हैं न ? कौन कौन सी?
-मैंने दो किताबें लिखी हैं -डोंट टाॅक अबाउट मेंटल हैल्थ और दूसरी ए टू जेड अबाउट मेंटल हेल्थ।
-विविध कलायें कितनी मदद करती हैं डिप्रेशन से उभरने में?
-मैं लिखकर उभरा तो कोई पेंटिंग से तो कोई संगीत से । कलायें बहुत मदद करती हैं डिप्रेशन से बाहर निकलने में । अपने आप को व्यक्त करना चाहिए किसी भी कला के माध्यम से । मन को व्यक्त करने का अवसर बनाते रहना चाहिए ।
-ग्लोबल सम्मान पाकर कैसा लगा?
-आज मेरा परिवार, मेरे मम्मी पापा के चेहरों पर जो खुशी है, यही मेरा सबसे बड़ा पुरस्कार है, सम्मान है, सर ।