समाचार विश्लेषण/अशोक गहलोत: अपने ही जाल में फंसे?
अभी तक कांग्रेस हाईकमान राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपना भरोसेमंद मान कर चल रही थी और राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के मूड में थी लेकिन जिस तरह की चाल विधायकों के साथ मिलकर चली , उससे कांग्रेस हाईकमान का दिल टूट गया । यह क्या तरीका है ? अपनी शर्तों पर अध्यक्ष तो बनना चाहते हैं और राजस्थान का नया मुख्यमंत्री भी अपने ही भरोसे का बनवाना चाहते हैं ! सही कहा हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने कि जो गहलोत राजस्थान में ही एकता नहीं रख सकते , वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बन कर पूरे देश में कांग्रेस कैसे संभाल सकते हैं ? जब भरोसा ही टूट जाये , फिर कौन आपको अध्यक्ष बनाये ?
-*कमलेश भारतीय
अभी तक कांग्रेस हाईकमान राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपना भरोसेमंद मान कर चल रही थी और राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के मूड में थी लेकिन जिस तरह की चाल विधायकों के साथ मिलकर चली , उससे कांग्रेस हाईकमान का दिल टूट गया । यह क्या तरीका है ? अपनी शर्तों पर अध्यक्ष तो बनना चाहते हैं और राजस्थान का नया मुख्यमंत्री भी अपने ही भरोसे का बनवाना चाहते हैं ! सही कहा हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने कि जो गहलोत राजस्थान में ही एकता नहीं रख सकते , वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बन कर पूरे देश में कांग्रेस कैसे संभाल सकते हैं ? जब भरोसा ही टूट जाये , फिर कौन आपको अध्यक्ष बनाये ? शर्त यह कि उन्नीस अक्तूबर अध्यक्ष बनने के बाद ही मुख्यमंत्री का फैसला किया जाये । शर्त यह कि जिसने सरकार तोड़ने की कोशिश की , उसे या उसके समर्थक को मुख्यमंत्री पद न सौंपा जाये । शर्त यह कि दोनों पद ही मुजे अपने पास रखने दो । यानी मुख्यमंत्री भी और राष्ट्रीय अध्यक्ष भी । जिसका जवाब राहुल गांधी ने दे दिया कि ऐसा नहीं होगा । मुख्यमंत्री पद छोड़ना ही पड़ेगा ! अब गहलोत दुविधा में हैं कि किधर जाऊं ? मुख्यमंत्री बना रहूं या फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाऊं ? वैसे इन हालात को देखते कांग्रेस हाईकमान को उस व्यक्ति को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का फैसला करना चाहिए जो किसी भी राज्य मुख्यमंत्री पद पर न हो । पंजाब राज्य में कैप्टन अमरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा कर खुद ब खुद कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का आत्मघाती कदम उठाया था । कहीं अध्यक्ष पद की कशमकश में राजस्थान भी हाथ से न निकल जाये ! विधायकों का फैसला सिर्फ एक ढोंग मात्र रह गया । फैसला तो चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों की हाईकमान ही करती है । विधायकों की राय मात्र आई वाश है ! लोकतंत्र का दिखावा । किसी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है । तभी तो कांग्रेस भाजपा को जवाब दे रही है कि इसमें अढ़ाई लोग ही फैसला करते हैं , हमारे तो फिर भी आपस में लड़ाई करें या सहमति , कम से कम लोकतंत्र तो है ! एक मजेदार काॅर्टून भी आ रहा है कि स्कूटर पर पीठ दिख रही है अमित शाह की और नीचे लिखा है कि इन महोदय को तेजी से जयपुर जाते देखा गया है ! अब आप जानते ही हैं कि आप्रेशन लोट्स का समय आ गया ! भाजपा तो मौके की तलाश में है और ऐसे हालात न बनने दे कि सचिन इस बार कांग्रेस को अलविदा कहने पर उतारू हो जाये क्योंकि जब कोई भविष्य ही नहीं तो इसमें कोई कैसे रह सकता है ! इसीलिए तो युवा नेता इससे किनारा करते जा रहे हैं ! सुष्मिता देव को भी कोई भविष्य नहीं दिखा और वे तृणमूल कांग्रेस में गयीं और राज्यसभा भेज दी गयीं ! कांग्रेस में रहती तो दरियां ही बिछाती रहती ! जितन प्रसाद गये और मंत्री बन गये । कितने लोग जाने को तैयार हैं यदि यही हालात रहे तो ,,,,,यह कुनबा बिखरता जायेगा !
दूसरी ओर गुलाम नबी आज़ाद ने डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी का गठन कर लिया । कपिल सिब्बल वाया सपा राज्यसभा में पहुंच गये तो शत्रुघ्न सिन्हा भी वाया तृणमूल कांग्रेस राज्यसभा में जा बैठे ! सब कोई न कोई द्वार खोज रहे हैं, खटखटा रहे हैं और कांग्रेस हाईकमान ने जिन पर भरोसा किया , वही तकिये हवा देने लगे हैं ,,,!
कोई कब तक बचायेगा इस लस्त पस्त और गुटबाजी में फंसी कांग्रेस को ? कब तक यह जुड़ पायेगी ? कौन सा नेता फेविकोल का जोड़ लायेगा ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।