किस मोड़ पर आ पहुंचे हैं हम...
मनोज धीमान की क़लम से लिखित शायरी
प्यार मेरा पराया निकला
आंसू जैसे नयन से निकला
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उनसे जितना रिश्ता निभाते रहे
पीठ पर घाव पर घाव खाते रहे
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लिखना तो हम भी चाहते हैं
हिम्मत नहीं होती पढ़ने के बाद
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सोचा ना था ऐसा भी होगा कभी
अकेले रह जाएंगे भरी महफ़िल में
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माना कि क़ाबिल ना थे हम आपके
पहले ही औकात दिखा देते हमारी
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निकले थे दोस्तों की तलाश में
पहुंचे गए दुश्मनों के शहर में
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ख़त तो बहुत लिखे हमने
पता ही मालूम ना था
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बादल घनघोर छाये हैं आज
डूबने का मौसम है आज
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क़ैद हो गए पिंजरे में हम
उड़ने की ख़्वाहिश लिए हुए
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किस मोड़ पर आ पहुंचे हैं हम
अपनों के लिए बेगाने हो गए हैं हम
-मनोज धीमान