कहानी/आत्महत्या/टी शशि रंजन

पिछले दो—तीन साल में ऐसा कोई खास लम्हा नहीं था जब अंजलि और अंकुर के बीच झगड़ा न हुआ हो, चाहे वह कोई त्योहार हो या कोई समारोह, चाहे दोनों पति पत्नी अकेले हों या सार्वजनिक तौर पर, या फिर जीवन के वो अंतरंग पल जहां पति पत्नी के बीच कोई और नहीं होता ।

कहानी/आत्महत्या/टी शशि रंजन

                                
                                      1
“मार के मुंह फुला देंगे । कुकर्मी कहीं का । इधर उधर जाता है मुंह मराने। दोगला । मुझे धोखा देता है । मैं ऐसी नहीं हूं कि तुम्हें शांत रहने दूंगी । तुम्हारी जिंदगी में तूफान ला दूंगी । और तुम जो सोचते होगे कि मैं कुछ नहीं कर सकती हूं, तो यह तुम्हारा भ्रम है । अभी तुम्हें पता ही नहीं है कि मैं क्या क्या कर सकती हूं ।”
      घर में आयोजित बेटे के जन्मदिन समारोह के उपरांत, बेडरूप में बैठ कर इस के बारे में बातचीत करने के दौरान पति के मोबाइल में व्हाट्सएप चैटिंग पढ़ने के बाद अचानक अंजलि ने क्रोधित होते हुये पति अंकुर को ये बातें कही ।
       अंकुर, पत्नी अंजलि के मुंह से  ऐसे शब्द पहली बार सुन रहा था । और अचानक इस मौके पर उसे ऐसी गालियों की उम्मीद नहीं थी । एकदम मोहब्बत भरे माहौल में, हंसते हुये दोनों बातचीत कर रहे थे और अचानक वह भड़क गयी और निहायत की घटिया शब्दों का इस्तेमाल करने लगी । 
         पिछले दो—तीन साल में ऐसा कोई खास लम्हा नहीं था जब अंजलि और अंकुर के बीच झगड़ा न हुआ हो, चाहे वह कोई त्योहार हो या कोई समारोह, चाहे दोनों पति पत्नी अकेले हों या सार्वजनिक तौर पर, या फिर जीवन के वो अंतरंग पल जहां पति पत्नी के बीच कोई और नहीं होता । हर मौके पर अंजलि का यही रवैया होता था । अंकुर जब प्रतिक्रिया करता तो दोनों के बीच जमकर झगड़ा होता और अंजलि अंकुर से बातचीत बंद कर देती, माहौल को सामान्य करने के लिये अंकुर ही पहल करता । घर में होने वाले कलह को देखते हुये अंकुर ने चुप रहना शुरू कर दिय था ।  
         अंकुर पत्नी का यह रूप देख कर बेहद हैरान था कि आखिर ऐसा क्या हो गया, या उसने ऐसा क्या देख लिया मोबाइल में जो अचानक इस तरह का रियेक्शन देने लगी । अंकुर इस बात से हैरान था कि इतनी पढी लिखी और संस्कारी अंजलि उसके लिये या किसी अन्य के लिये ऐसे अपशब्दों का भी इस्तेमाल कर सकती है । वह तो यह भी नहीं सोच पा रहा था कि वह हैरान किस बात से था, पत्नी के ऐसे शब्दों से या अचानक उसके इस रूप से ।  
         अंजलि और अंकुर का अतीत में भी कई बार झगड़ा हुआ था, अंजलि ने  कई बार भला बुरा कहा था, अंकुर यह सोच कर चुप रह जाता कि उसकी क्षणिक और त्वरित प्रतिक्रिया है और यह समय के साथ ठीक हो जायेगा । लेकिन, धीरे धीरे अंजलि और आक्रामक होती चली गयी और यह झगड़ा जब तब, मौके— बेमौके कभी भी हो जाया करता था, और अंकुर निरूत्तर हो जाता था । बाद में अंकुर महसूस करने लगा कि शायद अब यह ठीक नहीं होगा। 
         परेशान अंकुर कुछ सोच भी नहीं पाया था, कि तभी अंजलि ने भड़कते हुये कहा, 'मैं तो यह विचार कर चुप हो जाती हूं कि तुम्हारे मां बाप बुजुर्ग हैं और अगर मैं उन्हें सारी बातें बता दूंगी तो वो उन्हें परेशानी होगी । उनके दिल पर क्या बीतेगी कि जिस बेटे पर इतना गर्व है उन्हें, वह असल में कैसा दोगला और कमीना है जो महिलाओं के पीछे पीछे मुंह मारने जाता है।'
         पलंग की मथानी से पीठ टिकाये अंकुर ने अंजलि की इस प्रतिक्रिया को हलके में लेते हुये माहौल को सामान्य बनाने के लिये हंस कर कहा, 'अरे क्या बोल रही हो । बेटा यही बैठा है और लगातार तुम्हारी  तरफ ही देखे जा रहा है, वह क्या समझेगा और क्या सीखेगा अब बड़ा हो रहा है । अंजलि अब भी बड़बड़ाये जा रही थी ।
         कमरे में अचानक से बदले माहौल में हंसने का नाटक करने वाले अंकुर ने फिर गंभीर होते हुये कहा कि ऐसा क्या देख लिया मोबाइल में । पढ़ने के बाद इस तरह की प्रतिक्रिया देने से पहले मुझसे इस बारे में पूछ तो लेती । और मुझे बताओ कि इसमें ऐसा लिखा है जो तुम जाहिलों की तरह इतने वाहियात शब्दों का इस्तेमाल कर रही हो ।
         इस पर अंजलि ने मोबाइल अंकुर की तरफ फेंकते हुये कहा कि कमल के साथ हुयी तुम्हारी चैटिंग पढ़ रही थी, देख उसने तुम्हें कितनी गालियां दी है । तू इसी का पात्र है । जितनी गाली तुम्हें कमल ने दी है उससे अधिक गाली मैं तुम्हें दूंगी । साला, कमीना रूक तू, मैं अभी तुम्हारी मां को बुला कर सारी बातें बताती हूं ।
        अंकुर ने तल्ख लहजे में कहा कि तुम ठीक से पढ़ो, जैसा तुम्हें लग रहा है वैसा कुछ नहीं है और उसने क्या गालियां दी है, सबसे पहले ये जाहिलों की तरह बातचीत करना बंद करो; लोग सुनेंगे। बच्चा बड़ा हो रहा है । क्या यही सब सिखाओगी इसको जो सीख कर आयी हो । 
        इस पर अंजलि ने बेटे को अंकुर को अपनी तरफ खींचते हुये कहा कि मैं इस पर तुम्हारे जैसे कमीने आदमी का साया भी नहीं पड़ने दूंगी और पांच साल के बेटे को संबोधित करते हुये कहा कि बेटे तुम दादी मां के पास जाओ ये आदमी बहुत गंदा है और इससे तुम दूर ही रहना और इस व्यक्ति के पास कभी मत जाना ।
       इसके तुरंत बाद अंकुर का मोबाइल लेकर उसके व्हाट्सएप एवं मैसेंजर से अपना नंबर और नाम डीलिट करते हुये कहा — मैने आज खुद को तुम्हारे मोबाइल से डीलिट कर दिया है और अब तुम्हें अपनी जिंदगी से डीलिट कर दूंगी । अंकुर चुप था और अंजलि बड़बड़ाये जा रही थी ।
      'बस, अब बहुत हो गया । ये जाहिलों की तरह बातचीत बंद करो और आराम से मुझे बताओ तुम्हें किस बात पर इतना गुस्सा आ गया और क्या लिखा है ऐसा कमल की चैटिंग में कि तुम इतना ओवर रियेक्ट कर रही हो ।  लड़के आपस में किसी भी तरह से बातचीत करते हैं । देख कर उनका मतलब मत निकालो, और तुम भी पढी लिखी हो । आफ द रिकार्ड बातें भी होती हैं । तुम्हारा ये हर बात में ओवर रियेक्ट करने की आदत है न,देखना कि मेरे सहित एक दिन सबलोग तुमसे दूर हो जायेंगे ।' गुस्से में अंकुर ने कहा ।
      पलंग पर से उतरते हुये अंकुर ने फिर कहा, 'कोई जब आदर करे तो उसका सम्मान करना चाहिये । हर व्यक्ति को एक ही तुला से मत तौलो । कई बार परिस्थितियां अलग अलग होती है। मैने पहले भी कहा है जब भी तुम कुछ देखो तो पहले मुझसे पूछो और अंदाजा लगा कर जबरदस्ती अच्छा बनने के चक्कर में ओवर रियेक्ट मत करो ।'
     फिर उसने गुस्से में कहा,'शौक से हो जाओ डिलीट । तुम्हारे जेसे दोहरे व्यक्तित्व वाले लोगें से अलग रहना ही ठीक है । तुम जहां चाहो जा सकती हो । तुम्हें अभी अंदाजा नहीं है न डीलिट होने के इंपैक्ट के बारे में । एक बार कर के देख लो फिर बात करना ।'
      अंकुर ने दोबारा कहा, 'किसी और की समस्या से व्यथित होकर फ्रस्ट्रेशन में अपना घर मत बर्बाद करो। कुछ भी बोले जा रही हो । अगर किसी भी बात से तुम्हें दिक्कत है और कठिनाईं हो तो कुछ भी करने से पहले आकर उस बारे में बात करो । मैं हर बात का जवाब देने के लिये बैठा हूं ।'
       उसने फिर शांत होते हुये कहा, 'मैने तुम्हें कितनी बार कहा है, मैं गलत नहीं हूं । तुम अपने दिमाग से संदेह का बीज हटाओ । नहीं तो यह तुम्हें बर्बाद कर देगा । तुम्हारी और तुम्हारे साथ मेरी भी जिंदगी को खराब करेगा और इसका असर केवल और केवल हमारे बच्चे पर ही होगा और इसके लिये तुम्ही जिम्मेदार होगी । 
      अंकुर ने फिर सामान्य तौर पर धीरे से कहा, 'तुम्हारे इस तरह बात करने से बेहद तकलीफ होती है। अगर मैं गलत होता तो फिर भी ठीक था । लेकिन तुम संदेह के घेरे में मुझे रख कर कुछ भी उटपटांग बोले जा रही हो । मैं बेहद संवेदनशील व्यक्ति हूं और मुझ पर तुम्हारे बोले गये एक एक शब्द का बेहद मानसिक असर होता है। तुम्हारे इन जहरीले शब्दों से कभी कभी ऐसा लगता है ...... । छोड़ो मैं ये किसके पास बात कर रहा हूं।'
       अंकुर ने दोबारा कहा, 'ऐसा शक्की और संकीर्ण दिमाग रखोगी न तो देखना एक दिन अकेले पड़ जाओगी और सिवाये पछताने के तुम्हारे पास कुछ नही होगा ।
       अंजलि ने कहा, 'तुम्हें इसी बात का अहंकार है न कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती और जब तुम ऐसी बात करोगी तो मैं चुप हो जाउंगी । लेकिन मैं चुप नहीं रहने वाली हूं और मैं तुम्हें कहां पहुंचा दूंगी अंकुर, तुम नहीं जानते हो ।'
       इस पर अंकुर ने कहा कि इसके बाद तुम स्वयं कहां पहुंच जाओगी इसका अंदाजा है और अधिक से अधिक क्या हो सकता है, मैं तुम्हारी गतिविधि से मर जाउंगा, लेकिन याद रखना मेरे मां बाप को दो बेटा है । मैं नहीं रहा तो उनकी देख रेख करने वाला एक रहेगा उनके पास । लेकिन मेरे मरने के बाद तुम कहां जाओगी यह समझ लेना ।
    कितनी बार कहा है कि अपने शराबी बहनोई और बहन के परिवार की जो समस्या है, उसको सोच कर अपना घर मत बर्बाद करो । कोई काम नहीं आता है । उनकी समस्या से दुखी होना और उनकी मदद के लिये तत्पर होना एक बात है लेकिन तुम्हे तो ऐसा लग रहा है कि अपना घर बर्बाद करके तुम अपनी बहन का घर बसा लोगी । यह सब असल जिंदगी में नहीं होता है । 
अंकुर ने नाराज होते हुये कहा, 'जिन लोगों पर बहुत अहंकार है न, देख लेना कि वह भी तुम्हारी कितनी मदद करते हैं और इस बात का अंदाजा तुम्हें तब होगा जब मैं तुमसे दूर चला जाउंगा,और तुम्हारा यही रवैया रहा न तो मैं एक न एक दिन निश्चित तौर पर तुमसे दूर हो जाउंगा । तब रहना अकेले ।'
          अंजलि ने क्रोधित होकर कहा, 'अरे जाओ, तुम्हारे जैसे घटिया आदमी के साथ रहने से अकेले रहना बेहतर है । और तुम ये क्या डायलग मारते रहते हो कि तुम दूर हो जाओगे या आत्महत्या कर लोगे, और मुझे मजा चखाओगे । तुम्हारी मां का दूरा बेटा है न देखभाल करने वाला वैसे ही मेरे भी कई रिश्तेदार हैं। कायर कहीं का । तुम्हारे जैसा डरपोक व्यक्ति तो आत्महत्या भी नहीं कर सकता है। चले हैं मुझे अकेले रहने का डर दिखाने ।'
       अंकुर बिना कुछ बोले कमरे से बाहर निकलते हुये एक दम शांत हो गया, लगा जैसे किसी ने उठा कर पटक दिया हो । बेहद प्यार करता था अंजलि से । अंजलि भी समझती थी लेकिन जब वह बोलने लगती थी तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता था और ऐसे ऐस कठोर शब्दों का इस्तेमाल करती थी और पति को अपने कठोर और चुभने वाले शब्दों से दुख पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी । ऐसा लगता था कि जैसे कोई पुरानी दुश्मनी निकाल रही हो ।
       हॉल में से एक बार फिर अंकुर वापस कमरे में गया और एकदम शांत होते हुये धीरे से कहा, 'पता है कि तुम्हारी समस्या क्या है, तुम्हारा अहंकार । तुम्हारा यह मान लेना कि तुम परफेक्ट हो, यही सब तमाशा खराब कर रहा है। तुम अपनी ही बहनों को देखो, उनका क्या रवैया है और तुम्हारा क्या रवैया है। तुम यह जाने लेने के बावजूद कि तुम गलत हो, फिर भी तुम चुप नहीं होती हो और लगातार अपने दोष मुझ पर थोपती रहती हो ।'
      अंकुर ने कहा— इसका तो परिणाम तुम्हें ही मिलेगा । लेकिन जिस तरह तुम मुझ पर संदेह करते हुये ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करती हो और जरा यह सोचो कि मेरे जिस अपराध के लिये तुम मुझे यह सजा देती हो और एक दिन जब तुम्हें पता चलेगा कि तुम गलत हो तो क्या इन सब बातों को याद कर तुम स्वयं को माफ कर पाओगी । 
  ‘‘इन्हीं झगड़ों की वजह से अगर हम एक दूसरे से दूर हो गये और उसके बाद तुम्हें लगा कि तुम गलत थी तब क्या करोगी और अगर मैंने तुम्हें सिर्फ यह दिखाने के लिये ही कि मैं कायर नहीं हूं और आत्महत्या कर लेता हूं और इसके बाद तुम्हें पता चलेगा कि मै गलत नहीं हूं तब क्या करोगी । इस बात का खयाल रखना कि पछताने के अलावा तुम्हारे पास कुछ नहीं बचेगा ।'
      अंकुर यह बोल कर कमरे से निकला । दूसरी ओर यह सुनने के बाद अंजलि चुप हो गयी । अंकुर कमरे से बाहर आ कर बरामदे में बैठ गया । अंकुर मानसिक रूप से परेशान था, उसे किसी काम में मन नहीं लग रहा था । अगले ही पल उसका बेटा आया और बोला कि उसे किंडर जॉय चाहिये ।
       बेटे को पुचकार कर मना करते हुये वापस अंदर भेज दिया और मोबाइल लेकर कमल के साथ करीब एक महीने पहले हुयी चैटिंग पढ़ने लगा । चैटिंग पढ़ने के बाद अंतत: अंकुर ने मन ही मन निर्णय किया कि अब वह अंजलि से कभी बात नहीं करेगा ।  
       दरअसल, अंकुर बिहार के एक छोटे से गांव का रहने वाला था और कोलकाता में एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत था, जहां वह किराये के घर में पत्नी और बेटे के साथ रहता था । छुट्टियों में अपने घर आया था और कोरोना वायरस संक्रमण के कारण लॉक डाउन लगने से वह परिवार के साथ यहीं रूक गया था और माता पिता के साथ रहता था । 
     अंकुर के माता पिता गांव में नहीं बल्कि शहर में ही रहते थे । पिता ने रिटायरमेंट के बाद शहर में घर बनाया था और वहीं रहते थे । अंकुर का छोटा भाई अंकित दिल्ली में रहता था । 
    बरामदे में सोफे पर बैठा अंकुर करीब आधे घंटे की उधेड़ बुन के बाद अंदर गया और तैयार होकर मां से गाड़ी की चाबी मांगी । मां ने पूछा खाना खाया, अंकुर ने कहा कि बाद में खाउंगा । अंकुर ने गाड़ी में लैपटॉप का बैग रखा और निकल गया । गाड़ी लेकर निकल गया लेकिन गंतव्य का पता नहीं थ । मन भी बेचैन था । 
       अंकुर अपने दोस्त पंकज के घर आया । घर के बाहर खड़े होकर उसने पंकज को फोन किया । पंकज बोला — मेरी एक चचेरी दादी का देहांत हो गया है और आज ही श्राद्ध है इसलिये मैं गांव जाने के लिये निकल  रहा हूं और दो दिन बाद लौटूंगा । 
      अंकुर ने पूछा— कबतक निकलोगे । पंकज ने कहा— बस निकल ही रहा हूं । अंकुर ने कहा कि तुम बाहर निकलो, मैं गाड़ी लेकर आया हूं । मैं तुम्हारे घर के बाहर सड़क पर खड़ा हूं । मैं भी तुम्हारे गांव चलूंगा।
               

        2
    अंकुर सड़क पर गाड़ी दौड़ा रहे थे । स्टेट हाइवे पर गाड़ी सरपट भागी जा रही थी । पंकज से बगैर कोई बात किये अंकुर चुपचाप ड्राइविंग सीट पर बैठा वाहन चला रहा था । वाहन चलाते हुये अंकुर ने फोन कर मां को बताया कि वह पंकज के साथ उसके गांव जा रहा है और एक दो दिन में वापस आयेगा । मां ने पूछा— खाना । अंकुर ने कहा— यहीं कहीं रास्ते में कुछ खायेगा और फिर वह पंकज के गांव भी तो जा रहा है । 
     पंकज को हंसोड़ अंकुर की चुप्पी बर्दाश्त नहीं हो रही थी,  उसने पूछा— अंकुर, कोई समस्या है । तुम परेशान लग रहे हो । अंकुर ने कहा — मेरी इच्छा आत्महत्या करने की हो रही है। अब बर्दाश्त नहीं होता है। मैं हर वक्त.....तभी बीच में पंकज ठहाका मार कर हंसने लगा और कहा लगता है बॉस से झगड़ा हो गया है और तुमने फिर से इस्तीफे की धमकी दी है । 
   अंकुर ने गंभीर अवस्था में ही कहा — मैं मजाक नहीं कर रहा हूं । मैं सचमुच इतना फ्रस्ट्रेट हो गया हूं कि अब बर्दाश्त नहीं होता है और सच में आत्महत्या करना चाहता हूं ।
       इसके साथ ही अंकुर ने एक डेढ़ घंटे पहले अंजलि के साथ हुयी बातचीत का एक एक शब्द कह सुनाया । दरअसल, पंकज और अंकुर दोनों जिगरी दोस्त थे । बचपन के । एक दूसरे के घर आना जाना था । दोनों एक दूसरे के घर में सगे बेटे की तरह ही थे । अंकुर की पत्नी अंजलि और पंकज दूर के रिश्तेदार थे । 
      पंकज ने पूछा कि तुमने खाना खाया, अंकुर ने कहा — नहीं । इस पर पंकज ने कहा आगे पेट्रोल पंप पर एक रेस्त्रां है, मेरे गांव का ही है, तुम वहां गाड़ी रोको । इस पर पंकज ने कहा कि लॉकडाउन है । अंकुर ने का कि तुम वहां रोको ।
      अंकुर ने वहीं गाड़ी रोक दी थी, दोनों रेस्त्रां पहुंच गये । पंकज ने मालिक के पास जा कर कुछ बात की और वापस आ गया । मालिक ने उपर का कमरा खुलवाया और पंकज एवं अंकुर को वहां भेज दिया ।
      पंकज और अंकुर बैठ गये, पंकज ने वेटर को दो सूप के लिये बोला । फिर अंकुर से कहा — क्या बेवकूफी की बात कर रहे हो कि तुम आत्महत्या करने के बारे में सोच रहे हो । किस लिये और खास तौर से उस महिला के लिये जिसे तुम्हारी कोई परवाह नहीं है जो सिर्फ एक चैटिंग पर इतने भद्दे और घटिया शब्दों का इस्तेमाल कर रही है जबकि चैटिंग में कोई ऐसी बात भी नहीं है ।
       अंकुर ने कहा कि यह रोज-रोज की बात हो गयी है । त्योहार हो या समारोह हो कुछ भी हो हर वक्त कलह से मैं तंग आ चुका हूं । किसी महिला से बातचीत कर लूं, चाहे वह मेरी रिश्तेदार ही क्यों न हो, ऐसे ऐसे शब्द निकालती है कि मेरा मन होता है कि मैं उसी वक्त आत्महत्या कर लूं । यहां तक कि.....। 
पंकज ने पूछा— यहां तक कि ... क्या । अंकुर ने कहा— तुम्हारी बहन है, और तुम्हें क्या बताउं — उन अंतरंग पलों में भी वह शुरू हो जाती है। अब मेरे ही घर में मेरा रहना भी मुहाल हो गया है। मैने कहा कि कुछ समय के लिये मायके चली जाओ, तो भद्दे आरोप लगाती है। 
 पंकज ने कहा कि ऐसा क्या कारण है जो इतने लंबे समय से ऐसा हो रहा है और उस चैटिंग में ऐसा क्या है । अंकुर ने कहा— एकमात्र कारण है एक लड़की । पंकज ने पूछा — लड़की । अंकुर ने उसकी तरफ मोबाइल बढ़ाया । पंकज ने कमल के साथ हुयी चैटिंग पढ़ने के बाद मोबाइल वापस करते हुये कहा, — हम्म, मेघा । ये मेघा कौन है । स्कूल और कॉलेज में तो तुम लड़कियों से कोसो दूर रहा करते थे और अब शादी के बाद क्या गुल खिला रहे हो ।   
      इस पर अंकुर ने पंकज को बताना शुरू किया —
      मुंबई और बेंगलुरू में काम की तरीफ मिलने के बाद मेरा तबादला कोलकाता हो गया, कोलकाता आने के बाद मेरा बेहतर काम वहां लोगों को पच नहीं पा रहा था । ऐसे में कुछ लोगों ने मेरे काम को खराब करने के लिये साजिश शुरू कर दी । मैं परेशान हो गया था । ऐसे में मेघा ने मुझे बड़ा सपोर्ट किया था । जूनियर होते हुये भी उसे मेरा मनोबल बढाने का काम किया था । लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर काम की इतनी तारीफ मिलने के बाद कोलकाता आते ही मेरे काम में ऐसी क्या दिक्कत हो गयी ।
      धीरे धीरे उससे बातचीत फोन पर भी होने लगी । आफिस एवं आफिस के इतर बातों पर भी चर्चा होने लगी। साथ काम करने और बातचीत से एक दूसरे प्रति घनिष्ठता होना लाजिमी है, हालांकि मुझे अपनी सीमाओं का ज्ञान था और उसे भी । उसके मन में मेरे प्रति मेरे आकर्षण पैदा हुआ, उसने एक दिन पूछा था कि आप भी मेरी तरफ आकर्षित हैं । मैने उसे बताया कि मेरे लिये ऐसा सोचना भी अंजलि के साथ धोखा है । बाद में मैने यह सारी बात अंजलि को बता दी । साथ ही यह भी बताया— ऐसा कुछ है नहीं । तुम्हारे प्रति ईमानदारी उतनी ही है जितनी पहले थी । मेरा उसके साथ कुछ नहीं है । हालांकि, मुझे लगता है कि यह मेरी सबसे बड़ी गलती थी।
      इसके बाद से ही मेरे बारे में उसकी धारणा की बदल गयी । कभी सीधा मुंह बात नहीं किया,हमेशा हर बात का उल्टा जवाब । हालांकि, पहले से भी उसकी ऐसी आदत थी लेकिन मैं हमेशा इसकी अनदेखी करता रहा ।
      अंकुर ने कहा, एक दिन मैने मेघा को मैसेज किया कि मेरे पास एक तस्वीर है, …दरअसल मैने उसका नंबर लंदन की एक एजेंसी को दिया था, और उस एजेंसी के इनविटेशन कार्ड के बारे में बताया कि मेरे पास एक तस्वीर है । उसका उधर से उत्तर आया कि 'मुझे लगता है कि आप ब्लैकमेल करना चाहते हैं लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दूंगी; उस दिन से मैने उससे बातचीत बंद कर दी । एक सीनियर होने के नाते मैने उसकी बहुत मदद की थी ।
     अंकुर ने कहा कि उस दिन से मैने उससे किनारा कर लिया । मैने बातचीत बंद कर दी । करीब दो साल होने हो है, एक ही आफिस में एक साथ काम करते हैं लेकिन न मैं उसे टोकता हूं और न वो मुझे । बामुश्किल पांच छह बार बातचीत हुयी होगी ।    
      पंकज ने पूछा कि तो बीच में कमल कहां से आ गया । अंकुर ने कहा कि कालांतर में मेघा और कमल अच्छे दोस्त बन गये । दोनों में बड़ी घनिष्ठता हो गयी थी । आफिस में साथ साथ चाय पीना, भोजन करना सब साथ साथ था । अब मुझे पता नहीं कमल ने अचानक उसके बारे में मेरे चैट में ऐसा क्यों लिखा ।  
दरअसल, कमल और मुझे जानने वाले का अचानक एक दिन मेरे पास फोन आया और उसने मुझसे बातचीत में पूछा कि कमल की तबीयत ठीक नहीं है क्या, मैने पूछा कि क्या हुआ, उसने बताया कि वह अस्पताल गया था । मैने कहा मुझे नहीं पता इस बारे में, और यही बात मैने चैट में कमल से पूछ दी ।
 मेघा ने उसी दिन शायद अस्पताल जाने का हवाला देते हुये आफिस में छुट्टी ली थी । इसकी जानकारी मुझे नहीं थी । कमल ने मेरी कही हुयी बात को मेघा के अस्पताल जाने से जोड़ते हुये कहने लगा— आप उसके बारे में बातचीत करना चाहते हैं इसलिये आपने मुझे ऐसा कहा है । 
      मैने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है कि मै उसके बारे में बातचीत करना चाहता हूं । आपकी गलतफहमी है । इस पर उसने आरोप लगाया कि मैं झूठ बोल रहा हूं,  जबकि, सच्चाई यह है कि दिन में पचास झूठ वह स्वयं बोलता है। 
      उसने कहा कि आजकल आप ही उसके भर्तार बने हुये हैं, इस पर मैने आपत्ति जतायी  और कहा कि मैने तो कर्टसी में पूछ दिया है क्योंकि किसी ने आपको अस्पताल में देखा और आज सुबह ही मेरे पास उसका फोन आया है । 
 इस  पर उसने फोन कर कहा कि वह मेघा के बारे में बात नहीं करना चाहता है और मैं उसके साथ बार बार उसके बारे में बातचीत कर रहे हैं । इस पर मैने उसे फटकार लगायी थी ।
 अब अंजलि ने महीने पहले हुयी इस चैट को आज पढा और उसके बाद इस तरह उसकी प्रतक्रिया आयी है ।  मैने एक बार अंजलि की मेघा से मुलाकात भी करवायी थी और फोन पर बात भी करायी थी, हालांकि दोनों के बीच क्या बातचीत हुयी यह मुझे आज तक नहीं पता । अंजलि ने बताया नहीं और मेघा से पूछा नहीं ।
       मैने अंजलि को कितनी बार ये कहा कि हम एक ही आफिस में काम करते हैं और कभी ऐसी स्थिति आती है जब बातचीत किये बगैर काम नहीं चलता है । इसका मतलब यह नहीं है कि मेरा उसके साथ कोई चक्कर है । कई बार लोग कई तरह की बात करते हैं लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि सुनने वाला भी उसमें शामिल है। लेकिन उसे समझ आये तब न ।
      अंकुर ने उदास शब्दों में कहा, खैर, तीन बज गये हैं तुम्हें गांव भी जाना है । मैं तुम्हें तुम्हारे गांव तक छोड़ता हूं । पंकज ने कहा— ये उदासी सबसे पहले अपने दिमाग से निकालो और खुश रहने की कोशिश करो । पंकज ने फिर कहा, और ये आत्महत्या वाली बात जो है न यह सब सोचना भी मत । तुम्हारा एक बेटा है और बुजुर्ग मां बाप हैं जिनको तुम्हारी सबसे अधिक आवश्यकता है ।     
      दूसरी बात, मैं अंजलि से भी बात करूंगा । लेकिन, जिस महिला को भरोसा और विश्वास नहीं है उसके लिये क्यों जान देना । यह तो गलत है । इसका दूसरा उपाय भी है । कानूनी रास्ता है अलग होने का । बल्कि मेरा मानना है कि अगर समझाने बुझाने से बात नहीं बन रही है तो आत्महत्या क्यों । पहले इस पर बातचीत करो और अगर फिर भी मामला सुलझ नहीं रहा है तो कानूनी रास्ता अख्तियार किया जाना चाहिये ।  
      पंकज ने फिर कहा— जीवन बहुत कीमती है, इसे समाप्त करने का अधिकार किसी को नहीं है । इसलिये पहले तुम ये निराशा निकालो और खुश होकर चलो ।
       

                       3
           गाड़ी अब पंकज चला रहा था । पंकज रास्ते भर अंकुर से बातचीत करने की कोशिश करता रहा । लेकिन गांव पहुंचने तक अंकुर गाड़ी में बिल्कुल शांत रहा । दोनों साथ गांव पहुंचे ।  गांव में ऐसे कई लोग थे जो अंकुर को भी पहचानते और जानते थे । शाम होते - होते पंकज कुछ काम में व्यस्त हो गया । अंकुर का किसी काम में जी नहीं लगा ।
        पंकज अपने काम में लगा था, उसने अंकुर को अपने घर पर बैठाया और उसके साथ चाय पी । पंकज ने महसूस किया कि अंकुर न केवल उदास हैं बल्कि रो भी रहा है। पंकज ने पूछा कि तुम रो क्यों रहे हो....इतने में किसी ने पंकज को आवाज दी .....और पंकज ने अंकुर से कहा तुम रूको मैं दस मिनट में आता हूं ।
        पंकज उधर गया और उसके पीछे अंकुर भी गांव से अपने घर वपस लौट गया । चलते वक्त जब लोगों ने पूछा तो उसने यह तर्क दिया कि वह पंकज को छोड़ने आया था ।
        पंकज को जैसे ही पता चला, उसने अंकुर को फोन किया । अंकुर बोला कि वह वापस जा रहा है और इतना कमजोर नहीं है कि आत्महत्या कर लेगा । पंकज ने अंकुर की मां को फोन किया और कहा कि वह किसी बात को लेकर बेहद परेशान है । वह अभी अभी यहां से निकला है । घर पहुंचने के बाद उसे अकेला मत छोड़ियेगा, मैं कल सुबह वापस लौटूंगा उसके पास । मां ने पूछा — क्या हुआ है, पंकज ने कहा— आप आज उसका ध्यान रखें । इस बारे में हम कल बात करेंगे । 
      उसी वक्त पंकज ने अंजलि को फोन किया और बोला— अंकुर बहुत परेशान लग रहा है, अभी समय ठीक नहीं है तुम उसका ध्यान रखो  और अच्छे से बातचीत करो । मैं कल सुबह आ कर बाकी बातें करूंगा, तुमसे कुछ बात करनी है । 
      इस पर अंजलि ने कहा — तो आपके पास बात पहुंच ही गयी । आप उसकी पैरवी न ही करिये । और आप क्या जानते हैं इस बारे में जो आप कल आ कर बातचीत करेंगे । 
      पंकज ने तल्ख लहजे में कहा— ये जो अहंकार है न, कहीं का नहीं छोड़ेगा तुम्हें । मुझे जो कहना था मैने कह दिया है, तुम्हें जो करना है वह तुम करो  लेकिन जो भी परिणाम होगा उसके लिये केवल तुम्ही जिम्मेदार होगी ।  
      इस पर अंजलि ने पंकज का फोन काट कर अंकुर को फोन लगाया और कहा— क्या करोगे । मुझे छोड़ दोगे । मैने कहा था न कि मैं कमजोर नहीं हूं अकेले  तुम्हारे बगैर भी रह सकती हूं । मैं आंसु बहाने वालों में से नहीं हूं । और ये क्या तुम मेरे रिश्तेदारों तक पहुंच गये । शिकायत कर आये हो या दूसरों से पैरवी करवा रहे हो, जो कहना है आ कर स्वयं बोलो । इतना बोल कर अंजलि ने फोन काट दिया ।
       अंकुर तब तक शहर पहुंच चुका था । शहर के बाहरी इलाके में स्थित वह अपने घर पहुंचा और गैरेज में गाड़ी लगा कर मां और पिताजी के साथ बैठ गया । उनसे बातचीत करने लगा । अंकुर ने मां से चाय बनाने के लिये बोला । मां ने चाय पिलायी और पूछा – क्या, बात है ।  तुम इतनी बात कर रहे हो लेकिन तुम्हारी उदासी झलक रही है । पंकज का भी फोन आया था । अंकुर ने कहा— बचपन का दोस्त है न, बिना मतलब का मेरी फिक्र उसे ही होगी । इसलिये फोन किया होगा ।      
       अंकुर ने इसके बाद बेटे को बुलाया । उसे खूब पुचकारा । गोदी में खिलाया और किंडर ज्वाय का पूरा डब्बा उसे पकड़ा दिया । मां ने कहा— ये क्या कर रहे हो । इसके पहले तो तुम सबके उपर बोलते थे कि उसे चॉकलेट टॉफी मत दो और आज तुम पूरा डब्बा इसे लेकर दे रहे हो । अंकुर ने उदास चेहरे के साथ — मुस्करा भर दिया । बेटा खुशी खुशी वहां से चला गया ।
        मां से बातचीत करते हुये अंकुर ने कहा — मां, मैं कल जाने की सोच रहा हूं । जो भी काम करना चाहता था वो सब शायद मैं नहीं कर पाउं । अब सारा काम छोटा ही करवायेगा । मां ने कहा— कहां, कोलकाता चले जाओगे, बहू और बाबू भी जायेंगे क्या । अंकुर ने कहा— नहीं मैं अकेले जाउंगा । अब  तुमको अकेले ही रहना होगा, मतलब बाबू और कनिया भी यही रहेगी । 
         मां का दिल जोर से धड़क उठा । उसने पूछा— तू ऐसे क्यों बात कर रहा है। तू बता कि कोई दिक्कत है, क्या तुम परेशान हो । कोई बात हुयी है । कोलकाता में सब ठीक है न ।  अपनी मां को नहीं बताओगे तो किसे बताओगे । अंकुर ने कहा— मां चिंता मत कर कोई परेशानी नहीं है । अगर कोई परेशानी है भी तो  मां को नहीं बताउंगा तो फिर किसे बताउंगा । 
        इसके बाद लैपटॉप लेकर तीसरी मंजिल पर बने कमरे में चला गया । तीसरी मंजिल पर एक ही कमरा था, जिसे अंकुर ने अपने लिये बनावाया था, उसे वह पेंटहाउस कहा करता था। रात को बिजली जाने पर घर के सब लोग छत पर ही बैठते थे, लेकिन अंकुर दिन में भी वहां जाता था, वह जब भी कोलकाता से लौटता तो घर में उसका अधिकतर समय तीसरी मंजिल पर बने पेंटहाउस में ही व्यतीत होता था ।
     कभी कभी रात को अंजलि के साथ बातचीत करते करते दोनों पति पत्नी उसी कमरे में रूक जाते थे । अंजलि भी कहती कि आपने अच्छा किया है कि यह कमरा बनवाया है । लाइट जाने पर भी कितना हवादार है न यह कमरा । अंकुर जब भी तीसरी मंजिल पर जाता तो अंजलि भी वहां जाने के लिये जल्दी जल्दी काम निपटाने लगती ।
       अंकुर का लैपटाप लेकर उस कमरे मे जाना सबको सामान्य लगा था । वह कमरे में बैठ कर कुछ काम करने लगा । करीब दो घंटे बाद नीचे जा कर अंकुर ने खाना लिया और उपर आ गया । पीछे से मां भी आयी । मां ने कहा कि कोई बात है, तुम चुप चुप बैठे हो । मुझे चिंता हो रही है, क्या अंजलि से कोई झगड़ा हुआ है । इस पर अंकुर ने कहा— नहीं मां, तुम चिंता मत करो । मुझे अब कोई कठिनाईं नहीं है । 
       उसने फिर कहा— मां, बाबूजी का क्या हाल है।  मां ने कहा— वह सो गये हैं । अंकुर ने फिर कहा— मैं कैसा बेटा हूं, बाबूजी के साथ समय व्यतीत करने का वक्त आया तो मैं अब जा रहा हूं । खैर, मैं चला जाउंगा तो  बाबू का भी ख्याल रखना । मेरे जाने के बाद दिल्ली से बउआ आ जायेगा, वो कुछ समय तुम लोगों के साथ रहेगा, उसे भी कहना कि बाबू का ख्याल रखे । 
      मां ने धड़कते दिल से पूछा— तू कहां जाने की बात कर रहा है और तू नीचे चल मेरे साथ । नहीं तो मैं भी आज तुम्हारे साथ यहीं ठहरती हूं  । अंकुर ने कहा—नीचे बहुत गर्मी है इसलिये मैं उपर आ गया हूं, और आप नीचे जाइये । तभी इंटरकॉम बजा । बाबूजी ने मां को बुलाया था । अंकुर ने कहा— मां आप नीचे जाइये बाबूजी आपको बुला रहे हैं । इस वक्त आपको उनकी आवश्यकता है । इसके बाद इंटरकॉम पर फोन कर मां ने अंजलि को पेंटहाउस में बुलाया लेकिन उसने काम का बहाना कर दिया और नहीं आयी । 
      मां ने नीचे आ कर अंजलि से कहा— बाबू सो गया है क्या । अंजलि ने कहा— हां । मां ने कहा— उसे हमारे पास दे जाओ और अंकुर अकेले बैठा है तुम वहां चली जाओ । उसका ध्यान रखो । मुझे चिंता हो रही है । वह किसी बात से परेशान है लेकिन मुझे बता नहीं रहा है । मैं उसके पास बैठी थी तो उसने मुझे जबरन वापस भेज दिया है और कहा है कि कोई दिक्कत नहीं है । पंकज का भी फोन आया था और वह भी चिंता जता रहा था । 
      मां ने कहा — और वह जाने की क्या बात कर रहा है, क्या वह कोलकाता जा रहा है । इस बारे में तुमने भी मुझे नहीं बाताया । अंजलि ने धीरे से कहा— आदमी को अपनी करनी का फल भुगतना पड़ता है । मां ने कहा कि क्या हो गया है ऐसा, तो अंजलि ने इस पर कोई उत्तर नहीं दिया । मां ने दोबारा पूछा उसने कहा कि उसे भी नहीं पता है कि कल जाना है ।
      बाबूजी से मिल कर मां फिर पेंटहाउस में गयी । अंकुर कुछ काम कर रहा था । मां ने कहा कि अब काम छोड़ो, और नीचे चल कर सो जाओ । बार बार सीढियां चढने में मुझे कठिनाईं होती है । अंकुर ने कहा— मां आप चिंता क्यों करती हैं । मैं बिल्कुल ठीक हूं । कोई परेशानी नहीं है । मां ने कहा— अंजलि क्या बोल रही थी, कि ....बीच में टोकते हुये अंकुर ने कहा — बोलने दो । हर बात का मैं इतना ध्यान करने लगूंगा तो पागल ही हो जाउंगा । 
अंकुर ने फिर कहा— मां आप आराम से नीचे जाइये । मैं कुछ तैयारी कर लूं । मां की चिंता बढ़ रही थी लेकिन अंकुर ने समझा बुझा कर उन्हें नीचे भेज दिया ।  
      रात के एक बज गये थे । अंजलि का फोन बजा । अंकुर का फोन था । अंजलि ने फोन की अनदेखी की। उसे लगा कि गुनगुना पानी मांग रहा होगा क्योंकि उसे सुबह उठने के बाद और रात को सोने से पहले गुनगुना पानी पीने की आदत थी । अंजलि का गुस्सा उतरा नहीं था, शायद । अंजलि ने फोन नहीं उठाया । 
     इसके कुछ देर बाद अंजलि का फोन फिर बजा । अंकुर को कोई उत्तर नहीं मिला। थोड़ी देर बाद अंकुर ने देखा तो अंजलि आनलाइन थी । व्हाट्सएप किया, उपर ही आ जाओ । अंजलि ने कोई जवाब नही दिया । पूछा बेटा सो गया है क्या । इसका भी कोई उत्तर नहीं आया । इस पर थोड़ी देर बाद फिर मैसेज आया । आ, जाओ । नहीं तो मैं चला जाउंगा । अंजलि ने कोई उत्तर नहीं दिया था । अंकुर ने फिर संदेश भेजा— जा रहा हूं । 
     अंजलि अब भी आनलाइन थी । अंकुर के सारे मैसेज देख रही थी, लेकिन अपनी जिद और अहंकार के आगे वह उसकी सुन नही रही थी । अंकुर का पुन: मैसेज आया । बेटे की तस्वीर भेजो । अंजलि ने पुन: अनदेखी की। अंकुर ने फिर बोला, अपनी एक मुस्कराती तस्वीर भेजो । अंजलि ने इस पर भी कोई उत्तर नहीं दिया तो अंकुर का मैसेज आना बंद हो गया। 
     कुछ देर में अंजलि के मोबाइल में दोबारा मैसेज रिफलेक्ट हुआ । अंकुर ने लिखा था— प्यारी अंजलि, मुझे पता है कि तुम अपनी तस्वीर भी भेजोगी और बेटे की भी । तुम ऊपर भी आओगी । तुम्हारे मन में हो रहा होगा कि मैं पानी मांग रहा हूं तो तुम गुनगुना पानी भी लेकर आओगी, लेकिन इस बार समय निकल गया रहेगा ।
      तुम्हारी पुरानी आदत है, करती को सब काम, लेकिन केवल मैने कह दिया इसलिये देरी करती हो, जानबूझ कर । मेरा कहा हुआ तुम सुन लोगी या मान लोगी अथवा वैसे ही कर लोगी तो तुम कहीं मुझसे हार न जाओ । तुम हमेशा मुझसे जीतना चाहती हो लेकिन मैं तुमसे कभी नहीं जीतना चाहता हूं । तुम्हें, डर लगा रहता है कि तुम मेरे सामने हार जाओगी । तो आज मैं यह बता रहा हूं कि जिंदगी की यह रेस तुम जीत गयी और मैं हार गया। । पता है जिंदगी सिनेमा नहीं होता है, इसलिये जिंदगी में कभी रीटेक का मौका नहीं मिलता है । तुम्हें हर बार रीटेक मिल जाता है, इसलिये तुम इसे बेहद हलके में ले रही हो । यह तो तुम्हारी शुरू की आदत है । तुम्हें वही नहीं करना होता है जो मैं ने कहा होता है । 
खैर, मुझे पता है, तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, और तुम इस बात से भी अवगत हो कि हम दोनों के बीच मेघा कहीं नहीं है लेकिन तुम खुद को उपर साबित करने के लिये जबरन यह लबादा ओढ़ कर बैठी हो कि तुम सही हो और मैं गलत हूं ।
 पंकज के फोन, मां की बात और अब अंकुर की अनुपस्थिति से अंजलि को भी नींद नहीं आ रही थी । अंकुर के इस मैसेज के बाद उसके मन में हड़बड़ाहट हुयी । हालांकि उसने अपनी जिद और अपने अहंकार के कारण  अंकुर के किसी भी मैसेज का उत्तर नहीं दिया ।            
 अंजलि का दिल धड़का और उसने सोचा कि पानी गरम करके पेंट हाउस में जायेगी । उसने मोबाइल में समय देखा, सुबह के साढ़े तीन बज गये थे । अभी वह कुछ सोच ही रही थी कि अंजलि को दोबारा मैसेज दिखा । आ रही हो या नहीं । जल्दी आओ । तुम्हारे पास पांच मिनट का वक्त है । लेकिन मैं जानता हूं, तुम नहीं आओगी । तुम्हारा अहंकार तुम्हें नही आने देगा । कोई बात नहीं । 
    दस मिनट के बाद फिर मैसेज आया — आज के बाद मैं तुम्हें कोई मैसेज नहीं करूंगा और न ही फोन करूंगा । अब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी मुझसे । कल दिन से मेरा माथा खराब था, तुम्हारी ये बेरूखी बर्दाश्त से बाहर थी । अब मैं बिल्कुल शांत हूं, लेकिन तुम्हारा बेरूखापन और तुम्हारा अहंकार मेरे और तुम्हारे बीच में दीवार बन कर खड़ा हो गया है, बेटे को देख कर इच्छा हो रही है कि नही जाऊं । लेकिन तुम बहुत मजबूत हो और तुम अकेले भी रह सकती हो, इसका अब मुझे अब भरोसा हो चला है । तुमने ठीक ही कहा था कि मैं डरपोक आदमी हूं । अब वादा करता हूं कि मेरी ओर से तुम्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी । मैं जा रहा हूं, अपने अहंकार को छोड़कर अगर रोक सकती हो तो रोक लो । मैं फिर रिपीट करता हूं, मेरी जिंदगी में मेघा कहीं नहीं है, उससे बातचीत भी नहीं है । वह केवल तुम्हारे दिमाग में है ।  दस मिनट का वक्त है तुम्हारे पास और उसके बाद परमानेंट गुड बाई ।
अंजलि चाह कर भी न तो मैसेज का उत्तर दे पायी और न ही उसके अहंकार ने उसे पेंट हाउस में जाने दिया ।         
         हालांकि, मैसेज पढ़ कर अंजलि बेचैन हो गयी । वह इसी उधेड़बुन में थी, कि वह जाये कि नहीं जाये,  10—15 मिनट बाद सुबह के चार बजे अंजलि ने अपने मोबाइल से अपनी और बेटे की एक प्यारी सी तस्वीर निकाली और उसे अंकुर के मोबाइल पर भेज दिया । तस्वीर अभी जा ही रहा था कि उसके फोन पर पंकज का फोन आया, लेकिन अंजलि ने नहीं उठाया । थोड़ी देर बाद पंकज का मैसेज आया, अंजलि जल्दी पेंट हाउस में जाओ । अंजलि का माथा ठनका । वह दौड़ के छत पर गयी तो कमरा अंदर से बंद था। तबतक अंकुर के दो दोस्त आशुतोष एवं दीपक भी पहुंच चुके थे ।  
         कमरे का दरवाजा तोड़ा गया, अंकुर फंदे से लटक रहा था । अंजलि एकदम सन्न रह गयी । 

 

                                    4
               पंकज के अलावा हर व्यक्ति इस बात से परेशान था कि हमेशा हंसते और हंसाते रहने का प्रयास करने वाले अंकुर ने आखिर यह कठोर कदम क्यों उठाया है । कमरे में लैपटाप के नीचे एक पत्र बरामद हुआ था, जिसमें अंकुर ने लिखा था कि मेरी मौत के लिये किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाये। इसके लिये कोई जिम्मेदार नहीं है । इसके लिये मैं स्वयं जिम्मेदार हूं ।  यह मेरी गलती की सजा है । मां, पिताजी और भाई से क्षमा मांगते हुये अंकुर ने लिखा था कि भाई, मैने अपनी सारी जिम्मेदारी तुम पर थोप दी । मां और पिताजी का खास ध्यान रखना और देखना कि उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हो । मैं जा रहा हूं और संभव हो तो बाबू का और अपनी भाभी का भी ध्यान रखना । 
           अंजलि का रो रो कर बुरा हाल था । उसे बार बार अंकुर की एक ही बात याद आ रही थी, - मैं जा रहा हूं । तुम आ जाओ । अंकुर ने उसे इतनी बार बुलाया था और वह पेंटहाउस में नहीं गयी । काश  वह चली जाती तो आज अकेली नहीं होती, लेकिन अंकुर की कही हुयी बात को न सुनना तो जैसे उसकी आदत सी हो गयी थी, और वह बार बार इसको लेकर चेताता रहता था कि इस देरी की उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी ।
           अंकुर की मौत के करीब 15 दिन बाद अंजलि उस कमरे में गयी, जहां शादी के बाद ससुराल में उसका अधिक समय अंकुर के साथ  व्यतीत हुआ था । कमरे में अंकुर और अंजलि की एक बड़ी तस्वीर लगी थी । उस तस्वीर के पीछे एक छोटा बाक्स नुमा रैक बना था, जो बाहर से पता नहीं चलता था। इसके बारे में जानकारी अंजलि एवं अंकुर को ही थी । अंजलि की अनुपस्थिति में उसकी पसंद की चीजें वही रखी रहती थी, अंजलि जब मायके से आती तो वहां से ले लेती । 
           अंकुर के स्टडी चेयर पर बैठी अतीत की बातें सोच रही थी, अचानक उसकी नजर तस्वीर पर गयी । उसने हटा कर उसमें देखा तो उसके नाम का एक इनवेलप पड़ा था ।  उसमें उसी रात लिखी गयी अंकुर की चिठ्ठी थी । अंजलि ने उसे पढना शुरू किया —
           प्यारी अंजलि, मुझे पता था कि मेरे जाने के बाद तुम इस कमरे में और तस्वीर के पीछे बने बॉक्स में देखने जरूर आओगी । मैने तुम्हें कहा था न कि जिंदगी और फिल्म में बहुत फर्क है। जिंदगी में रीटेक का मौका नहीं मिलता है । इस बात को हमेशा याद रखना । मैं तुम्हें जो भी कहता था उस पर तुम अमल करती थी लेकिन बहुत देर से । मैं हमेशा कहा करता था कि इस देरी की कीमत तुम्हें एक दिन चुकानी पड़ेगी । और देखा वक्त ने तुमसे कितनी बड़ी कीमत ले ली । अब तुम अकेली रह गयी हो, मुझे पता है कि यह तुम्हारे लिये सबसे अधिक पीड़ादायक है । पर आगे से ध्यान रखना ।
          तुम हमेशा मुझसे कठोर शब्दों का इस्तेमाल करके बात करती थी । मैं कहा करता था कि मैं बहुत संवेदनशील हूं, इस तरह की कठोर बातें मत करो लेकिन तुमने कभी सुना नहीं । हमेशा मुझे अपने कठोर शब्दों से घायल करती रही । तुम हमेशा मुझ पर आरोप लगाती थी कि मेघा के साथ मेरा कोई चक्कर है, अब मैने जाने का निश्चय कर लिया है, तो ऐसे में मैं झूठ नहीं बोलूंगा । मेरी बात का यकीन करो, हमारा कोई चक्कर नहीं है और न ही कोई बात होती है । दो साल हो गये, एक साथ काम करते रहने  के बावजूद पांच छह मौकों को छोड़कर हम दोनों ने एक दूसरे को कभी नहीं टोका । खैर हटाओ, मुझे पता है कि यह बात तुम जानती हो । अगर ऐसा है तो फिर जीवन में ऐसा क्या हो गया कि तुम्हें आरोप लगाने की जरूरत पड़ी ।
          मुझे लगता है कि शायद तुम्हारे दिमाग में था कि इस तरह बोल कर ओर फटकार कर रखेंगे तो यह हमेशा मेरे कब्जे में रहेगा । लेकिन जो तुम्हारा ही है उस पर कब्जा करने का प्रयास क्यों । कोई भी रिश्ता आपसी विश्वास और भरोसे पर टिकी होती है। यह विश्वास और भरोसा ही था कि तुम मेरे जैसे अनजान आदमी के साथ बेंगलुरू जैसे शहर में आ गयी । और यह मेरा भी विश्वास और भरोसा था कि मैने तुम्हारे जैसे अनजान को अपना घर सौंप दिया । फिर यह अविश्वास कहां से पैदा हो गया । मेघा की बात तो तीन साल से है लेकिन उससे पहले क्या था । तब तो मेघा को  हम जानते भी नहीं थे ।      
            मुझे पता है कि तुम अपनी बहन का घर बिखरने से परेशान हो, लेकिन इसके लिये अपना घर बिखेर लेना उचित नहीं है । तुम्हारी समस्या यही है कि तुम यथार्थ को स्वीकार नहीं करती हो । तुम कल्पना में जीना पसंद करती हो । तुमने कल्पना कर लिया कि फलां व्यक्ति ठीक है और फलां गलत, उसे ही पैमाना बना कर काम करती हो और जो उसमे फिट नहीं बैठा वह गलत । यथार्थ को स्वीकार कर लो अब भी सब ठीक हो जायेगा । 
        मैं जब भी बाहर से आता हूं,और तुमसे कोई बात शेयर करता हूं तो बजाये उस पर बात करने के तुम मुझे झाड़ना शुरू कर देती हो । कहा करती हो आपकी आदत ही यही है और इसी वहज से आपको परेशानी होती है । जीवन में हजारों परेशानियां आती हैं, लोग अपनी पत्नी से ही इसकी चर्चा करते हैं, मैं भी यही करता हूं, मुझे लगता था कि तुम बोलोगी कि कोई बात नहीं लेकिन तुम हमेशा मुझसे कड़वे शब्द में बातचीत करती थी । अब यह बर्दाश्त नहीं होता है । 
         मैं जो कहता हूं, तुम वही नहीं करती हो और करती भी हो तो बहुत अधिक समय लेकर, तुम यह जताने का प्रयास करती हो कि तुम्हें मेरी कोई परवाह ही हीं है । तुम्हारी परवाह लेकिन मुझे है, खैर कदर करने वालों को हमेशा बेकदर लोग ही मिलते हैं । अभी देखो न, मैने तुम्हें कितना मैसेज किया कि तुम आओ लेकिन तुम नहीं आयी, मुझे पता है कि तुम आने के बारे में विचार भी कर रही हो, लेकिन तुम्हारे मन में चल रहा है कि इसकी कही हुयी बात कैसे मान लें और तुम आओगी भी लेकिन तबतक सब समाप्त हो गया होगा ।
          मैं तुमसे जब भी कोई बात कहता हूं, तुम हमेशा डांट कर बात करती हो । तुम याद करना कि कोई ऐसी बात है जो मैं तुमसे बिना पूछे करता हूं । अब तो मैं जा ही रहा हूं, कभी नहीं आने के लिये । तो जब भी इस चिठ्ठी को पढ़ो, मेरी बातों पर विचार जरूर करना । अहंकार मत करना । इस जीवन में कोई तुम्हारा साथ नहीं देगा । खैर, तुम्हें किसी से कोई मदद लेने की आवश्यकता नहीं होगी,  मैने ऐसी व्यवस्था कर दी है। 
          बउआ का ध्यान रखना । अच्छे से रहना और मेरी याद मत करना । तुम्हारी नजर में मैं ऐसे भी अच्छा आदमी नहीं हूं । मैं जा तो रहा हूं, लेकिन एक बात याद रखना कि तुमने मुझे बहुत तकलीफ दी है । पर मैं हमेशा से तुम्हें प्यार करता रहा हूं ओर आगे भी करता रहूंगा । मैने पिताजी को भी पत्र लिखा है और कहा है कि वह तुम्हारी दूसरी शादी करा दें, अगर ऐसी कोई पेशकश आये उसे मेरी अंतिम इच्छा समझ कर स्वीकार कर लेना ।
            तुम्हारा अंकुर 
         पत्र पढ़ कर अंजलि जोर जोर से रोने लगी । उसके पास रोने के सिवा और कुछ बचा ही नहीं था ।
            तभी अंजलि के फोन पर पंकज का फोन बजा । अंजलि ने आंसु पोछते हुये फोन उठाया, पंकज ने कहा, कहां हो । अंजलि ने कहा — पेंटहाउस में । पंकज ने कहा कि मैने तय कर लिया था कि तुम्हें कभी फोन नहीं करूंगा लेकिन अंकुर की चाहत ने मजबूर किया है । पता है उस दिन जब सुबह मैं तुम्हें फोन कर रहा था अंकुर ने मुझे मैसेज भेजा था । उसकी स्क्रीनशॉट भेज दिया है, पढ़ लेना । तुम्हारे साथ हुयी सारी बात उसने मुझे बतायी थी और यही बताने के लिये मैने तुम्हें फोन किया था लेकिन तुम तो कसम खा के बैठी थी हमारी बात नहीं सुनने की ।
      अंजलि ने मोबाइल में देखा पंकज का मैसेज था, जिसमें अंकुर ने लिखा था — ‘‘पंकज आज दिन में मेरी तुम्हारे साथ जो भी बातचीत हुयी है वह कभी मेरे घर वालों को पता नहीं चलनी चाहिये । नहीं तो अंजलि का जीना हराम हो जायेगा । मैं हमेशा के लिये जा रहा हूं क्योंकि अब और बर्दाश्त नहीं होता है । मैने पिताजी को भी पत्र लिखा है, अंजलि की दूसरी शादी कराने में उनकी मदद करना ।’’ 
       अंजलि को काटो तो खून नहीं । लेकिन अब देर हो चुकी थी, रीटेक नहीं होना था । 
समाप्त

 

लेखक परिचय  
        टी शशि रंजन
        केमेस्ट्री में स्नातक करने के उपरांत पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिप्लोमा तथा स्नातकोत्तर, विधि में स्नातक तथा एमएससी :बीटी: करने के बाद संप्रति एक अग्रणी समाचार समिति में बतौर वरिष्ठ संवाददाता कार्यरत ।
        विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में लेखों, कहानियों, लघुकथाओं एवं समीक्षाओं का प्रकाशन ।