लघुकथा/आत्महत्या

लघुकथा/आत्महत्या
मनोज धीमान।

नहीं, अब वह और नहीं सह सकता। अब बहुत हो चुका। वह अपना जीवन समाप्त कर लेगा। वह आत्महत्या कर लेगा। अब उसे और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। वह अपना सिरपकड़े बैठा था। अपने मन में बार बार दृढ़ निश्चय कर रहा था कि आज वह इस नश्वर संसार से हमेशा हमेशा के लिए मुक्ति पा लेगा। उसके दिमाग में  स्मृतियाँ बड़ी तेजी से घूम रही थीं। बिलकुल किसी फिल्म के दृश्यों की भांति। बड़े छोटे शहर से में उसका जन्म हुआ। माता पिता बहुत गरीब थे। पढ़ने लिखने में शुरू से ही होशियार था। किसी तरह डॉक्टर बन गया। छोटे शहर से निकल कर मेट्रो सिटी में आ गया। कुछ ही समय में  उसे अच्छी खासी शौहरत मिली। घर में पैसा भी खूब आने लगा। एक बढ़िया कॉलोनी में एक बड़ा सा फ्लैट ले लिया। बड़ी गाड़ी भी खरीद ली। इसी सब के बीच उसे दो बार प्यार भी हुआ। लेकिन ये रिश्ते परवान ना चढ़ सके। सब कुछ होते हुए भी भीतर से अकेलापन उसे खाये जाता। उसकी माँ ने उसके दिल को भांप लिया। एक दिन उसे शादी के लिए राज़ी कर लिया। शादी के बाद उसके यहाँ एक बेटा और एक बेटी ने जन्म लिया। अभी उसने जिन्दंगी का आनंद लेना शुरू ही किया था कि उसकी पत्नी किसी बात से नाराज़ हो कर मायके चली गई। दोनों बच्चों को भी साथ ले गई। उसने बहुत प्रयास किये। लेकिन उसकी पत्नी लौटने को तैयार नहीं हुई। कोर्ट में तलाक की अर्जी लगा दी। वह केस हार गया। कोर्ट ने फैसला दिया कि उसके दोनों बच्चे उसकी पत्नी के साथ ही रहेंगे। आर्थिक तौर पर भी उसे काफी चोट पहुँची। उसके माता पिता भी यह सदमा बर्दाश्त ना कर पाए। पहले पिता चल बसे। दो दिन पहले माँ भी उसे अकेला छोड़ गई। उसके पास अब अपना कोई नहीं था। किस के पास जाये। किसी अपने दिल का हाल बताये। नहीं। अब और नहीं सहा जाता। वह उठा और चौथी मंज़िल पर स्थित अपने फ्लैट की खिड़की के पास पहुँच गया। इस घड़ी वह अपने आस पास से बिलकुल बेख़बर था। उसके ऊपर आत्महत्या का भूत सवार था। वह खिड़की से नीचे कूद कर आत्महत्या करने ही वाला था कि कुछ आवाज़ें सुन कर उसका ध्यान भटक गया। उसने खिड़की से नीचे देखा। रात का समय होते हुए भी स्ट्रीट लाइट की रोशनी में उसे स्पष्ट दिखाई दे रहा था। एक महिला सड़क पर पड़ी थी। घायल अवस्था में थी। "बचाओ" "बचाओ" चिल्ला रही थी। उसने देखा, कोई बड़ी तीव्र गति से एक कार को भगाये लेजा रहा था। अवश्य ही कार ने महिला को टक्कर मारी होगी। वह तेजी से नीचे की तरफ भागा। इसी बीच उसने मोबाइल पर एम्बुलेंस मंगवाने के लिए मोबाइल कर दिया। हाँफते हुए वह सड़क पर पड़ी महिला के पास पहुंचा। उस समय कॉलोनी के कुछ और लोग भी वहां पहुँच चुके थे। उसने तुरंत महिला की जांच पड़ताल की। साँसे थम चुकी थी। दिल की धड़कन रुक चुकी थी। उसने ऊपर की तरफ अपने फ्लैट की खिड़की को देखा।  फिर सड़क पर पड़ी महिला के मृत शरीर को देखने लगा। वह बार बार कभी खिड़की की तरफ देख रहा था, कभी महिला के मृत शरीर को। कुछ क्षण बाद वह चिल्लाने लगा, रोने लगा, छाती पीटने लगा। मातम मनाने लगा।
-मनोज धीमान।