समाचार विश्लेषण/नेताओं पर हमले और किसानों पर केस
-*कमलेश भारतीय
आए दिन हरियाणा में जहां किसान नेताओं का खासतौर पर सत्ताधारी दल के नेताओं का विरोध करते हैं , वहीं किसानों पर नेता केस दर्ज करवाते हैं । चाहे हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर संजीवनी अस्पताल का उद्घाटन करने आए या फिर उममुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला हिसार आए , किसानों ने इनका जमकर विरोध किया । काले झंडे दिखाये । इसी तरह टोहाना के विधायक देवेंद्र बोली का उस समय विरोध हुआ जब वे अस्पताल कोई उद्घाटन करने जा रहे थे । कभी सिरसा, कभी कुरुक्षेत्र कोई शहर इन विरोधों से अछूता नहीं । डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा की गाड़ी पर भी सिरसा में पूर्व किया गया । फिर जाम लग जाना और आम जनता का इसमें घंटों घंटों फंस जाना भी हर रोज़ की बात हो गयी है ।
अभी कल हिसार के नारनौंद में भाजपा के राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा किसी धर्मशाला का शिलान्यास करने आये तो उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंके गये और शीशे चकनाचूर कर दिये । पुलिस की जवाबी कार्यवाही में एक किसान ऐसा घायल हुआ कि आईसीयू में भर्ती करवाना पड़ा । दो किसानों पर केस दर्ज कर लिये गये जिसके चलते रामायण चली कुछ घंटे बंद रहा और आम जनता सरकार व किसानों के बीच पिसती रही । अब नारनौंद पुलिस स्टेशन के बाहर किसानों ने बाकायदा टेंट लगाकर धरना शुरू कर दिया है । वही मांग कि किसानों पर दर्ज केस रद्द किये जायें । यह कैसी एक्साइज है ? केस दर्ज और धरने प्रदर्शन के बाद रद्द । फिर क्यों पुलिस को बीच में फंसाया जाता है ?
दूसरी ओर हरियाणा के किलोई के शिव मंदिर में पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर सहित अनेक भाजपा नेताओं का घेराव कर लिया गया और जब तक हाथ जोड़ कर मनीष ग्रोवर ने माफी नहीं मांगी तब तक घेराव खत्म न किया गया लेकिन बाहर आते ही मनीष ग्रोवर यह सफाई दे रहे हैं कि मैंने कोई माफी नहीं मांगी । बस बाहर आकर राम राम बोलने को कहा था लेकिन जो वीडियोज वायरल हो रहे हैं उनमें मनीष ग्रोवर का झूठ पकड़ा जा रहा है । बाकायदा हाथ उठा कर माफी मांगते नज़र आ रहे हैं ।
किसानों के बढ़ते विरोध के चलते कुछ समय भाजपा नेता अपने कार्यक्रम स्थगित क्यों नहीं कर देते ? दूसरी ओर किसान पर अपनी फसलें संभालने के साथ ये कृषि कानून नये बोझ की तरह आ पड़े हैं तो सरकार वार्ता का द्वार क्यों नहीं खोलती ? इस तरह नेताओं के घेराव कौन सी शांति पैदा करते हैं ? किसान परेशान हैं खाद न मिलने से । फसलों के उचित भाव न मिलने से । ऊपर से ये विरोध प्रदर्शन । कहां जाएं किसान ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।