लघुकथा/बच्च न मारना
-कमलेश भारतीय
ऐसा अक्सर होता ।
मैं खेतों में जैसे ही ताजी सब्जी तोडने पहुंचता, तभी मेरे पीछे बच्च न मारना की गुहार मचाता हुआ दुममन मेरे पास आ पहुचता । थैला लेकर खुद सब्जी तोड कर देता । मैं समझता कि वह अपने लाला का एक प्रकार से सम्मान कर रहा है ।
एक दिन दुममन कहीं दिखाई नहीं दिया । मैं खुद ही सब्जी तोडने लगा । जब तक इस काम से निपटता, तब वही पुकार मेरे कानों में गूंज उठी-लाला जी , बच्च नहिं मारना । लाला जी,,,,,,
लेकिन पास आते आते वही सब्जी के पौधों और बेलों को रूंड मुंड देखकर उदास हो गया ।
एकाएक उसके मुंह से निकला- आखिर आज वही बात हुई, जिसका डर था,,
-क्या हुआ ?
-लाला जी , आज आपने बच्च मार ही दिया न,,,?
-क्या मतलब ? मैंने क्या किया है ?
-आप लाला लोग तो थैला भरने की सोचेंगे, कल की नहीं सोचेंगे। बच्च का मतलब बहुत छोटी सब्जी, जिस पर आज नहीं बल्कि कल की आशाएं लगाई जाती हैं । यदि उसे भी आज ही तोड लिया जाए तोड़ने कल आप खेतों में क्या पायेंगे ?
-अरे , गलती हो गई ।
मैं चला तोड़ने मेरा थैला किसी अपराधी की गठरी समान भारी सो गया । मैं किसी को कहा भी नही सका कि मैंने तो सब्जी ही खराब की हैं, लेकिन जो नेता अगली पीढी को राजनीति की अंधी दौड में दिशाहीन किए जा रहे हैं , वे देश के कल को बर्बाद नहीं कर रहे ?