कहानी/बदलते रिश्ते/टी. शशि रंजन
1
वैसाख महीने का अवसान होने ही वाला था। गर्मी चरम पर थी। कमरे में लगे पंखे और कूलर का गर्मी पर पहली बार कोई असर नहीं हो रहा था । कोरोना वायरस संक्रमण के कारण लोग एसी नहीं चला रहे थे । सुबह साढ़े चार बजे ही पंकज की नींद खुल गयी थी । अंधेरा भी जा ही रहा था, पक्षी भी शायद गर्मी के कारण कलरव कर रहे थे और उनकी भी दिनचर्या शुरू हो गयी थी । कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से देश भर लॉकडाउन लगाया गया था । यह बिहार में भी प्रभावी था । कुछ आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सभी प्रकार के वाहनों के लिये सुबह तक कर्फ्यू था । हालांकि, कर्फ्यू में सुबह नौ बजे तक की छूट थी । पंकज उठने के बाद पानी पी कर पहले छत पर पहुंचा और कुछ ही देर में मास्क लेकर घर से बाहर निकल गया ।
तब तक सुबह के पांच बज चुके थे । वातावरण अब पूरी तरह प्रकाशमान हो चुका था । बाहर सड़क पर अच्छी हवा चल रही थी जो मन को विभोर कर रहा था । मुख्य मार्ग पर पहुंचने के बाद पंकज को पता चला कि सैर करने वाले इक्के दुक्के लोग भी बाहर निकल कर घूम रहे हैं ।
पंकज का घर शहर के बाहरी इलाके में स्थित था । मुख्य सड़क —ढाका रोड— पर पहुंचते ही, निकट ही स्थित एक आम के बगीचे में चला गया और वहीं सैर करने लगा ।
पूरे बिहार में कोरोना का अधिक कुप्रभाव राजधानी पटना के अलावा सिवान और मुंगेर जिलों में था । बाकी जिलों में कुछ को छोड़ कर अन्य जिले ग्रीन जोन में थे । पूर्वी चंपारण जिले में भी तब संक्रमण के दो तीन मामले ही थे । इसलिये लोग बाग सरकारी निर्देशों और कर्फ्यू के प्रति कुछ लापरवाह हो गये थे ।
बगीचे में कुछ लोग सैर कर रहे थे । पेड़ों पर लगे आम के फल को देखते हुये पंकज भी सैर करने लगा कि इसी दौरान किसी ने आवाज लगायी पंकज...। पंकज जी । पंकज ने पीछे पलट कर देखा तो आशीष और अंकित खड़े थे । दोनों मोटरसाइकिल से उतरे और पंकज के पास आ गये । बीएससी करने के दौरान पंकज का आशीष और अंकित से परिचय हुआ था ।
आशीष और अंकित भी पंकज के साथ वहीं बगीचे में सैर करने लगे । हालांकि, अंकित को देख कर पंकज को कुछ खास प्रसन्नता नहीं हुयी थी । आशीष ने पूछा कि कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान, बिना मास्क के कहां घूम रहे हैं । पंकज ने हंसते हुये कहा — गर्मी की वजह से बिना मास्क लगाये बाहर आ गया हूं, मास्क जेब में है । पंकज ने निकाल कर मास्क लगा लिया ।
पंकज ने पूछा कि आप कब आये । आशीष ने कहा — मैं तो मार्च के शुरू में ही यहां आया था । सात अप्रैल की वापसी थी लेकिन लॉकडाउन की वजह से फंस गया । उसने पूछा कि ....आप । पंकज ने कहा — मैं भी होली के एक दिन बाद यहां आ गया था और 30 मार्च की वापसी थी लेकिन लॉकडाउन....।
इस पर अंकित ने कहा कि अच्छा हुआ कि लॉकडाउन की वजह से हम तीनों करीब आठ साल बाद एक साथ आमने सामने मिल रहे हैं । पंकज ने थोड़ा तल्ख लहजे में कहा — हां,...तुम तो दिल्ली में ही रहते हो, और फिर भी हमारी मुलाकात नहीं होती है । पंकज ने फिर हंसते हुये कहा — तुम्हारा ऐसा कहना एक अभिनय लग रहा है ।
आशीष ने कहा — अरे छोड़िये, बीती बातों को भूल जायें और अब हम सब उस दौर से बहुत आगे निकल चुके हैं । इसके बाद तीनों के बीच सन्नाटा पसर गया । हालांकि तीनों बगीचे में घूमते रहे ।
सन्नाटे को तोड़ते हुये आशीष ने ही दोबारा कहा — यहां से थोड़ी दूर सड़क के किनारे एक आदमी अपने घर के दरवाजे पर ही चाय बनाता है, हालांकि इस कोरोना काल में यह सही नहीं है । हम लोग वहीं चल कर चाय पीते हैं क्योंकि उसकी चाय का स्वाद बेहतरीन है ।
पंकज, आशीष और अंकित मोटरसाइकिल पर बैठे तथा चाय वाले के पास गये। वहां मौजूद दो लोग आपस में बातें कर रहे थे कि जिले में एक और कोरोना का मामला सामने आया है । पंकज ने कहा कि जिले में केवल तीन मामले ही उपचाराधीन थे, लेकिन एक और बढ़ गया । दूसरे व्यक्ति ने कहा कि पता नहीं क्या होगा पूरी दुनिया इसकी चपेट में है और मुझे तो लगता है कि यह ठीक नहीं होने वाला है ।
चाय वाले ने पंकज आशीष और अंकित को चाय का ग्लास दिया । चाय की चुस्की लेते हुये पंकज ने पूछा कि आप लोग मोटरसाइकिल लेकर कैसे निकले हैं । उसने बताया कि सुबह चार घंटे की छूट का फायदा उठा रहे हैं । पंकज ने कहा — लेकिन, यह ठीक नहीं है, अगर सभी लोग इस तरह छूट का फायदा का उठाने लगे तो जल्दी ही हम और आप सब भी इस संक्रमण की चपेट में आ जायेंगे ।
अंकित ने कहा— तुमसे मिलने की तमन्ना थी । कल सुबह मैने तुम्हें छतौनी चौक पर देखा था, उसी वक्त तय किया कि मैं और आशीष तुमसे मिलने आयेंगे ।
मैने अंकित की बात का जवाब दिये बगैर कहा — अच्छी चाय है और सच में कोरोना एवं लॉकडाउन का धन्यवाद जिसने इतने लंबे समय बाद हमारी आमने सामने की मुलाकात करा दी । जब हम अलग हुये थे तब सब लोग अकेले थे, और आज आज हम सब दो हो चुके हैं । आशीष ने कहा—कई तो तीन भी । इसके बाद जोर का ठहाका लगा । आस पास के लोग भी तीनों को देखने लगे ।
ठहाकों की गूंज के बीच अचानक शांत होकर अंकित ने कहा, पंकज । ...पंकज ने बीच में ही टोकते हुये कहा कि जो बीत गयी सो बात गयी । आप अब उस घटना पर चर्चा नहीं करें, 7—8 साल बाद अब उन बातों के लिये कोई जगह नहीं है और मैने तो कभी उसके लिये आपको दोषी माना ही नहीं, क्योंकि मेरा मानना है कि सब भाग्य का खेल है । अंकित चुप हो गया। चाय समाप्त हो चुकी थी । चाय समाप्त होने के बाद भी तीनों वहां देर तक कुछ नयी कुछ पुरानी और कुछ कोरोना की बातें करते रहे ।
आशीष ने कहा — हमलोग अपने शहर में हैं तो हम सबको कोरोना काल में लोगों की, खास कर जरूरतमंद कोरोना संक्रमितों एवं उनके परिजनों की मदद करने का संकल्प लेना चाहिये । पंकज ने कहा— हां संकल्प लीजिये क्योंकि हमारे जिले में अब भी कुल तीन ही मामले हैं और जब बढ़ेगा तब देखेंगे कि संकल्प कितना मजबूत है ।
पंकज ने कहा — इसकी जली हुयी चाय का स्वाद बहुत बढिया है, क्या हम एक—एक और चाय पी सकते हैं । आशीष ने कहा क्यों नहीं, पांच रुपये में इतनी अच्छी चाय..... अभी मैं इस पर कुछ कहता कि अंकित अचानक बेहोश होकर गिर गया। मैं, आशीष तथा वहां मौजूद अन्य लोग घबरा गये । मैने सोचा कि अब क्या करें।
आशीष ने कहा — अरे इसे कोरोना तो नहीं हो गया, तीन चार दिन पहले इसने तेज बुखार की शिकायत की थी और आशीष के ऐसा कहने के बाद मुझे भी महसूस हुआ कि वह दिखने में थोड़ा कमजोर सा लग रहा है ।
चाय वाले से पानी लेकर पंकज ने उसके मुंह पर पानी का छींटा मारा तो उसे होश आ गया । पंकज ने पूछा — क्या हुआ । उसने कुछ नहीं बोला । अंकित ने कहा— आशीष, घर चलो । मैने कहा— रूको, यहीं पास में एक डॉक्टर का घर है । मेरा परिचित है । मैने अंकित से कहा कि तुम्हें बिल्कुल भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है । हम पहले डॉक्टर के पास चलेंगे । यह बोलते हुये पंकज ने आशीष की तरफ देखा । तभी आशीष ने कहा— मुझे कुछ जरूरी काम है और जाना है और वह कुछ कहे सुने बगैर अंकित को वहां छोड़ कर चला गया ।
इसके बाद अंकित को लेकर पंकज डॉक्टर के पास गया । उन्होंने अलग से देखने के बाद पंकज से कहा — इसे सदर अस्पताल ले जाओ क्योंकि इसका कोरोना जांच कराना आवश्यक है । पंकज ने कहा — मेरे पास कोई सवारी नहीं है । उन्होंने कहा कि एम्बुलेंस से ले जाओ ।
पंकज ने तुरंत पूछा — अगर यह संक्रमित है तो मुझे संक्रमण का कितना खतरा होगा । डॉक्टर ने पंकज को मास्क, ग्लव्स एवं सेनेटाइजर देते हुये कहा कि या तो तुम भी संक्रमित हो चुके हो और अगर नहीं हुये हो तो इससे बचाव हो सकता है और हां, इससे थोड़ा अलग ही रहना ।
डाक्टर ने कहा कि अस्पताल में तुम्हारा भी कोरोना जांच होगा । डॉक्टर ने दोबारा कहा कि पंकज, तुम अस्पताल में अपने बारे में यह कहना कि तुम्हारे घर में पर्याप्त जगह है और रिपोर्ट आने तक या इसके बाद भी अपने घर में ही क्वैरेंटाइन में रहोगे, क्योंकि यहां की स्थिति तुम्हें पता ही है । उन्होंने बताया कि जो स्थिति है उससे ऐसा लगता है कि कोरोना संक्रमित होने पर अंकित को अस्पताल में भर्ती कर लेगा ।
इसके बाद पंकज ने अंकित का मोबाइल लेकर अपनी मां को फोन कर अंकित से हुयी मुलाकात एवं अस्पताल जाने की कहानी बतायी और वहां से उसे लेकर सदर अस्पताल के लिये निकल पड़ा ।
2
पंकज और अंकित सदर अस्पताल पहुंचे । वहां बताया गया कि दोनों का कोरोना जांच होगा । पंकज तो कोरोना जांच के नाम से डर गया और संस्थागत पृथकवास में रखे जाने की कल्पना करने लगा । चूंकि, जिले में संक्रमितों की संख्या कम ही थी इसलिये संस्थागत पृथकवास की पूरी संभावना थी ।
इसी दौरान अंकित के फोन पर पंकज की मां का फोन आया। मां ने पंकज से पूछा कि क्या उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया । पंकज ने कहा, नहीं....हां । मां ने कहा कि तुरंत वापस आ जाओ । पंकज ने कहा कि मां वह अकेला है । मां ने पूछा— ये अंकित वही है न...याद करो तब दिल्ली में तुम भी अकेले ही थे और उसने कितना बड़ा धोखा दिया था, याद है न। मैने कहा — लेकिन मां, मैं अंकित नहीं हूं, वह उसका आचरण था, और यह मेरा व्यवहार है । पंकज ने कहा ...क्योंकि ... आपने हमें ऐसा ही सिखाया है और आपको पता है कि मैं ऐसा ही हूं । पंकज ने कहा कि फिर भी मैं जल्दी ही आने का प्रयास करता हूं । पंकज ने मां को अपने कोरोना जांच की बात नहीं बतायी थी ।
फिर पंकज ने पत्नी को फोन कर कहा कि गैरेज में उसके लिये बिस्तर लगा दे । उसने पूछा कि क्यों । पंकज ने कहा कि अभी के लिये इतना ही कि मुझे पृथकवास में रहना है, बाकी बातें शाम को वापस आने के बाद बताउंगा ।
इस बीच अंकित और पंकज का नमूना ले लिया गया । पंकज और अंकित अलग अलग थे । अंकित को भर्ती कर लिया गया था और पंकज अपनी बारी का इंतजार कर रहा था । पंकज बुरी तरह डर गया था । तभी एक नर्स आयी और पू्छा कि आपको भी अस्पताल में ही रहना होगा । पंकज ने पूछा पृथकवास में रहना है न । उसने कहा — हां । पंकज ने कहा कि मैं घर पर रह लूंगा । उस नर्स ने पूछा कि पक्का रह लेंगे न, आपके घर में अलग से कमरा है न, जहां कोई आ नहीं सके । पंकज ने कहा कि हां है और वहां किसी की पहुंच भी नहीं है । नर्स ने कहा कि ठीक है । इसके बाद फिर उसने पूछा कि इस मरीज के साथ कौन है । पंकज ने कहा कि मरीज के साथ कौन है, मैने कहा शाम तक कोई न कोई आ जायेगा । नर्स ने पंकज से कहा कि आप उस तरफ मत जाईयेगा जहां कोविड मरीज भर्ती हैं क्योंकि आपमें संक्रमण का कोई लक्षण नहीं है । इसके बाद उसने कहा कि आप इसके साथ — साथ कहां गये थे, किस किस से मिले थे । सबका नाम और पता नोट करा दीजिये ।
नर्स ने फटकार लगाते हुये कहा कि जब इसे बुखार था, तब इसके साथ कहीं जाने की क्या जरूरत थी । आप पढ़े लिखे लगते हैं और इस बात को समझिये कि अगर यह संक्रमित निकला तो न जाने और कितने लोग संक्रमित हुये होंगे । पंकज ने पूछा — मैडम, वह ठीक तो हो जायेगा न । नर्स ने उसकी तरफ तरफ देख कर कहा था कि चुप चाप बैठे रहिये ।
पंकज ने अंकित की मां को फोन कर दिया था । वे लोग गांव में थे, अंकित और उसके भैया मोतिहारी में ही थे । अंकित के भाई ने कहा था कि उसे आने में चार घंटे लगेंगे ऐसा उसकी मां ने पंकज को बताया था।
पंकज को लगा कि अब उसका घर लौटना आवश्यक था क्योंकि उसे इस बात की जानकारी थी कि पिताजी बेचैन रहेंगे, इसलिये पंकज ने घर जाने की बात नर्स को बतायी थी । नर्स ने कहा कि आपको एम्बुलेंस में भेजा जायेगा और इसमें वक्त लगेगा, आप फिलहाल आप इंतजार करिये ।
अंकित को भर्ती कर लिया गया था, एक रिपोर्ट में उसमें शूगर की कमी का पता चला था । रक्तचाप भी सामान्य से कम था, इसके अलावा अंकित को बुखार भी था, और इन्हीं कारणों से अंकित बेहोश होकर गिर गया था । अस्पताल में पंकज को बताया गया था कि कुछ और जटिलतायें हैं और अंकित को लेकर पंकज परेशान था ।
अंकित के भैया आ गये थे, पंकज से एक मीटर की बजाये चार पांच मीटर दूर खड़े होकर वह बात कर रहे थे । वह अंकित को लेकर चिंतित थे । हालांकि, पंकज के साथ बातचीत करने के तुरंत बाद वह वापस लौट गये । घर जाने से पहले पंकज ने आशीष को भी इसकी जानकारी दी और कहा कि वह न केवल अपने परिजनों से अलग रहे बल्कि स्वयं की भी कोरोना जांच कराये ।
शाम को एम्बुलेंस से पंकज घर पहुचा । घर एवं गैराज को स्वास्थ्यकर्मियों ने सेनिटाइज कर दिया था। इसके बाद पंकज को उन्होंने कुछ आवश्यक निर्देश दिये और वापस लौट गये । उनके जाने के बाद पंकज की मां बिगड़ गयीं। उन्हें पता चल चुका था कि पंकज को पृथकवास में रहना है । उन्होंने पंकज से कहा कि अंकित ने तुम्हारे साथ क्या व्यवहार किया था, फिर भी तुम उसके साथ चले गये । तुम तो किसी की बात सुनते ही नहीं हो । तुम्हारे पास न तो मेरी बात का कोई महत्व है, और न ही तुम्हारी पत्नी का । अंकित को अगर कोरोना हुआ तो तुम भी चपेटे में आओगे, फिर मैं देखूंगी कि तुम्हारे लिये यहां कौन आता है। लगे रहो समाज सेवा में ।
पंकज ने पिताजी के बारे में पूछा तो मां ने कहा कि अंदर हैं । मां मेरी तरफ आने लगी तो मैने उन्हें रोका और गैरेज की ओर देखा ....वहां पंखा रखा हुआ था । मुझे लग गया कि वहां व्यवस्था हो गयी है। मां ने कहा कि हाथ पैर धो लो और नहा कर अंदर आओ ।
मैने पत्नी के बारे में पूछा तो उन्होंने अंदर जा कर.....उसे बाहर भेज दिया । मैने उसे सारी बात बतायी और कहा कि मुझे 21 दिन तक पृथकवास में रहना होगा इसी गैरेज में । तुम चिंता मत करो ... मुझे कुछ नहीं होगा । बस मां को संभाल लेना और उन्हें कोरोना जांच के बारे में मत बताना ।
पंकज को कल होकर पता चला कि अंकित की कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव आयी है । पंकज के फोन पर जेसे ही मैसेज आया, उसका दिल धक से रह गया । इसके तुरंत बाद पंकज ने नर्स को फोन किया और पूछा — मेरी रिपोर्ट, नर्स ने कहा कि आपने अच्छा काम किया है, इसलिये भगवान आपके साथ कभी बुरा नहीं होने देंगे । आपके नमूने की जांच में संक्रमण की पुष्टि नहीं हुयी है। पंकज को थोड़ी राहत मिली ।
नर्स ने कहा कि आपको फिर भी पृथकवास में रहना होगा । कम से कम 14 दिन तक । बच्चों को पास नहीं आने दें और न ही आप किसी के पास जायें । पृथकवास की अवधि के दौरान पंकज के नमूने का तीन बार जांच हुआ और तीनों बार उसके नमूनों में संक्रमण की पुष्टि नहीं हुयी । 14 दिन बाद पंकज से कहा गया कि अब उसमें कोरोना का संक्रमण नहीं है । पृथकवास के दौरान पंकज को कोई लक्षण भी नहीं दिखाई दिया । चिकित्सकों की सलाह के बावजूद उसने एक हफ्ते और पृथकवास में रहना जरूरी समझा ।
पंकज को पता चला कि अंकित की रिपोर्ट दो बार पॉजीटिव आयी थी । फिर वो दिन भी आया जब उसके बाद, उसकी अन्य रिपोर्ट निगेटिव आयी और करीब छह सात हफ्ते बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दी गयी । नर्स ने पंकज को बताया कि आपकी चौथी रिपोर्ट भी निगेटिव आयी है इससे यह तो स्पष्ट है कि आपको समस्या नहीं है लेकिन फिर भी सावधानी बरतने में कोई हर्ज नहीं है । पंकज ने नर्स से पूछा कि अब क्या वह अस्पताल आ सकता है । इस पर नर्स ने कहा कि आवश्यक नहीं हो तो आने की जरूरत नहीं है । पंकज ने अंकित के बारे में पूछा तो नर्स ने हंसते हुये कहा कि आप आ सकते हैं ।
नर्स ने अंकित के बारे में पंकज से कहा कि इन्हें अगले 14 दिन तक घर में भी पृथकवास में रहना होगा और आपको भी इनसे 14 दिन तक दूर ही रहना होगा । पंकज ने पूछा कि क्या मैं इसके साथ इसके घर जा सकता हूं । नर्स ने कहा— हां लेकिन सोशल डिस्टेंस और सभी सावधानियों का पालन करते हुये और न जायें तो बेहतर है।
अंकित का भाई उसके बाद कभी नहीं आया था । पंकज ने उसके बारे में जानने के लिये कई बार नर्स से संपर्क किया था और जिस दिन उसे अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी, उसने अपने भाई को अस्पताल आने से मना कर दिया था ।
नर्स ने कहा— पंकज जी, अंकित आपका कौन है । पंकज ने कहा — मेरा दोस्त है। नर्स ने कहा— आप लोगों ने साथ साथ पढ़ाई की है । पंकज ने हां में सिर हिलाया । नर्स ने बताया कि वह आपके बारे में पूछ रहा था और बहुत रो रहा था । अंकित ने मुझे बताया कि उसने आपके साथ बहुत बुरा किया है और आप हैं कि शुरू से उसके साथ अच्छा ही कर रहे हैं ।
पंकज ने हंसते हुये कहा कि बेवकूफ है । छोड़िये उसकी बातों को । उसे छुट्टी कब मिलेगी । नर्स ने कहा कि बस कुछ ही देर में । नर्स ने बताया कि उसने अपने भाई के साथ जाने से मना कर दिया है । उसने मुझे कहा कि पंकज के आने बाद ही उसे छुट्टी दी जाये और वह आपके साथ ही अपने घर जायेगा । पंकज ने नर्स से कहा कि मुझे पता है, इसलिये मैं आया हूं ।
नर्स ने अंकित के लिये एम्बुलेंस आने तक पंकज को बाहर ही इंतजार करने के लिये कहा । एम्बुलेंस आने के बाद नर्स ने पंकज पर सेनेटाइजर का छिड़काव किया, ग्लव्स दिये और एक कैप भी दिया । नर्स ने कहा कि जबतक आप दोनों साथ हैं इसे मत हटाईयेगा और अपने घर जाने के बाद कपड़े, जूते एवं शॉक्स आदि तत्काल निकाल कर हटा दीजियेगा । इसके कुछ ही देर बाद पंकज और अंकित उसके घर पर थे, अंकित की पत्नी अपने मायके से और मां गांव से मोतिहारी स्थित अपने घर पर आ गयी थी ।
3
अंकित की मां ने पंकज का धन्यवाद किया तो पंकज ने कहा कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है । पंकज ने कहा कि अंकित उसका दोस्त है । पंकज ने फिर कहा कि — मैं तो इसे किसी भी सूरत में अकेला नहीं छोड़ सकता था क्योंकि ऐसी स्थिति में जब आपको किसी की जरूरत होती है और ऐसे में कोई अपना नहीं होता है तो क्या परेशानी होती है वह मुझसे बेहतर कौन जान सकता है । अंकित की माताजी ने कहा — संकटकाल में ही दोस्तों की पहचान होती है बेटे । मैं लॉकडाउन के कारण गांव से उस वक्त निकल नहीं पायी थी और उसका भाई यहां रहते हुये भी वह सब नहीं किया जो तुमने किया है।
हॉल में बैठा अंकित अचानक रोने लगा । उसकी मां घबरा गयी । उसकी मां और उसके पिताजी ने पंकज की तरफ देखते हुये पूछा कि क्या हुआ । वो लोग उठ कर उसकी तरफ गये । मैं अपनी जगह पर शांत बैठा था । अंकित मेरे पास आया और नीचे जमीन पर ही बैठ गया । इसी बीच उसकी पत्नी भी आ गयी थी ।
अचानक अंकित ने मेरी ओर हाथ जोड़ते हुये कहा कि मुझे माफ कर दो पंकज। मैने बहुत बड़ी गलती की है और पिछले आठ साल से उस गलती की वजह से मैं बेचैन हूं । मैं बहकावे में आ गया था । हालांकि, उसमें मेरी गलती नहीं थी । मैं बस दूसरे के बहकावे में आ कर इतनी बड़ी गलती कर दी । पंकज अभी कुछ बोलना चाह ही रहे थे कि उसकी मां ने कहा कि तू किस गलती की बात कर रहा है अंकित। फिर उन्होंने पंकज की तरफ देख कर पूछा कि ये क्या बोल रहा है।
पंकज ने अंकित को उठा कर सोफे पर बिठाया और बोला जाने भी दो मैने तो कुछ कहा ही नहीं है अब तक । मैने उस दिन भी तुम्हें मना किया था । पंकज ने कहा — मैने कभी इसके लिये तुम्हें दोषी नहीं ठहराया और अगर ऐसा होता तो मैं तुम्हारे साथ नहीं आता । पंकज ने थरमस से निकाल कर अंकित को पानी पिलाया । अंकित के माता पिता आश्चर्य से हम दोनों की ओर देख रहे थे । पानी पीने के बाद अंकित ने अपने माता पिता से कहना शुरू किया —
''कुछ साल पहले पंकज लंबे समय तक बीमार थे, यह तो आपको पता ही है, लेकिन क्या आपको इस बात की जानकारी है कि इसका कारण मैं था । क्या आपको इसकी जानकारी है कि पंकज यूपीएसी में बेहोश हो रहा था और इसका फोन आता रहा लेकिन देख कर भी मैने अनदेखा कर दिया था । इसके बाद कई बार इसके फोन से वहां मौजूद दूसरे लोगों ने भी फोन किया लेकिन मैने तब भी कोई उत्तर नहीं दिया और जानते हुये कि इसकी तबीयत बिगड़ रही है, मैने इसे मरने के लिये छोड़ दिया था और अब जब मैं गिर गया तो इसने अपने जान की परवाह किये बगैर मुझे अस्पताल पहुंचाया और मेरा सबसे करीबी दोस्त मुझे छोड़ कर भाग निकला कि कहीं उसे भी कोरोना नहीं हो जाये ।''
पंकज ने खड़ा होते हुये कहा— अंकित, इसकी कोई जरूरत नहीं है। बिल्कुल नहीं। तुम आराम करो और इस बारे में किसी से कोई बात करने की जरूरत नहीं है ।अंकित ने पंकज का हाथ खींच कर उसे बिठा दिया और कहा — मुझे बताने दो । पंकज ने कहा— तुम्हें बीमार होने के लिये मैने ठीक नहीं करवाया है ।
अंकित ने पंकज की बात को अनसुनी करते हुये अपनी मां से कहा, ''अब तक लोगों को यह पता है कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा का साक्षात्कार खराब होने की वजह से इसने नींद की दवाईयां खा कर आत्महत्या करने का प्रयास किया था।लेकिन इसके पीछे की सचाई कुछ और ही है जो मैं जानता हूं । मेरे सामने सब लोग पंकज को इसके लिये कोसते रहे और मैं संकीर्णता के कारण कुछ बोल नहीं पाया । लेकिन मेरा यह यार तो बड़ा दिलदार निकला । उस दिन जब पुलिस ने इससे पूछा तो इसने किसी का नाम नहीं बताया और आज भी ....।'' अंकित अपना शब्द पूरा नहीं कर पाया था और रोने लगा ।
अंकित ने अपनी मां की तरफ देखते हुये कहा, ''बहुत पुरानी बात है जब मैं, अर्पित और आशीष दिल्ली के मुखर्जी नगर में रहते थे । हम सब वहां सविल सर्विसेस की परीक्षाओं की तैयारी के लिये गये थे ।''
इससे पहले यहां कॉलेज में केमेस्ट्री विभाग का हर एक प्रोफेसर पंकज की तारीफ करते थे । पंकज को कई बार दूसरी कक्षाओं और यहां तक की बीएससी के अंतिम वर्ष की कक्षा में समझाने के लिये ब्लैक बोर्ड पर बुलाया जाता था । विभाग के तमाम प्रोफेसर उसकी इस क्षमता के लिये उसकी तारीफ करते थे । इस तारीफ से कक्षा के कई सहपाठी जलते थे । इन्हीं जलने वालों में से अर्पित भी था ।
स्नातक पास करने के बाद हम सब दिल्ली चले गये लेकिन एक दो साल बाद पंकज दिल्ली आया था और हमारे साथ ही रहने लगा । पंकज ने हम सबके पढाई का तरीका ही बदल दिया था, जिसका परिणाम है कि आज मैं या कई अन्य लोग नौकरी कर रहे हैं । इसके लिखे नोट्स की बदौलत जब हम परीक्षा पास कर नौकरी कर रहे थे तब यह अस्पताल में पड़ा था ।
अंकित ने आगे बताया — मैने और पंकज ने सिविल सर्विसेस की प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली थी और अर्पित पास नहीं हुआ था । मुख्य परीक्षा में मैं भी पास नहीं हुआ लेकिन पंकज पास कर गया। अब अर्पित साजिश करने लगा था । उसने पहले भी मुझे पंकज का प्रवेश पत्र गायब करने की बात कही थी । मैने तब मना कर दिया था कयोंकि मैं और पंकज एक ही कमरे में रहते थे । ऐसे भी कॉलेज के समय से ही हम दोनों की करीबी थी ।
अर्पित ने मुझे कहा था — पंकज किसी जिले का कलेक्टर या एसपी बन जाये यह मुझे बर्दाश्त नहीं होगा, मैं नहीं तो वो भी नहीं । आशीष ने भी इस पर सहमति जतायी थी । अर्पित के बहकावे में आने के बाद मुझे भी लगने लगा था कि हमलोग पंकज के सामने छोटे पड़ जायेंगे । जो आशीष उस वक्त अथवा आज भी मेरा खैरख्वाह बन रहा था, वह जरूरत के वक्त भाग गया और फोन कर हाल चाल भी जानने का प्रयास नहीं किया ।
अंकित ने कहा — आपलोगों को शायद नहीं पता, पंकज को साक्षात्कार में जाना था । मैने बहकावे में आ कर अंकित की साजिश के मुताबिक उसका प्रवेश पत्र छिपा दिया था । बहुत खोजने के बाद पंकज सभी तैयारियों के साथ बिना प्रवेश पत्र के ही जाने के लिये तैयार हुये । अर्पित को लगा कि कहीं बोर्ड इसको साक्षात्कार में बैठने की अनुमति न दे दे । इसलिये उसने उसके नाश्ते में नींद की गोलियां पीस कर मिला दी थी । मैने उसे ऐसा करने से रोका था, लेकिन यह बात मैने पंकज को नहीं बतायी। और आज तक इसने एक बार भी इसकी शिकायत तक मुझसे नहीं की और न ही किसी को इस बारे में बताया है ।''
इतना बोल कर अंकित जोर जोर से रोने लगा और मेरे पास आ कर बोला — मैं इर्ष्या के कारण तुम्हें अस्पताल पहुंचाने भी नहीं गया था और तुमने मुझे बचाने के लिये अपने जान की परवाह नहीं की । मुझे माफ कर दे यारा, बहुत बड़ी गलती हो गयी ।
अंकित की आंखों में पश्चाताप के आंसु थे । शायद उस वक्त उसने अपने रिश्ते बदले थे । पंकज ने देखा कि अंकित की पत्नी और उसके माता पिता के आंखों से भी आंसु की निर्मल धारायें बह रही थी ।
अंकित को बिस्तर पर बिठा कर पंकज बिना कुछ बोले अंकित के घर से निकल गये थे ।
समाप्त
लेखक परिचय
-टी शशि रंजन
केमेस्ट्री में स्नातक करने के उपरांत पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिप्लोमा तथा स्नातकोत्तर, विधि में स्नातक तथा एमएससी (बीटी) करने के बाद संप्रति एक अग्रणी समाचार समिति में बतौर वरिष्ठ संवाददाता कार्यरत ।