किरीट की भागवद कथा
-कमलेश भारतीय
हिसार में आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
हिसार के अग्रसेन भवन में प्रसिद्ध कथावाचक किरीट पांच दिनों से भागवद कथा कर रहे हैं और उनका कथा कहने का प्रवाह,लय और बीच बीच में आज के समाज पर टिप्पणियों से वे अपना संदेश भी दे देते हैं। जैसे किरीट ने कथा के बीच दुख व्यक्त करते कहा कि आज नवजात शिशु भी मां की लोरी से नहीं बल्कि सोशल मीडिया से संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। मां बाप के पास संस्कार देने का समय ही नही। बस, अंधाधुंध पैसा कमाने की दौड़ में फंसे हैं।
दूसरी बात भी कथा के बीच संदेश देते कही कि तीस साल पहले कथा के बीच मैं कहता धा कि वर व वधू की कुंडली मिलनी चाहिए लेकिन अब मैं कहता हूँ कि लड़की और होने वाली सास की कुंडली मिलनी जरूरी है।
वैसे आज की भागवद कथा श्रीकृष्ण के जन्म से शुरू होकर गोवर्धन पर्वत को ऊंगली पर उठा कर इंद्र देव का अभिमान तोड़ने पर संपन्न हुई। अंत मैं जमकर महिलाओं ने रास रचाई व कितने ही बच्चों को कृष्ण राधा बनाकर लाया गया था।
श्रीकृष्ण के जन्म का कंस की कारागार में जन्म, यमुना के पानी का वासुदेव के गले तक आ जाना और शिशु रूप में उनके पांव छूकर रास्ता दे देना, गोकुल में आनंद मनाया जाना, जिसे इस तरह वर्णन किया :
जो रस बरस गोकुल में
सो रस तीन लोक में नाहिं!
सो रस बैकुंठ में नाहिं!
इस तरह जन्म से लेकर गोवर्धन पर्वत को ऊंगली पर उठा लेने के दृश्यों को साकार कर देने की कला किरीट की रोचक भागवद कथा में स्पष्ट सामने आती है। यही कारण है कि दिन प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा लोग कथा सुनने उमड़ रहे हैं। किरीट कहते हैं कि यंत्रवत भगवान् की पूजा न करें, नहीं तो कोई आनंद नहीं आयेगा। पूजा स्वाभाविक होनी चाहिए, बाहर से की गयी पूजा से दिल पूजा में नहीं लगेगा।
गोकुल में नंद के घर श्रीकृष्ण के शिशु रूप में पहुंच ने पर मधुर सुर में गाते हैं:
नंद के आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की!
इस बीच महिलाएं खूब रास करती हैं।
लेकिन किरीट संदेश देते हैं कि मंत्री प्रलोभन में न फंसें। इंद्रियों को वश में रखने वाला ही सम्मान पाता है। फिर पूतना बध का प्रसंग आने पर कहते हैं कि पूतना का अर्थ अपवित्र होना है। आज मांयें अपने बच्चों को लोरी नहीं सुनायीं बल्कि सोशल मीडिया से संस्कार मिल रहे हैं बच्चों को! इसलिए वे गाते हैं :
मन भूल मत जाइयो
राधा रानी के चरण!
वे कहते हैं जब शिशु रूप में श्रीकृष्ण पूतना का जहर पी जाते हैं तब पूतना अपने असली रूप में आ जाती है। वे कहते हैं कि नकली चेहरा और झूठ नहीं चल सकते!
दुनिया में तारों के भय से
चांद छुप नहीं सकता!
सूरज छुपे नहीं
बादल छाइयो !
भीड़ परे राजपूत छुपे नहीं
चंचल नारी के नैन छुपे नहीं
प्रीत छुपे नहीं
लाख छुपाओ!
किरीट कहते हैं कि प्रार्थना में जब तक आंसू नहीं, प्रार्थना पूरी नहीं होती! संस्कार क्या हैं? ज़िन्दगी को व्यवस्थित करना! नहीं तो यह चलेगी कैसे?
फिर आगे कथा में माखन चोरी, मिट्टी खाने की शिकायत पर यशोदा मैया को ब्रहमाण्ड दिखाना और गोवर्धन को उठा लेने तक आकर किरीट कथा को विराम देते संदेश देते हैं कि भक्ति के लिए कोई समय, स्थान व सामग्री जरूरी नहीं। यह कार्य के दौरान भी की जा सकती है। कालिया मर्दन एक प्रकार से अहंकार का मर्दन है।
किरीट कथा के अंत में रास के लिए पूरा समय देते हैं क्योंकि आज सायं की कथा रास रूप का ही वर्णन करने वाले हैं।