पुस्तक समीक्षा - `अँधेरे में से …'
दिलीप कुमार पाण्डेय द्वारा लिखित पुस्तक `अँधेरे में से…' 81 कविताओं का एक अमूल्य काव्य संग्रह है। इन काव्य रचनाओं में न केवल कवि का अनुभव बल्कि जीवन के कड़वे सत्य उजागर होते हैं। गरीब, मजदूर के साथ हो रहे शोषण की बात उजागर होती है। साथ ही देश में फैले भ्रष्टाचार को भी नंगा किया गया है। कवि द्वारा माता-पिता, दादा-दादी इत्यादि रिश्तों को दिल की गहराइयों से स्मरण किया जाता है। बचपन की सुनहरी स्मृतियों को समेट लेने का प्रयास किया जाता है। सभी काव्य रचनाएँ धाराप्रवाह चलती हैं। भाषा सरल है। लेकिन, भाव गहरे हैं। पाठक शब्दजाल में कहीं नहीं फंसता। बल्कि, शब्दों की धारा में बह कर कवि के भावों में कहीं खो जाता है। वह कवि की स्मृतियों में अपनी स्मृतियों की तलाश करने लगता है। कवि की रचनाओं में कहीं-कहीं व्यंग भी दिखाई देता है। जैसे -
`तुम्हें
चुप रहना भी नहीं आया
कुतरते रहे
चिपकते रहे
घाव गहरे करते रहे
टांग अड़ाने में जो ठहरे'
(वजूद की हत्या/ पृष्ठ:18)
कवि झोपड़पट्टी में बस्ते लोगों के दर्द को अपना दर्द मानता है तभी तो उसने लिखा -
`दफ़न कर दी गई मानवता
ढहा दी गई सहानुभूति
चर्चा महज़
औपचारिक होकर रह गई
केवल पूंजीपतियों पर केन्द्रित
क्योंकि
अगले शिकार में फिर कोई
झोपड़ी निशाने पर थी'
(अतिक्रमण / पृष्ठ: 46)
कवि द्वारा व्यवस्था पर भी सवालिया निशान खड़े किये जाते हैं जो वर्तमान के सन्दर्भ में बहुत प्रासांगिक लगते हैं। कवि लिखता है -
`मौन क्यों है निर्वाचन आयोग ?
और चुप्पी साढ़े है कानून व्यवस्था ,
संरक्षण क्यों मिलता है, इन अनपढ़ और खतरनाक
अपराधियों को ?
कैसे होगा समृद्ध समाज ?'
(मक्कार मुखिया /पृष्ठ: 86)
कवि नैतिक-अनैतिक मूल्यों का उल्लेख भी करता है -
`जब जेब भर जाती है
अच्छी खासी
तब सवाल नहीं उठता कि
कैसे भरी ? कब भरी ?'
(भरी जेब/ पृष्ठ: 107)
कवि भी आमजन में से एक है। तभी तो वह लिखता है -
`रोटी और दाल की जुगत में
इधर से उधर भटकता हूँ
मैं कबीर, रहीम
तुलसी और मीरा के कर्म पथ
को अपने दिल में लिए
फिरता हूँ।'
(शहर मौन है /पृष्ठ: 114)
इससे पूर्व दिलीप कुमार पाण्डेय का काव्य संग्रह `उम्मीद की लौ' (वर्ष 2021) प्रकाशित हो चुका है। अन्य दो पुस्तकें भी प्रकाशनाधीन हैं। साहित्य जगत को उनसे बहुत उम्मीदें हैं। इन उम्मीदों को `अँधेरे में से ' ने एक नई उम्मीद जगाई है।
पुस्तक का प्रकाशन आस्था प्रकाशन द्वारा किया गया है। पुस्तक के कुल 127 पृष्ठ हैं और मूल्य 295 रूपए है। पुस्तक की अंतिम काव्य रचना `चक्रव्यूह का अंतिम द्वार: सत्य की खोज' है। आशा है कि कवि द्वारा सत्य की खोज निरंतर जारी रहेगी।
-मनोज धीमान