`यह मकान बिकाऊ है' और `धूप सेंकते है' पुस्तकों का हुआ विमोचन
लुधियाना, 26 दिसंबर: प्रीत साहित्य सदन ने आज ऑनलाइन की गई अपनी मासिक सभा में पंजाब के दो प्रसिद्ध कथाकारों श्री मनोज धीमान (`यह मकान बिकाऊ है') तथा डॉ हरनेक सिंह कैले (`धूप सेंकते है' ) की पुस्तकों का विमोचन किया।
मनोज धीमान की पुस्तक पर श्रीमती मोनिका अरोड़ा तथा डॉ कैले की पुस्तक पर श्रीमती रमा शर्मा ने प्रपत्र प्रस्तुत किए तथा पुस्तकों की बारीकियों का विश्लेषण किया। तदुपरांत लेखकों द्वारा अपनी पुस्तकों पर विचार साझा किए गए।
मनोज धीमान की पुस्तक पर श्रीमती मोनिका अरोड़ा ने प्रपत्र पढ़ते हुए कहा--
"आज हम इस प्रीत साहित्य सदन के आभासी मंच पर पुस्तक विमोचन कार्यक्रम हेतु सब एकत्र हुए हैं। यह हमारे लिए परम हर्ष का विषय है कि श्री मनोज धीमान जी का लघु कथा संग्रह 'यह मकान बिकाऊ है' का आज विमोचन होने जा रहा है। हम उनकी इस उपलब्धि पर उन्हें मंगलकामनाएं देते हैं। बचपन से ही पत्रकार पिताजी श्री एच.आर. धीमान जी के सानिध्य में पत्रकारिता और साहित्य की लगन रखने वाले धीमान जी कहानियों, कविताओं क्षणिकाओं आदि के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 1987 से पत्रकारिता में कदम रखने वाले श्री धीमान द ट्रिब्यून ग्रुप, टाइम्स ऑफ इंडिया, अजित पंजाबी अखबार से जुड़े रहे, संवाददाता के रूप में हिंदुस्तान टाइम्स, डेली पोस्ट, ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल कर्ता के रूप में कार्यरत हैं। इतना ही नहीं आप लंबे समय से आकाशवाणी से भी जुड़े हुए हैं एक कहानी संग्रह, एक उपन्यास और एक कविता संग्रह हिंदी जगत को अर्पित करने वाले मनोज धीमान अपने पहले लघुकथा संग्रह 'यह मकान बिकाऊ है' के साथ पाठकों के सामने उपस्थित हैं। साहित्य कहीं न कहीं घटित होते सत्यों का पुन अवलोकन होता है। लेखक धीमान जी ने लॉकडाउन के दौरान अपने अंदर उद्घाटित होते कुछ सत्य और घटनाओं को लघु कथाओं के रूप में लिखा और आज यह आलोच्य कृति आपके सामने 'लघु कथा संग्रह' के रूप में प्रस्तुत है। जहां तक लघु कथा की विधान की बात करें तो लघु कथाएं थोड़े में बहुत कुछ कहने का, दो टूक अभिव्यक्ति का नया तरीका हैं। ये कहानी का एकदम नया रूप हैं। कल्पना के स्थान पर अपने जन्म काल से ही यथार्थ अभिव्यक्ति का दमखम लिए इस विधा ने पाठकों को प्रभावित किया है। चयन, प्रस्तुति और अभिव्यक्ति के नूतन प्रारूप में इस विधा ने अन्य विधाओं की बजाए पाठकों का ध्यान अपनी ओर ज्यादा खींचा है। कौतूहल, रोमांच, जिज्ञासा, संघर्ष और कुछ नया घटित होने की आशंका, त्वरित ध्यानाकर्षण और अभिव्यक्ति के रूप को देखा जाए तो लघु कथाएं आजकल सभी विधाओं में मजबूत स्थिति में मानी जाती है। लंबी भूमिका की औपचारिकताओं से दूर लघु कथा पाठकों के मन पर गहरा और दूरगामी असर करती हैं। वर्तमान के सरोकार और भविष्य के लिए दस्तावेज इस लघुकथा संग्रह में मनोज जी ने किसी भी विषय को अछूता नहीं रखा ।राजनीति , शिक्षा,धर्म ,आर्थिक समस्याएं ,सामाजिक विसंगतियों, हाशिए सरकाए गए संबंधों की कड़वाहट, वर्तमान दौर में मानव मन में उपजी हीनता- कॉन्प्लेक्स, त्रासदी को भी बड़े अच्छे ढंग से व्यक्त किया है ।यथार्थ को साथ लेकर चलती ये 120लघु कथाएं पाठक के मन में चिंता चिंतन की लकीर खींचती है।'जंगली जानवर' से शुरू हुआ सफर 'माया के रंग' तक आते-आते समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता चला जाता है। इन लघु कथाओं को मुख्यतः कुछ क्षेत्रों जैसे रिश्तो, सामाजिक बुराइयों, राजनीति, उत्तर आधुनिकता उप जी बुराइयों आदि में बांटा जा सकता है । यदि सरोकारों की बात करें तो 'रिश्ते' विषय के अंतर्गत लघु कथा -प्रेम, मिठास बदलाव, राजा और प्रजा, सौदा, रात की रानी, बिना आईने वाला घर, दुविधा, आदि प्रेम और रिश्तो को नई बानगी देती लघु कथाएं हैं। बिना आईने वाला घर कहानी बताती है कि उम्र ढलने पर शारीरिक बदलाव अगर जीवन साथी के प्रति आपके प्रेम को कम नहीं कर पाते तो उम्र बताने वाले आई नो का क्या किया जाए?? प्रेम की नश्वरता को बड़े खूबसूरत अंदाज में कहती लघुकथा 'प्रेम' आंखों में आंसू ला देती है । आज की राजनीति 'समरथ को नहिं दोष गुसाईं'और जिसकी लाठी उसकी भैंस विषय से जुड़ी हुई है। कहानी राजनीति, राजा और प्रजा, गधा पार्टी, दुविधा, मूर्ख राजा, अंतर, मगरमच्छ, आदि पढ़ने के बाद राजनीतिक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे समाज और देश की विडंबना का चित्र सामने लातीं हैं।ईश्वर की मूर्ति पर मोलभाव करने वाले व्यापारी हम दिन-रात देवी देवताओं की मूर्तियों के आगे महीने की आमदन लाखों करोड़ों रुपए कर देने की मुराद मांगते हैं। व्यापारी लघुकहानी पढ़कर हम सबके मन में बैठा चोर पकड़ा जाता है। व्यंग्य का सहारा लेते हुए सड़े गले समाज को आईना 'सिस्टम कहानी में दिखाया गया है ।कहानी 'नाक' व्यंग्य की पराकाष्ठा है जो हमारे अहम को तिरोभाव करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कहानी की पंक्तियों पर गौर किया जाए...आज बिना नाक के चलते हुए उन्हें कुछ हल्का पन सा लग रहा था ….या फिर कहानी के अंत में घर पहुंचे तो सबसे पहले उन्होंने अपनी नाक को ढूंढा उसे कचरे के डिब्बे में डाल दिया... क्या खूबसूरत तरीका है मनुष्य के अहंकार को तोड़ने का। शोषण तंत्र की निरंतरता 'कहानी एक गांव की', 'फैंसी ड्रेस' भी पढ़कर समझने योग्य है । ऐसा नहीं है कि लेखक आधुनिक भारत की समस्याओं से अनजान है। हाल ही में सुनने में आए शब्द 'स्टार्टअप'को बेरोजगारी जैसी समस्या का हल समझते हुए वे प्रतीत होते हैं। कहानी 'स्पैम मेल' हम सबको अनावश्यक तनाव के बोझ की गठरी उतारकर अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रख रखने की बात समझाती है। 'कण-कण में भगवान' बड़ी गहरी कहानी है जो हमें बताती है कि ईश्वर पत्थर नहीं है बल्कि इंसान पत्थर बन कर दूसरों की भावनाओं को घायल करता है। बिगड़ती जीवन शैली को व्यक्त करती कहानी 'यह कैसी फसल" कैंसर ट्रेन के भयावह सच को बताती है। कुल मिलाकर यह लघुकथा संग्रह मनुष्य के मनुष्य तक पहुंचने की कवायद है जिसे लेखक मनोज धीमान ने बड़ी शिद्दत से महसूसा है
इन लघु कथाओं के क्लेवर और शैली की बात करें तो प्रतीकात्मकता, व्यंग्यात्मकता ,सांकेतिक, दार्शनिकता, और चित्रात्मकता जैसी कई विशेषताओं को अपने भीतर समाए हुए हैं ।वाक्य छोटे छोटे, रवानगी भरे तथा जीवंत है। कथाओं में काव्यात्मकता , मानवीकरण अलंकार इनके आकर्षण को चार चांद लगाते हैं कहानी 'घमंड' इसका सशक्त उदाहरण है।कथाओं के शीर्षक अपने आप में आकर्षण का केंद्र हैं।व्यंग्य और सूक्ष्म विचार इन कथाओं का सार संसार है।महामारी, मजबूरी, समाधान, मुकाबला जैसी कहानियां माइक्रो मिनी कहानियों की श्रेणी में डाली जा सकती हैं। ढाई पंक्ति की कहानियां तो मजबूरी और समाधान लेखक के गहन पत्रकारिता के अनुभव से उपजी दिखाई देती है ।बाकी चार चार पांच पंक्तियों की यह कहानियां छोटा पैकेट और बड़ा धमाका हैं असल में ये क्षणिकाएं हैं। दरअसल जीवन में होने वाली त्वरित घटनाओं से उठाया गया समाज पूरा का पूरा अपनी विशेषताओं के साथ इन कहानियों में दिखाई देता है । मनोज धीमान पंजाब के कथा साहित्य में उदीयमान सितारे हैं, संभावनाओं से भरा उनका भविष्य और विजन एकदम साफ और समृद्ध है पत्र-पत्रिकाओं में लगातार सक्रिय हैं लघु कथाओं में आदर्श और यथार्थ को साथ लेकर चलते हुए बड़ी सहजता से जीवन के विरोधाभासों को मुखरित करते हैं ।एक विश्वसनीय आवाज बुलंद कर समाज के अंदर फैले अविश्वास के कोहरे को छिन्न-भिन्न करने में समर्थ हैं। उनकी यह प्रयोग धर्मी रचना शीलता लगातार कलम के माध्यम से उभरती रहे। मैं इस सभा में बताना चाहूंगी कि अध्यापिका होने के नाते लघु कथा विषय पढ़ाते हुए कक्षा 9वी में मैंने इस पुस्तक से कुछ कथाएं कक्षा में प्रयोग के तौर पर सुनाई हैं। छात्रों ने इन पर चर्चा और विश्लेषण किया है जोकि पुस्तक की सफलता का प्रमाण है। अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों सशक्त हस्ताक्षर के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहें। ऐसी मंगल कामनाओं के साथ इस कथा संग्रह हेतु हम ढेरों शुभकामनाएं देते हैं।"
इस अवसर पर मनोज धीमान ने कहा ---
"प्रीत साहित्य सदन, लुधियाना के जनक श्री मनोज प्रीत जी, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुनील कुमार प्रसून जी, अध्यक्षा श्रीमती अंजू खरबंदा जी, मंच संचालक श्रीमती ममता जैन जी, डॉ अनु शर्मा कौल जी, श्रीमती रमा मनोज प्रीत जी तथा डॉ हरनेक सिंह कैले जी व समारोह में उपस्थित अन्य सभी शख्सियतों को मेरी ओर से नमन। मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूँ कि आप सभी के सहयोग से आज मेरी पुस्तक का विमोचन हो रहा है। इसके
लिए मैं श्री मनोज प्रीत जी का विशेष तौर पर आभार व्यक्त करता हूँ। पुस्तक "यह मकान बिकाऊ है" , मेरा पहला लघुकथा संग्रह है। इससे पूर्व मेरा एक कहानी संग्रह लेट नाईट पार्टी', एक काव्य संग्रह बारिश की बूँदें' व एक उपन्यास शून्य की ओर' प्रकाशित हो चुका है। वर्ष 2007 में प्रकाशित मेरी पहली पुस्तक 'लेट नाईट पार्टी' का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हो चुका है। पेशे से एक पत्रकार होने के नाते पत्रकारिता की जिम्मेवारियां निभाते हुए साहित्य साधना कहीं पीछे छूट गई थी। कई वर्षों तक कुछ भी न लिख पाने के बावजूद कहानियों का बनना और मिटना दिल व दिमाग के किसी कोने में निरंतर जारी रहा। लगभग दो-तीन वर्ष पूर्व हरियाणा के प्रसिद्ध पत्रकार व ल्रघुकथा लेखक श्री कमलेश भारतीय जी ने मुझे व्हाट्सप्प पर एक साहित्यक ग्रुप "पाठक मंच" के साथ जोड़ा। पिछले वर्ष कोरोना महामारी के दौरान इस व्हाट्सप्प ग्रुप में मैंने एक-दो लघुकथाएं पोस्ट की। पाठकों ने इन लघुकथाओं को भरपूर पसंद किया। इसके पश्चात मैं प्रतिदिन सुबह उठ कर सबसे पहले लैपटॉप पर एक लघुकथा टाईप करता और उसे "पाठक मंच" पर पोस्ट कर देता। पाठकों के द्वारा दिए प्रोत्साहन से ही ऐसा संभव हो पाया। इसके लगभग तीन-चार महीने पश्चात मुझे दिल्ली से डॉ नरेंद्र मोहन जी का फोन आया। उन्होंने पूछा, मनोज, आजकल क्या लिख रहे हो?" मैंने बताया कि आजकल त्घुकथाएं लिख रहा हूँ। यह जानकर वे बहुत प्रसन्न हुए और मुझे सुझाव दिया कि मैं इन ल्घुकथाओं को एक पुस्तक का रूप दूँ। मगर मैंने ऐसा कर पाने में असमर्थता व्यक्त की और कहा कि अपनी जेब से पैसे खर्च करके मैं अब कोई पुस्तक छपवाना नहीं चाहता। इस पर उन्होंने कहा कि मनोज, तुम पुस्तक का मैटर तैयार करो, मैं किसी प्रकाशक से तुम्हारी बात करवाता हूँ। और, सच में, कुछ दिनों बाद उनका फ़ोन आया कि उनकी दिल्ली के एक पब्लिशर से बात हो गई है। लेकिन, इस बात का दुःख हमेशा रहेगा कि पुस्तक के प्रकाशित होने के दो-तीन महीने पहले ही कोरोना के कारण वे इस नश्वर संसार से सदा के लिए विदा हो गए। यहां मैं कहना चाहूंगा कि लघुकथा का सृजन करके मुझे एक अजीब सी संतुष्टि का अनुभव होता है। कहानी या उपन्यास के मुकाबले लेखक को लघुकथा में चंद शब्दों द्वारा अपनी बात रखनी होती है। लघुकथाएं लिखते हुए मुझे यह माध्यम बहुत सशक्त लगा। मुझे यह महसूस हुआ कि वर्तमान दौर में जबकि हम सभी के पास समय की बेहद कमी है तब इस माध्यम पर और अधिक बल दिए जाने की आवश्यकता है। मेरा मानना है कि लघुकथा में एक सशक्त कहानी, सन्देश और सस्पेंस होना चाहिए। अगर लघुकथा में कहानी और संदेश है। मगर उसमे सस्पेंस नहीं है तो कहानी में रोचकता नहीं होगी। ल्घुकथा में कुछ ऐसा होना चाहिए कि ल्रघुकथा पाठक के दिमाग में भीतर तक घर कर जाये। जहां तक लघुकथाओं का विषय चुनने की बात है, उस संबंध में कहना चाहूंगा कि विषय हम सभी के आस-पास ही होता है। मगर उसके लिए हमारे पास एक अलग दृष्टिकोण चाहिए। जहां तक मेरी बात है, लघुकथा लिखते समय मैं पात्रों के साथ चलता हूं या यूं कहिये कि पात्र मुझे अपने साथ लेकर चलते हैं। लघुकथा लिखते समय पात्र मुझसे बातें करते हैं। अगर मुझे लगता है कि कोई पात्र मेरी कल्मम को अटकाना चाह रहा है तो मेरी कलम कुछ देर के लिए वहीं रुक जाती है। पात्र के साथ विचार-विमर्श होता है। उसके पश्चात ही आगे लिखने की शुरुआत होती है। मुझे साहित्य रचना से पहले नोट्स बनाने की बिलकुल भी आदत नहीं है, जिसे आप मेरी कमजोरी भी कह सकते हैं। इसलिए कई बार कई रचनाएं मन में जन्म लेती हैं और समय पर न लिख पाने के कारण मन में ही कहीं दफन हो जाती हैं। हालाँकि कई बार उनका पुनर्जन्म भी हो जाता है। कई बार लघुकथा लिखते समय दिमाग में नए और पुराने विचार या घटनाएं आपस में जुड़ जाती हैं। और, इन विचारों या घटनाओं के सुमेल से लघुकथा का जन्म होता है। कई बार कुछ विचार या घटनाएं मन को लम्बे समय तक विचलित करतीं हैं। लेकिन, लिखना संभव नहीं हो पाता। ऐसा पात्रों के आपसी टकराव की वजह से होता है। जब सभी पात्रों में समन्वय पैदा होता है तभी मेरे लिए लिख पाना संभव हो पाता है। लघुकथा लिखते समय अधिकतर अंतिम निर्णय पाठक पर ही छोड़ देना बेहतर समझता हूं। यह आवश्यक नहीं कि लेखक सभी कुछ अपनी ओर से ही लिख डाले। इस तरह
पाठक लघुकथा का अंत अपनी मनोस्थिति के हिसाब से सोचता है और लघुकथा पर गहन विचार-विमर्श करता है। यही लघुकथा की सफलता और उपलब्धी है। लघुकथा पढ़ कर पाठक को अवश्य महसूस हो कि उसने एक लंबी कहानी या उपन्यास पढ़ लिया है। मेरी पुस्तक में शामिल्र एक लघुकथा में मात्र चार वाकया हैं और एक अन्य त्रघुकथा में मात्र दो वाकया हैं। इस तरह मैंने संक्षेप में अपनी बात रखी है, जिन पर कई पन्नों पर विचार-विमर्श
किया जा सकता है। लघुकथा की सफलता उसकी लम्बाई पर नहीं बल्कि भीतरी आत्मा पर निर्भर करती है। मेरे लिए ल्रघुकथा का विषय ही प्रधान है। साथ ही लघुकथा का प्रस्तुतिकरण व शब्दों का चयन भी मायने रखता है। मेरी लघुकथाओं में पाठक को लम्बे वाकया कहीं दिखाई नहीं देंगे। न ही भारी-भरकम शब्द देखने को मिलेंगे। अंत में इतना अवश्य कहूंगा कि ईश्वर की कृपा से ही साहित्य रचा जा सकता है। मेरे लिए तो ऐसा ही है। शायद अन्य लेखकों के साथ भी ऐसा ही होगा। प्रभु कृपा से ही शब्द निकलते हैं और रचना जन्म लेती है। मैंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि मैं कभी लघुकथाएं भी लिखूंगा और उनकी पुस्तक भी छपेगी। मुझे आशा है कि आप सभी के प्रोत्साहन व ईश्वर की कृपा से मैं भविष्य में भी लघुकथाओं की रचना करता रहूंगा। यहां मैं एकैडमिक पब्लिकेशन, दिल्ली से श्री राजेश कुमार जी का भी पुस्तक प्रकाशन के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। लघुकथाकार श्री हरभगवान चावला जी, उपन्यासकार डॉ अजय शर्मा जी, पंजाबी के प्रसिद्ध शायर श्री अश्विनी जेतली जी का आभारी हूं जो समय-समय पर मुझे अपने मूलयवान सुझाव देते रहे हैं। इसके साथ ही पाठक मंच' के संचालक व सर्वेसर्वा श्री कमलेश भारतीय जी व मंच के सभी सदस्यों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। अगर मैं पाठक मंच' के साथ न जुड़ा होता तो शायद कभी लघुकथा न लिख पाता और न ही मेरी पुस्तक प्रकाशित हो पाती। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अनिल कुमार पांडेय जी का भी हृदय से आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने पुस्तक की प्रस्तावना लिखना सहज स्वीकार किया। अगर किसी का नाम भूलवश रह गया हो तो मैं क्षमा चाहूंगा। धन्यवाद।"
लेखकों की रचना प्रक्रिया के अनेक अनुभवों से पाठक अवगत हुए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली से लेखिका श्रीमती अंजू खरबंदा ने की जबकि मुख्य अतिथि के रूप में जयपुर से राजभाषा अधिकारी डॉ सुनील कुमार प्रसून उपस्थित रहे। दोनों साहित्यकारों ने कार्यक्रम की भूरी-भूरी प्रशंसा की और अपने अनुभवों से बीत रहे इस वर्ष की साहित्यिक गतिविधियों से अवगत कराया।
कार्यक्रम सदन के संस्थापक श्री मनोज कुमार प्रीत की देख-रेख में हुआ। मंच संचालन श्रीमती ममता जैन ने किया। समारोह के विशेष अतिथि उपन्यासकार डॉ अजय शर्मा थे।