थियेटर में रूचि से नहीं, उद्देश्य से आया: नरेश प्रेरणा

कहा, लोगों के दिल की बात कह पाता हूं नुक्कड़ नाटकों में

थियेटर में रूचि से नहीं, उद्देश्य से आया: नरेश प्रेरणा
नरेश प्रेरणा।

-कमलेश भारतीय 
ज्वलंत मुद्दों को उठाने का अवसर नुक्कड़ नाटकों में ही मिलता है । लोगों के दिल की बात नुक्कड़ नाटकों में आसानी से कह सकते हैं । लोग अपनी ज़िंदगी की प्रतिछाया देख पाते हैं नुक्कड़ नाटकों में । यह कहना है पिछले तीन दशक से जतन संस्था के माध्यम से नुक्कड़ नाटक कर रहे नरेश प्रेरणा का । वे मूल रूप से रोहतक के गांव बहू अकबरपुर से हैं और ग्रेजुएशन हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से की और एम ए हिंदी महर्षि दयानंद विश्विद्यालय , रोहतक से । 

 

-थियेटर में रूचि कब से और कैसे ?
-थियेटर में रूचि से नहीं आया बल्कि उद्देश्य से आया । सफ़दर हाशमी की शहादत के बाद । उस सवाल का जवाब देने । उस माहौल को बनाये रखने के लिए जिसके खिलाफ उन्होंने अपनी शहादत दी । सन् 1989 के आसपास । 
-नुक्कड़ नाटक से क्या कर पाते हैं ?
-लोगों के दिल की बात सीधे सीधे उनके सामने रख पाते हैं । लोग अपनी ज़िंदगी की प्रतिछाया इनमें देखते हैं । 
-अब तक कितने नाटक किये ?
-साठ और नुक्कड़ नाटकों की कोई गिनती नहीं । इनको आम आदमी की बात कहने का सबसे बड़ा प्लेटफाॅर्म मानता हूं ।
-प्रेरणा के प्रेरणा स्त्रोत कौन ?
-निसन्देह सफ़दर हाशमी और हबीब तनवीर।  हबीब तनवीर ने लोक संस्कृति में काम किया बेहतरीन । सफ़दर हाशमी छोटी उम्र में ही चले गये । 
-बच्चे ?
-एक बेटी मल्लिका जो इंग्लैंड में पढ़ाई कर रही थी लेकिन लाॅकडाउन में हमारे हाथ रोहतक में ही है इन दिनों ।
-क्या नुक्कड़ नाटकों या थियेटर से रोज़ी रोटी चल पाती है ?
-जी नहीं । जन नाट्य मंच से गुजर बसर नहीं हो सकती । इसलिए एक स्कूल में थियेटर का टीचर हूं पर लाॅकडाउन ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा।  
-कौन हैं प्रिय नाटककार ?
-सफ़दर हाशमी, हबीब तनवीर , शेक्सपीयर, मोहन राकेश , नारायण सुर्वे मराठी और उत्पल दत्त बंगाली आदि ।
-टीवी या फिल्म में आए ?
-जी नहीं।  इनमें जाने की कोई इच्छा नहीं । ऑफर जरूर आए पर नहीं किया।  सीधे लोगों से जुड़ कर अपनी बात कहने का नशा हो गया है ।
-नाटक की क्या स्थिति है हरियाणा में ?
-सन् 1994 में नाट्योत्सव किया था तब आठ टीमें अपनी बनाईं । अब हालात बदल गये।  हरियाणा एग्रीकल्चर का नहीं कल्चर का प्रदेश बन चुका है । इसमें कहीं जतन का योगदान भी है। 
-रोहतक में खुली फिल्म सिटी सुपवा के बारे में क्या राय ?
-शुरू में बहुत अच्छे टीचर आए थे और कुछ काम भी हुआ लेकिन अब अच्छे टीचर छोड़ छोड़ कर जा रहे हैं और राज्य सरकार मनपसंद लोगों को भर्ती कर रही है । इसे बचाये जाने और बेहतर बनाने की कोशिश होनी चाहिए ।
-हरियाणवी फ़िल्मों के बारे में क्या कहोगे?
-असल में हरियाणवी फिल्में अपने बचपने से बाहर ही नहीं निकलीं   किशोरावस्था भी नहीं आई । शुरूआत में कुछ अच्छा काम हुआ लेकिन फिर माहौल नहीं बना ।उम्दा सिनेमा नहीं आ रहा। 
-कोई पुरस्कार?
-लाडली पुरस्कार जो यूनाइटेड नेशंज पॉपुलेशन फंड की ओर से दिया जाता है । 
हमारी शुभकामनाएं नरेश प्रेरणा को ।