सोच को बदलो , सितारे बदल जायेंगे
अपने-आपको तराशना ही असली पूजा: आचार्य रूपचंद्र
-कमलेश भारतीय
न केवल आचार्य बल्कि प्रतिष्ठित कवि आचार्य रूपचंद्र का कहना है कि मनुष्य को अपने-आपको तराशना ही असली पूजा है , खुद को तलाशना ही असली पूजा है । वे बारह मार्च से प्रेमनगर स्थित मानव मंदिर में प्रवास पर हैं और प्रतिदिन रात्रि आठ बजे प्रवचन करते हैं । उनके साथ साध्वी कनकलता और योगी अरूण भी आये हैं ।अठारह को सुबह वे वापिस दिल्ली चले जायेंगे । उल्लेखनीय है कि सन् 1987 में हिसार में ही मानव मंदिर की स्थापना की थी जिसके उद्घाटन पर पूर्व मंत्री बलवंत राय तायल अध्यक्ष थे । वे दो वर्ष यहीं रहे और फिर दिल्ली में मानव मंदिर बनाकर वहीं से गतिविधियां चलाने लगे और सामाजिक कार्य कर रहे हैं । यहीं पर आचार्य रूपचंदर ने वाहन यात्रा की घोषणा की । इससे पहले वे भारत नेपाल में कम से कम पचास हजार किलोमीटर पदयात्रा कर चुके थे ।
-आप मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं ?
-राजस्थान के सरदारशहर से ।
-संन्यास कब ?
-जब सिर्फ तेरह वर्ष का था और आठवीं में पढ़ रहा था । पतंग उड़ाने का बहुत शौक था । बच्चों जैसी सारी शरारतें !
-संन्यास के बाद कौन सी पढ़ाई ?
-संस्कृत व प्रकृत के ग्रंथों का अध्ययन । असल में तो संन्यास के बाद आत्मा की यात्रा शुरू होती है ।
-फिर हिंदी में कवितायें कैसे लिखने लगे ?
-बस । भीतर से ही आने लगीं कवितायें ।
-कितने काव्य संग्रह हैं आपके ?
-पंद्रह ।
-आपकी कौन सी पंक्तियां संसद में किसने सुनाईं ?
-कृष्णकांत ने । ये पंक्तियाँ रहीं :
नजर को बदलिये, नजारे बदल जायेंगे
सोच को बदलिये, सितारे बदल जायेंगे !
किश्तियां बदलने की जरूरत ही नहीं
धार को बदलो , किनारे बदल जायेंगे !
इसी प्रकार सन् 2005 में अमेरिका मे एक मंदिर के उद्घाटन पर लिखीं ये पंक्तियां :
पहले तो हम पत्थर को तराशते हैं
फिर उसमें परमात्मा तलाशते हैं
लेकिन जिसने तराशा अपने-आपको
उसको खुद परमात्मा तलाशते हैं !
खुद को तराशने और तलाशने की जरूरत है ।
-आपके ऊपर जीवनी भी तो लिखी है विनिता गुप्ता ने !
जी । हंसा जाई अकेला !
-कोई पुरस्कार /सम्मान ?
-साहित्य में तो कोई कोशिश नहीं की फिर भी राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर ने राष्ट्र संत का सम्मान दिया । इसी प्रकार कोलकाता समाज ने प्रज्ञा पुरूष का सम्मान दिया तो अमेरिका की एक संस्था ने मैन ऑफ द ईयर का सम्मान प्रदान किया । और भी बहुत सारे लेकिन संतों का क्या काम !