संघ विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी के नाम पर स्थापित करेगा चेयर पीठ गुजविप्रौवि : कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई
हिसार, 9 जनवरी, 2024: गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के अर्थशास्त्र विभाग में संघ विचारक व अर्थशास्त्री दत्तोपंत ठेंगड़ी के नाम पर एक प्रेरणा स्त्रोत आसन (चेयर) की स्थापना की जाएगी। इस चेयर का उद्देश्य महान विचारक श्री ठेंगड़ी जी के जीवन कार्यों तथा उनकी शिक्षाओं पर शोध कार्य कर उन्हें नई पीढ़ी से अवगत कराना होगा। श्री ठेंगड़ी से नामित एक शोध निधि (रिसर्च फंड) बनाई जायेगी। उनके जीवन से जुड़ा सम्पूर्ण साहित्य विश्वविद्यालय मेें उपलब्ध करवाया जाएगा। जिससे अर्थशास्त्र के क्षेत्र में शोध कर रहे विद्वानों और भविष्य के उभरते हुए अर्थशास्त्रियों को शोध की नई दिशा मिलेगी। महान अर्थशास्त्री, राष्ट्र ऋषि दतोपंत ठेंगड़ी के राष्ट्रवादी आर्थिक चिंतन से विकसित भारत की अर्थव्यवस्था के निर्माण हेतु मार्ग प्रशस्त होगा और यहां के शोधार्थी अपना योगदान सुनिश्चित करेंगे और गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय इसमें अपना भरपूर सहयोग देगा। विश्वविद्यालय के इस कदम से ‘विकसित भारत ञ्च2047’ अभियान में अर्थिक मोर्चे पर युवाओं की भागीदारी को उचित दिशा मिलेगी।
यह जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने बताया कि दत्तोपंत ठेंगड़ी महान अर्थशास्त्री, एक दूरदर्शी विद्वान और जनचेतना के शिल्पकार (सृष्टा भी और दृष्टा भी) थे, जिन्होंने कड़े विरोध का सामना करते हुए भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच जैसे जन संगठन बनाए, समकालीन राजनैतिक परिवेश के विरुद्ध काम किया और इसे अपनी अंतर्दृष्टि के अनुसार ढाला।
कौन थे दत्तोपंत ठेंगड़ी :
10 नवंबर, 1920 को महाराष्ट्र के अरवी में जन्मे दत्तोपंत ठेंगड़ी एक प्रमुख आर एस एस प्रचारक थे, जिन्होंने पहले केरल और बाद में बंगाल में काम किया। उन्होंने एकनाथ रानाडे, एच.वी. शेषाद्रि, भाऊराव देवरस, नाना पालकर और नानाजी देशमुख के साथ मिलकर संघ के दर्शन को आकार दिया। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर के लिए भी काम किया और ‘आदिम जाति संघ’ का गठन किया। वे दो कार्यकाल 1964-1976 तक राज्य सभा के सदस्य रहे।
द्वंद्धात्मक भौतिकवाद पर महारत हासिल करने वाले दुर्लभ विद्वानों में से एक दत्तोपंत ठेंगड़ी अनासक्त योग के जीवंत अवतार थे। उन्होंने 1975 में जयप्रकाश नारायण द्वारा बनाई गई लोकसंघर्ष समिति की कमान संभाली और 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी की हार होने तक उनके आपातकालीन शासन के खिलाफ आंदोलन चलाया। उन्होंने मोरारजी देसाई की सरकार में कोई पद स्वीकार नहीं किया हालाँकि उनकी सलाह पर ‘जनसंघ’ का ‘जनता पार्टी’ में विलय कर दिया गया। तदोपरांत उन्होंने पद्मविभूषण की उपाधि लेने से इनकार कर दिया। वे निष्काम कार्यकर्ता थे।
उनका अवलोकन था कि रूस में साम्यवाद (कम्युनिज्म) रिवर्स गियर में है। स्टॉक एक्सचेंज, डेरिवेटिव व्यापार (डेरिवेटिव ट्रेड), मुद्रा बाजार (करेंसी मार्केट) आदि सट्टा व्यापार जैसी प्रथाओं का उन्होंने पुरजोर विरोध किया और वेतन रोजगार के मुकाबले स्व-रोजगार को प्राथमिकता दी।
दत्तोपंत ठेंगड़ी ने विभिन्न विषयों पर सौ से अधिक पुस्तकों का लेखन किया। उनमें से कुछ प्रेरणादायक और विचारोत्तेजक शीर्षक जैसे ‘कार्यकर्ता’, ‘ थर्ड वे’, ‘क्रांति पर’ और ‘हिंदू अर्थशास्त्र में प्रस्तावना’ आदि बेहद लोकप्रिय हैं।
दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा लिखित ‘थर्ड वेव’ पुस्तक में इस बात पर जोर दिया गया है कि आने वाली पीढ़ी को किसी भी राष्ट्र की सफलता के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके अलावा उन्होंने प्राचीन पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक और वैज्ञानिक पहलुओं पर आधारित हिंदू जीवन शैली का पालन करने की आवश्यकता बताई, जिससे बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।
मोदी सरकार के आत्मनिर्भर भारत के आर्थिक कार्यक्रम, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक सशक्तीकरण के माध्यम से गरीबी उन्मूलन आदि दत्तोपंत ठेंगड़ी के आर्थिक सिद्धांतों पर आधारित हैं।
अपने कार्यों में, ठेंगड़ी जी ने कभी भी निजी निवेश का विरोध नहीं किया, बल्कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) के लिए एक बड़ी भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने घोर पूंजीवाद (क्रॉनी केपिटलिज्म) के साथ-साथ सरकार के व्यवसायों में शामिल होने का भी कड़ा विरोध किया। वे हमेशा कहते से कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। (गर्वनमैंट हैज नो बिजनेस टू डू बिजनेस)।
संघ परिवार के आर्थिक विश्व-दृष्टिकोण को ठेंगड़ी ने ‘तीसरा रास्ता’ कहा था, जो पश्चिम के पूंजीवाद के साथ-साथ साम्यवादी आर्थिक सिद्धांतों से अलग था।
दत्तोपंत ठेंगड़ी ने कभी भी ‘गांव बनाम शहर’ दृष्टिकोण का समर्थन नहीं किया। उन्होंने कभी भी वर्गों के बीच या अमीर और गरीब के बीच संघर्ष में विश्वास नहीं किया, बल्कि सामूहिक राष्ट्रीय हितों के लिए खड़े रहे। इस प्रकार, उन्होंने ‘वर्ग घृणा’ और ‘वर्ग संघर्ष’ पर राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दी। उन्होंने जीवन के सभी आयामों में ‘राष्ट्र हित सर्वोपरि’ के विमर्श पर बल दिया और उसे अपने सार्वजनिक जीवन के जीवन दर्शन के रूप स्वीकार किया।
1990 के दशक में, जब देश ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने का फैसला किया, तो उन्होंने राष्ट्रवादी आर्थिक दर्शन को लगातार प्रासंगिक बनाए रखने के लिए ‘स्वदेशी जागरण मंच’ की स्थापना की।
2021 में, केंद्रीय दूरसंचार, आईटी और रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस महान अर्थशास्त्री, राष्ट्रऋषि, विचारक पर एक डाक टिकट जारी किया।