नागरिक लोक अदालत के माध्यम से अपने केसों का करवाये निपटाराः सीजेएम अनिल कौशिक
9 सितंबर को आयोजित होगी राष्ट्रीय लोक अदालत।
रोहतक, गिरीश सैनी। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण रोहतक के सचिव अनिल कौशिक ने नागरिकों से लोक अदालत के माध्यम से अपने विभिन्न श्रेणी के केसों का निपटान करवाने की अपील की है। लोक अदालत को लेकर एडीआर सेंटर में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने बताया कि 9 सितंबर को न्यायालय परिषद रोहतक में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जा रहा है।
जज अनिल कौशिक ने बताया कि राष्ट्रीय लोक अदालत में एन आई एक्ट मामले, (धारा 138), धन वसूली मामले, आपराधिक मिश्रित मामले, एमएसीटी मामले, श्रम एवं रोजगार संबंधी विवाद, वैवाहिक विवाद, रखरखाव के मामले, भूमि अधिग्रहण के मामले, सेवाएं संबंधी मामले, राजस्व मामले, बिजली, पानी और अन्य बिल्स तथा अन्य सिविल और अपराधिक मामले राष्ट्रीय लोक अदालत में उठाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि न्यायालय में बड़ी संख्या में ट्रैफिक चालान के मामले लंबित है और इन सभी मामलों का निपटारा राष्ट्रीय लोक अदालत में आसानी से करवाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ट्रैफिक चालान के मामले निपटाने के लिए किसी एडवोकेट की जरूरत नहीं होती। संबंधित पक्षकार सीधे न्यायालय में क्लर्क से संपर्क करके मामले को लोक अदालत में रख सकता है।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अनिल कौशिक ने कहा कि लोक अदालत विवादों को समझौते के माध्यम से सुलझाने के लिए एक वैकल्पिक मंच है। उन्होंने कहा कि सभी प्रकार के सिविल वाद तथा ऐसे अपराधों को छोडक़र, जिनमें समझौता वर्जित है, सभी आपराधिक मामले भी लोक अदालतों द्वारा निपटाये जा सकते हैं। लोक अदालत के फायदों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लोक अदालत के फैसलों के विरूद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है। लोक अदालत में समझौते के माध्यम से निस्तारित मामले में अदा की गयी कोर्ट फीस लौटा दी जाती है। जिला स्तर पर स्थायी लोक अदालतों के माध्यम से विवाद सुलझाने के लिए उस अदालत में प्रार्थना पत्र देने का अधिकार प्राप्त है।
उन्होंने कहा अभी जो विवाद न्यायालय के समक्ष नहीं आये हैं उन्हें भी प्री-लिटीगेशन स्तर पर बिना मुकदमा दायर किये ही पक्षकारों की सहमति से प्रार्थना पत्र देकर लोक अदालत में फैसला कराया जा सकता है। लोक अदालत के अन्य लाभ के बारे में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अनिल कौशिक ने बताया कि लोक अदालत में वकील पर खर्च नहीं होता। कोर्ट-फीस नहीं लगती व पुराने मुकदमे की कोर्ट-फीस वापस हो जाती है। किसी पक्ष को सजा नहीं होती और मामले को बातचीत द्वारा सफाई से हल कर लिया जाता है। परिणाम स्वरूप समाज में आपसी भाईचारा भी मजबूत होता है। इसके अलावा मुआवजा और हर्जाना तुरंत मिल जाता है। मामले का निपटारा तुरन्त हो जाता है और सभी को आसानी से न्याय मिल जाता है। उन्होंने कहा कि लोक अदालत का फैसला अन्तिम होता है। इसके निर्णय के विरोध अपील नहीं की जा सकती तथा मामला हमेशा के लिए निपट जाता है।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव एवं मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अनिल कौशिक ने बताया की अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्य, अनैतिक अत्याचार के शिकार लोग या ऐसे लोग जिनसे बेगार करायी जाती है, महिलाएं एवं बच्चे, मानसिक रोगी एवं दिव्यांग, अनपेक्षित अभाव जैसे बहुविनाश, जातीय हिंसा, बाढ़, सूखा, भूकम्प या औद्योगिक विनाश की दशाओं के अधीन सताये हुए व्यक्ति या शहीद सैनिकों के आश्रित, औद्योगिक श्रमिक, कारागृह, किशोर, मनोचिकित्सीय अस्पताल या मनोचिकित्सीय परिचर्या गृह में अभिरक्षा में रखे गये व्यक्ति निशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने के पात्र है, जिनकी वार्षिक आय 3 लाख रुपये से कम है।