समाचार विश्लेषण/धीरे से आना जलियांवाला बाग में 

समाचार विश्लेषण/धीरे से आना जलियांवाला बाग में 
कमलेश भारतीय।

-*कमलेश भारतीय 
कभी सुभद्रा कुमारी चौहान ने एक कविता लिखी थी -जलियांवाला बाग में बसंत और उसमें फूलों से भी मनुहार की थी कि इस बाग में धीरे से आना क्योंकि यहां अनेक शहीद सो रहे हैं । लेकिन आज यह बाग नये रूप में , नयी डी जे लाइट्स के साथ सामने आया तो इसकी आलोचना शुरू होनी स्वाभाविक ही थी क्योंकि जिस बाग में शहीद सो रहे हों और आप उन्हें नमन् करने जा रहे हों , वहां भला डी जे का क्या काम ? सचमुच यह शहीदों के अपमान के बराबर है । दूसरे पर्यटकों की तरह मैं भी दो साल पहले जलियांवाला बाग देखने और नमन् करने गया था । उन दिनों इसके पुनरुद्धार का काम ज़ोरों पर चल रहा था और हमें आधा ही बाग देखने को मिला था । सोचा था कि जब यह नवीनीकरण का काम हो जायेगा तब फिर यहां आयेंगे पर इसके नवीनीकरण पर विवाद छिड़ गया और मेरी तरह हर हिंदुस्तानी का दिल टूट गया होगा । 

बेशक पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह इस बदलाव को बड़ा ही अच्छा लगा बता रहे हों और राहुल गांधी इसके विपरीत कह रहे हैं कि शहीदों की विरासत के छेड़छाड़ शहीदों का अपमान है । मैं शहीद का बेटा हूं और शहीदों का अपमान किसी कीमत पर सहन नहीं करूंगा । जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई नहीं लड़ी वे क्या समझ सकते हैं इसे ? 

यह बात भी सामने आ रही है कि प्रवेश द्वार पर लगीं नानकशाही ईंटों पर सीमेंट कर दिया गया है जो इसकी खूबसूरती खत्म कर देने के समान है उठाया गया कदम है । यही तो इसकी प्रभावशाली प्रविष्टी थी और इसे ही नवीनीकरण के नाम पर बदल दिया गया । फ्रीडम फाइटर एसोसिएशन की ओर से भी इसके बदलाव पर आपत्ति दर्ज करवाई गयी है । यह बहुत दुखद है । इतने प्रेरणाप्रद बाग का नवीनीकरण बहुत संवेदनशील ढंग से किया जाना चाहिए था न कि कोई नयी बिल्डिंग में बदलने की कोशिश करनी चाहिए थी । फतेहगढ़ साहिब और शहीद भगत सिंह के गांव में उनके पैतृक घर के रखरखाव से प्रेरणा लेनी चाहिए थी । वहां पुरानी छोटी ईंटों की दीवारों को सुरक्षित रखा गया है और शीशे में कवर किया गया है । कुछ ऐसा ही काम यहां भी हो सकता था लेकिन संवेदनशीलता से काम नहीं किया गया । अभी कुछ बिगड़ा नहीं है । कैप्टन अमरेंद्र सिंह को दोबारा इसको सही करने के आदेश देकर जन भावनाओं का आदर करना चाहिए । तभी सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियां सार्थक रहेंगीं :
यहां धीरे से आना
यहां शहीद की आत्माएं हैं ....

-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।