अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पारंपरिक ज्ञान के संचार और प्रसार पर हुई चर्चा

हिंदी और पंजाबी में लिखित -भारतीय परंपराओं का खजाना और सार पुस्तक का विमोचन हुआ।

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पारंपरिक ज्ञान के संचार और प्रसार पर हुई चर्चा

रोहतक, गिरीश सैनी। सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (निस्पर) और गुरुग्राम विवि के संयुक्त तत्वाधान में "पारंपरिक ज्ञान के संचार और प्रसार" पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (सीडीटीके-2024) का आयोजन किया गया। सम्मेलन की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ की गई।

जीयू के कुलपति प्रो दिनेश कुमार ने स्वागत भाषण देते हुए इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि सम्मेलन के दौरान भारतीय सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक दुनिया की आवश्यकताओं के अनुसार उनके अनुकूलन पर केंद्रित चर्चा और विचार-विमर्श हुआ। उद्घाटन सत्र में सार पुस्तक और हिंदी और पंजाबी भाषाओं में लिखित - भारतीय परंपराओं का खजाना और सार पुस्तक का विमोचन किया गया।

बतौर विशिष्ठ अतिथि सीएसआईआर-निस्पर, नई दिल्ली की निदेशक प्रो. रंजना अग्रवाल ने स्वस्तिक (वैज्ञानिक रूप से मान्य पारंपरिक ज्ञान) के बारे में बताया तथा वैज्ञानिक रूप से मान्य भारतीय पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देने में इसके महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्वस्तिक एक राष्ट्रीय पहल है, जिसका समन्वय सीएसआईआर-निस्पर द्वारा किया जाता है।

दक्षिण एशियाई विवि नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो के. के. अग्रवाल ने बतौर मुख्य अतिथि उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए अंतःविषय अनुसंधान और सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य अपनी विरासत को नकारने के बजाय इस ज्ञान को दुनिया के साथ साझा करना होना चाहिए। मुख्य व्याख्यान डॉ. शेखर सी. मांडे, विशिष्ट प्रोफेसर, सावित्रीबाई फुले पुणे विवि और पूर्व महानिदेशक सीएसआईआर ने दिया। उन्होंने पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोणों के साथ जोड़ने की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। सीएसआईआर-निस्पर की प्रधान वैज्ञानिक और सीडीटीके-2024 की समन्वयक डॉ. चारु लता ने आभार व्यक्त किया।