समाचार विश्लेषण/किसानों और नेताओं में टकराव
-कमलेश भारतीय
जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ तब से किसानों और सत्ताधारी नेताओं में टकराव जारी है । पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को करनाल में हेलीकाप्टर से उतरने न दिया , फिर उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को भी हिसार में एचएयू के हेलीपैड पर उतरना पड़ा लेकिन सचिवालय तक किसान विरोध के झंडे लेकर पहुंच गये। इसी तरह हिसार में पिछले माह देवीलाल संजीवनी अस्पताल का उद्घाटन करने आए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी किसानों ने काले झंडे दिखाये और उग्र प्रदर्शन भी किया जिसमें कुछ किसान घायल भी हुए । बरवाला के विधायक जोगीराम सिहाग भी किसानों के गुस्से के शिकार हुए तो डिप्टी स्पीकर गंगवा भी बच न पाये किसानों के विरोध से । कितने उदाहरण हैं ऐसे ।
सबसे ताज़ा उदाहरण है टोहाना के विधायक देवेंद्र बबली का जो किसानों के गुस्से का शिकार बने । वे सिविल अस्पताल जा रहे थे किसी कार्यक्रम का उद्घाटन करने लेकिन राह में किसानों ने न केवल रास्ता रोक लिया बल्कि प्रभाव भी किया जिसमें विधायक के पी ए घायल हो गये । देवेंद्र बबली कार से बाहर निकले और किसानों को बुरा भला कहने लगे जिससे बात बढ़ गयी और इतनी बढ़ गयी कि किसानों में भी फूट पड़ गयी । किसान नेता चढूनी ने कहा कि हमारा इससे कोई वास्ता नहीं। ये कुछ लोग अलग चल रहे हैं लेकिन राकेश टिकैत तो हिसार के रामायण में आकर बैठ गये हैं । इस तरह किसान आंदोलन में भी इस घटना से फूट यानी विचारों में फूट सामने आ रही है । कौन सही , कौन गलत ? हां , विधायक महोदय चंडीगढ़ चले गये हैं । पहले अपनी पार्टी के आक़ा यानी उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से मिले और अब मुख्यंत्री से भी मिल कर अपने साथ हुए घटनाक्रम की जानकारी देंगे ।
मुझे याद आता है सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में शुरू होने पर किसी मीडिया एजेंसी ने कांग्रेस खो यह सुझाव पैंतालीस लाख रुपये लेती दिया था कि प्रचार के पहले दो सप्ताह प्रचार के लिए न निकलें कांग्रेस नेता क्योंकि जनता गुस्से से बुरी तरह भरी पड़ी है । फिर शुरूआत करें छोटी छोटी मोहल्ला बैठकों से और अंतिम सप्ताह जनसभायें कर सकते हैं । यह बात दोहरा रहा हूं कि पैंतालीस लाख रुपये लेकर दी गयी किसी प्रशांत किशोर की ओर से जो अब यह मीडिया सलाह बंद कर गये हैं पश्चिमी बंगाल के चुनाव के बाद । अब मै तो कोई प्रशांत किशोर नहीं हूं
लेकिन बिन मांगे सलाह दे रहा हूं और वो भी मुफ्त कि किसान आंदोलन को खत्म करवाने के लिए प्रधानमंत्री को सलाह दें । किसानों को पिटवाने से या केस दर्ज किये जाने से मामला खत्म नहीं होने वाला बल्कि इससे किसानों को और जोश आ रहा है । बार बार कह रहा हूं कि दिल्ली से यह किसान आंदोलन हरियाणा के नेताओं की गल्तियों से हिसार में शिफ्ट होने के आसार बनते और बढ़ते जा रहे हैं । ऊपर से राकेश टिकैत के लगातार बढ़ते दौरे क्या संकेत दे रहे हैं ? इसलिए समय रहते इस आहट को सुन लीजिए नहीं तो मुश्किल में आ जायेगी हरियाणा सरकार । जाट आरक्षण आंदोलन से भी हिसार और रोहतक ही बुरी तरह प्रभावित हुए थे और प्रकाश सिंह कमेटी भी कुछ प्रकाश न डाल पाई । पहले भी यूपी से आया नेता यशपाल मलिक इस आंदोलन का अगुआ बन गया । करोडों रुपयों की सम्पत्ति जल कर खाक हो गयी। अब भी यूपी के राकेश टिकैत के हाथ में कमान आ गयी है । रब्ब खैर करे । बिन मांगी सलाह वैसे ज्यादा महत्व नहीं रखती । पर कोशिश करने में हर्ज़ क्या है ? कहते हैं न कि मुल्ला सबक न दे तो क्या घर भी न लौटने दे,,,तो भई अपनी सलाह अपने पास रख लेंगे और क्या होगा ...