समाचार विश्लेषण/पहली बार नहीं ठनी मंत्री और अफसर में
-कमलेश भारतीय
हरियाणा के मंत्री ओमप्रकाश यादव और आईपीएस अफसर सुलोचना गजराज में जो टकराव हुआ वह कोई पहली बार नहीं है । मंत्री महोदय ने पत्रकारों के सामने जो भड़ास निकाली महिला आईपीएस के खिलाफ उसके आधार पर महिला अफसर ने अज्ञात के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया है ।
उल्लेखनीय है कि महिला आईपीएस अफसर आईएएस निखिल गजराज की धर्मपत्नी हैं यानी एक साथ आईपीएस और आईएएस संगठनों को नाराज कर लिया मंत्री जी ने ।
इससे पहले आईएएस अफसर रानी नागर नाराज होकर इस्तीफा तक दे गयी थीं जिसे कृष्ण पाल गुर्जर ने वापस करवाया । अभी यह मामला शांत हुआ था कि अब यह नया विवाद सामने आ गया । विपक्ष भी हल्ला बोल रहा है । पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और इनेलो के इकलौते विधायक अभय चौटाला कह रहे हैं कि इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए । दूसरी ओर पूर्व मंत्री प्रो रामविलास शर्मा इसे दुखद बता रहे हैं लेकिन पक्ष मंत्री का बी ले रहे हैं । सरकार ने भी तो तुरंत महिला आईपीएस का ही तबादला किया । गृहमंत्री अनिल विज जांच की बात कह रहे हैं । वैसे ही जैसे फतेहाबाद की एस पी संगीता कालिया का तबादला कर मंत्री अनिल विज को सुरक्षित रखा गया था । न बेटी तब बचाई , न अब बचाई । दोनों मामलों में बेटियों की बलि ली गयी । यूपी की दुर्गा एसडीएम का मामला भूला नहीं होगा । तब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे और इस महिला एसडीएम के खिलाफ समाजवादी नेता ने शिकायत क्या की कि उसकी नौकरी पर बन आई । पति पत्नी को जाकर अखिलेश यादव के चरण पखारने पड़े थे तब जाकर नौकरी और करियर बचे थे । इसलिए कह रहा हूं कि यह पहली बार नहीं है जो अफसर या मंत्री या कहिए राजनेता में ठनी हो । इसकी लम्बी परम्परा है । अनेक उदाहरण हैं । यदि ऐसा न होता तो अब रिटायर प्रदीप कासनी को इतने तबादले झेलने पड़ते ? या फिर अशोक खेमका इस तरह तबादलों का रिकाॅर्ड बना पाते ? सत्ता के चारण नहीं हैं अधिकारी । यह बात और यह संदेश जाना चाहिए राजनेताओं को ।अफसर बराबर प्रशासन में भागीदार हैं । फिर इन्हें चारण क्यों मान लिया जाए ? जब तक अफसर अपने नियमों का पालन करते रहेंगे तब तक वे अफसर हैं । फिल्मों में राउडी राठौर और गंगाजल ऐसी ही फिल्म है । अफसर अपराधियों की मदद करते रहेंगे तो अपराध बढ़ेगा । जब सही अफसर आता है तब सब बदल जाता है । इसीलिए आईएएस/आईपीएस बनना कोई सपना नहीं रह गया । कितने लोग आईएएस या आईपीएस बन कर भी ये सेवायें छोड़ जाते हैं और अन्य कंपनियो की शरण में चले जाते हैं । जरा सोचिए सरकार....