इरशाद कामिल को साहिर अवार्ड मिलने पर बधाई
कुछ याद है इरशाद?
मैं दैनिक ट्रिब्यून का कथा कहानी पन्ना देखता था और तुम्हारे बारे में जुल्फिकार ने बताया कि कहानियां लिखते हो और जनसत्ता में भेजते हो लेकिन प्रकाशित एक भी नहीं होती । मैंने जुल्फिकार से कहा कि मुझे मिलाओ । तुम उसके साथ मोहाली मेरे घर मिलने आए और तीन कहानियां लेकर आए । उस रात मेरी नाइट शिफ्ट में ड्यूटी थी और तीनों कहानियां पढ़ डालीं ।
एक कहानी बहुत प्यारी थी । आतंकवाद पर । एक युवा को मार देते हैं और उसकी आत्मा कैसे गांव पहुंचती है और क्या शानदार संदेश । वाह । उसी रात कथा कहानी का मैटर जाना था । मैंने प्रकाशन के लिए दे दी । सोमवार वह कहानी प्रकाशित हो गयी । यह इरशाद के जीवन की संभवतः पहली प्रकाशित रचना थी ।
फिर हमारी मुलाकात हुई ट्रिब्यून के अकाउंट काउंटर पर क्योंकि तुम भी पीएचडी करते करते दैनिक ट्रिब्यून में काम करने लगे थे । संभवतः पीएचडी गीतकार फिल्म इंडस्ट्री में एक ही हो जो तुम हो । । जिस दिन तुम रिजाइन देकर मुम्बई जा रहे थे । मैंने कहा कि ऐसा क्यों कर रहे हो ?
तुम्हारा जवाब था कि रिस्क तो लेना ही पड़ता है । मैं मुम्बई गीतकार बनने जा रहा हूं ।
आगे की तुम्हारी सफलता की कहानी सब जानते हैं। हम खुश होते हैं तुम्हारे गीत सुनकर ।
सच साडा हक इत्थे रक्ख ।
फिर हमारी मुलाकात हुई पंजाब विश्वविद्यालय में जब तुम अपनी अम्मी की याद में हिंदी विभाग को बारह लाख रुपये देकर स्काॅलरशिप शुरु करने आए थे । तुम्हारे बड़े भाई ने स्टेज पर बताया कि मैंने इरशाद को हिंदी बैंक ऑफिसर का फाॅर्म लाकर दिया था लेकिन यह मुम्बई चला गया । बहुत खूब ।
बहुत बहुत बधाई । शायद मुझे ज्यादा खुशी है कि मैंने एक सही लेखक को पहचाना । मुबारक । उसी अवसर पर मैंने अपना लघुकथा संग्रह इतनी सी बात भेंट किया था । वही स्मृति चित्र ।
-कमलेश भारतीय