कांग्रेस: चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के दावे
-*कमलेश भारतीय
अभी हरियाणा में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं लेकिन इससे पहले मुख्यमंत्री पद के दावे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शुरू हो गये हैं, जो बढ़ती गुटबाजी की ओर संकेत है कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले सुश्री सैलजा बार बार एक ही बात कहती रहीं कि मैं विधानसभा चुनाव लड़ूंगी लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें लोकसभा चुनाव में उतार दिया। विधानसभा चुनाव लड़ने का सीधा सीधा मतलब था यह संकेत देना कि मैं मुख्यमंत्री पद की रेस में हूँ और अब जबकि बड़ी शानदार जीत सिरसा से हुई है तब भी दो दिन से सुश्री सैलजा यह बयानबाजी कर रही हैं कि कांग्रेस में गुटबाजी है और कि यदि गुटबाजी न होती तो कांग्रेस दस की दस सीट जीत लेती। इसके साथ यह कहने में भी कोई भेद नहीं रखा कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के दावेदार और भी हैं । कोई और भी सीएम पद की रेस में है। इस तरह सुश्री सैलजा ने अपनी दावेदारी की ओर संकेत दे दिये हैं ।इसके जवाब में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष उदयभान कह रहे हैं कि सुश्री सैलजा को जो भी कहना है वे कांग्रेस हाईकमान को कहें न कि इस तरह मीडिया के सामने अपनी बात रखें । उदयभान ने कहा कि लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण सही हुआ था, तभी तो हरियाणा में कांग्रेस का ग्राफ बढ़ा है । मत प्रतिशत बढ़ने से ही कांग्रेस ने दस में से पांच सीटें जीती हैं, जिनमें सैलजा भी एक हैं। उदयभान ने दावा किया कि विधानसभा चुनाव कांग्रेस ही जीतेगी और इसकी सत्तर सीटें आयेंगीं । सभी जिलों में सोलह जून से कार्यकर्त्ता सम्मलेन आयोजित किये जायेंगे । उन्होंने कहा कि सैलजा वरिष्ठ हैं और पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाना उचित नहीं। यदि कोई बात कहनी है तो पार्टी नेतृत्व के सामने रखी जाये।
इस तरह कांग्रेस में विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद पर घमासान शुरू हो गया है । इससे यह भी साफ है कि विधानसभा टिकटों की घोषणा में लोकसभा चुनाव की तरह देरी होगी क्योंकि गुटबाजी में सभी पक्ष अपने अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए जमीन आसमान एक कर देंगे और टिकट वितरण लटकता जायेगा। जब इसमें सफलता नहीं मिलेगी तो कुछ दावेदार पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर कर कांग्रेस के प्रत्याशियों को चुनौती देंगे । यह हरियाणा प्रदेश का इतिहास है, परंपरा भी और गुटबाजी को नमन् भी। जीत से पहले मुख्यमंत्री पद की लड़ाई और इसी लड़ाई में तो दस साल चौ बीरेंद्र सिंह भाजपा में काट आये पर मुख्यमंत्री पद वहां भी नहीं मिला । इसी गुटबाजी में राव इंद्रजीत भाजपा में चले गये लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी । उत्तर हरियाणा के विकास का नारा चौ बीरेंद्र सिंह लगाते रहे तो दक्षिण हरियाणा के विकास की बात पर राव इंद्रजीत आगे बढ़ते रहे । उन्होंने तो 'इंसाफ रथ' भी बनवा लिया था लेकिन उसके मैदान में आने से पहले ही वे भाजपा में चले गये और 'इंसाफ रथ' धूल फांक रहा है आज तक। यही कांग्रेस का असली चेहरा है -कांग्रेस ही कांग्रेस को हराती है और इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा के छह प्रत्याशी कांग्रेस मूल के ही तो थे यानी कांग्रेस ही कांग्रेस से लड़ी । कहीं जीती, कहीं हारी।
यह गुटबाजी कब तलक रहेगी? यह सवाल हरियाणा भर में उठ रहा है ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।