समाचार विश्लेषण/जी टी रोड पर कांग्रेस की लड़ाई
-*कमलेश भारतीय
कभी पंजाबी में एक गाना बहुत लोकप्रिय हुआ था -
जी टी रोड ते दुहाइयां पावे
यारां दा ट्रक बल्लिए...
आज जो हालत हरियाणा में प्रदेश कांग्रेस की हो रही है उससे तो कहना पड़ रहा है कि
जी टी रोड ते दुहाइयां पाउन
कांग्रेस दे नेता बल्लिए...
कैसे ? जिस दिन से राहुल गांधी की मौजूदगी में हरियाणा कांग्रेस नेता मैराथन बैठक में पहुंचे, उसी दिन से एकता का पाठ तो भूल गये , हरियाणा वापस आकर अपने अपने शक्ति प्रदर्शन में जुट गये हैं । करनाल में कुलदीप बिश्नोई पहुंचे और समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन करते कहा कि करनाल उनका आदमपुर के बाद दूसरे घर जैसा है । बस । इसी बात पर पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा ने मीडिया में आकर कहा कि कैसा घर ? कब से करनाल में चौ भजनलाल ने अपना घर बेच दिया और अपनी लोकसभा सीट हार गये थे । फिर कैसी लोकप्रियता का दावा ? कुलदीप बिश्नोई के साथ एक भी विधायक नहीं और मुख्यमंत्री बनने के सपने ? मुंगेरीलाल के हसीन सपने जैसी बात ही होगी । जो व्यक्ति ज्यादातर समय विदेश में बिताये और अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों को भी उपलब्ध न हो , वह करनाल वालों को क्या देगा ?
इस तरह एक नया संघर्ष राहुल गांधी के एकजुटता के पाठ के बाद हरियाणा प्रदेश कांग्रेस में शुरू हो गया है । कुलदीप बिश्नोई ने पहले भाजपा और फिर बसपा के साथ हजकां के गठबंधन किये थे लेकिन ये समय के साथ टूट गये और फिर वापसी उसी कांग्रेस में करनी पड़ी जिसे जी भर कर कोसा करते थे । वे जगन रेड्डी बनने के सपने देखते थे लेकिन जगन रेड्डी जैसी मेहनत कौन करे ? आज जगन रेड्डी तो मुख्यमंत्री हैं लेकिन कुलदीप अकेले ऐसे विधायक जो किसी के साथ नहीं हैं और कोई इनके स्थान नहीं है । सिर्फ चेहरा दिखाने आते हैं । जब हजकां बनाई थी तब बड़े बड़े नेता मिलने का समय मांगते द्वार पर बैठे रहते और ये महाशय ख्याली मुख्यमंत्री बने उन्हें समय ही न देते और धीरे धीरे काफिला बिखर गया , बिखरता गया और ये अकेले ही रह गये । अब ये सपने देख रहे हैं मुख्यमंत्री या फिलहाल प्रदेशाध्यक्ष बनने के । सपने कोई भी देख सकता है और सबको सपने देखने का अधिकार है । लोकतंत्र है और हर कोई दावा ठोक सकता है । दावों का क्या ? आधार तो कब का खिसक चुका है । रेणुका बिश्नोई भी अब विधायक नहीं रहीं । बड़े भाई चंद्रमोहन से संबंध अच्छे नहीं । एकजुटता है कहां ? नलवा से मां जसमा देवी हार गयी थीं और टिकट के लिए बेटे का मुंह देखती रही थीं । तब जाकर टिकट दिया था । संगठन चलाने का अनुभव नहीं । एक हीरो जैसे करिश्मे की उम्मीद हमेशा करते हैं कुलदीप बिश्नोई । पिता के गुण ग्रहण करने में चूके से लगते है और शो या इवेंट मेनेजमेंट राजनीति करते हैं । ऐसे व्यक्ति से किस परिणाम की उम्मीद की जा सकती है ? पंजाब में जैसे नवजोत सिद्धू को अध्यक्ष बना कर पछताना पड़ा , कहीं वैसा ही पछतावा यहां न करना पड़े राहुल बाबा को । सोच समझ कर दांव लगाना भाई ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष,हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।