कांग्रेस : क्या भारी पड़ा -गुटबाजी या संगठन न होना?
-*कमलेश भारतीय
अभी हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम पर अलग अलग बातें सामने आ रही हैं, जो मज़ेदार भी हैं तो गंभीर मंथन की भी जरूरत महसूस होती है । जहां तक मज़ेदार बात है तो वह है कि कांग्रेस ही नहीं भाजपा भी सकते में है, इस तरह के परिणाम पर ! कहते हैं कि कांग्रेस हार की वजह तलाश रही है तो भाजपा अपनी जीत पर हैरान हो रही है । भाजपा और कांग्रेस दोनों हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम से हैरान परेशान हैं कि आखिर यह हुआ तो हुआ कैसे? कांग्रेस हिसाब किताब लगा रही है कि हम हारे क्यों और कैसे तो भाजपा यह समझने की कोशिश कर रही है कि हम जीते तो जीते कैसे? क्या जादू चल गया ? कैसा जादू चल गया ? हवा कैसे बदल गयी ? समझ से परे है यह रहस्य ।
तुझसे नाराज़ नहीं एग्जिट पोल
हैरान हैं हम, हां, हैरान हैं हम !
एग्जिट पोल क्या थे और नतीजे क्या? आखिर हुआ तो हुआ क्या?
इधर कांग्रेस के दिग्गज नेता चौ बीरेंद्र सिंह ने एक बात कही है कि कांग्रेस की हार का कारण संगठन का न होना सबसे बड़ी वजह रही । यह तो सब जानते हैं कि पिछले दो चुनावों से कांग्रेस बिना संगठन के ही चुनाव में उतर रही है । सैलजा भी आधे अधूरे समय तक हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रहते संगठन बनाने में असफल रही और फिर कमान उदयभान के हाथों में सौंप दी गयी लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात । संगठन बनने बनाने के शुरू में बड़े बड़े दावे किये जाते रहे लेकिन संगठन बन रहा है, सूचियां बन रही हैं जैसी खबरों के बाद धीरे धीरे गुटबाजी सिर उठाती गयी और संगठन बनाने की इच्छाशक्ति भी नहीं रही किसी की । चौ बीरेंद्र सिंह ने यही दर्द तो बयान किया है कि यदि कांग्रेस संगठन होता तो गुटबाजी भी कम होती । उनके अनुसार कांग्रेस में ऐसे कार्यकर्त्ता हो गये जो सिर्फ टिकट चाहते थे । अगर संगठन होता तो कार्यकर्त्ता और पदाधिकारी पार्टी से बाहर नहीं जाते । उन्होंने कहा कि संगठन होता तो गुटबाजी की सोच ढीली पड़ जाती । चौ बीरेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के इस तंज का भी जवाब दिया कि कांग्रेस वाले हवा में थे और हवा में ही रह गये । चौ बीरेंद्र सिंह ने कहा कि वोट परसेंटेज में सिर्फ 0.90 प्रतिशत का फर्क है । सारा रौला इतना ही है ।
इस तरह यह कम फर्क भी कांग्रेस को तीसरी बार सत्ता से बाहर करने में सफल रहा और हरियाणा में सबसे कम वोट से हारने वाले कांग्रेस प्रत्याशी भी उचाना कलां से चौ बीरेंद्र सिंह के पूर्व आईएएस अधिकारी व पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह ही रहे जबकि उनकी जीत के प्रति कांग्रेस भी आशवस्त थी । यदि संगठन होता तो निश्चय ही ये 32 वोट कम न रह जाते । यह चौ बीरेंद्र सिंह परिवार की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण हार कही जा सकती है तो शर्मनाक हार पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की हुई जो निर्दलीय से भी निचले पायदान पर आ पहुंचे । फिर भी उचाना चौ बीरेंद्र सिंह व चौटाला परिवार के बीच हाॅट सीट बना ही रहेगा भविष्य के चुनावों में भी । चौ बीरेंद्र सिंह एक भीष्म पितामह की भूमिका में आ चुके हैं, मुख्यमंत्री की लड़ाई से मोहभंग हो चुका है । शायर कहते हैं कुछ ऐसे :
भागता हूं हर तरफ ऐसे हवा के साथ साथ
जिस तरह सचमुच मुझे उसका पता चल जायेगा!!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।