भारतीय समाज व राष्ट्र के उत्थान के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती के योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकताः प्रो सोमदेव शतांशु
भारतीय ज्ञान परंपरा के संवर्धन में महर्षि दयानंद का अवदान विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित।
रोहतक, गिरीश सैनी। महर्षि दयानंद सरस्वती भारतीय ज्ञान परंपरा के सशक्त संवाहक थे। उन्होंने मानवीय मूल्यों को समाज में प्रतिष्ठापित किया तथा वेदों के ज्ञान को समाज तक लेने का कार्य करते हुए, भारतीय चिंतन में वैज्ञानिक सोच को जागृत किया। यह विचार महर्षि दयानंद सरस्वती के 200 वें जन्मदिन के अवसर पर एमडीयू के राधाकृष्णन सभागार में- भारतीय ज्ञान परंपरा के संवर्धन में महर्षि दयानंद का अवदान विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में उभर कर सामने आए।
एमडीयू के महर्षि दयानंद एवं वैदिक अध्ययन केन्द्र, संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग तथा छात्र कल्याण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमदेव शतांशु ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। प्रो. सोमदेव शतांशु ने स्वामी दयानंद सरस्वती को भारतीय ज्ञान परंपरा का ध्वज वाहक बताते हुए कहा कि उन्होंने समाज-राष्ट्र में वैदिक चेतना जागृत की। भारतीय समाज व राष्ट्र के उत्थान के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती के योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता, ऐसा उनका कहना था।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी, अयोध्या के संस्कृत विभाग के पूर्व समन्वयक डॉ. ज्वलंत कुमार शास्त्री ने बीज भाषण देते हुए कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारतीय ज्ञान परंपरा को अपने प्रयासों से सुदृढ़ करने का कार्य किया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद ने समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों, रूढिय़ों-बुनाईयों व पाखण्डों का खंडन व विरोध किया। उनके ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश ने समाज को अध्यात्म और आस्तिकता से परिचित कराया।
प्रधान सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली स्वामी आर्यवेश तथा पद्मश्री डॉ. सुकामा आचार्या ने बतौर विशिष्ट अतिथि उद्घाटन सत्र में शिरकत की और अपने संबोधन में स्वामी दयानंद के जीवन दर्शन एवं योगदान को रेखांकित किया। एमडीयू के महर्षि दयानंद एवं वैदिक अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. सुरेन्द्र कुमार ने स्वागत भाषण देते हुए संगोष्ठी की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। प्रो. सुरेन्द्र कुमार ने महर्षि दयानंद सरस्वती की विचारधारा और योगदान पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन दर्शन को प्रेरणादायी बताया। संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग की अध्यक्षा डॉ. सुनीता सैनी ने आभार जताया। इस मौके पर एमडीयू के प्राध्यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी, वाईआरसी वालंटियर्स, गुरुकुल के विद्यार्थी, आर्य समाज के प्रबुद्धजन, शहर के गणमान्यजन मौजूद रहे।