छठ पूजा पर समाजसेवी संस्थाओं का योगदान
अंधेरे में रोशनी की किरण के जैसा
कमलेश भारतीय
हिसार: सेक्टर सोलह सत्रह की झुग्गी झोंपड़ियों में अचानक आई आपदा से पैंसठ परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था, जैसे सब कुछ खत्म हो गया हो लेकिन हिसार की अनेक समाजसेवी संस्थाओं ने आकर इनके अंधेरे में रोशनी लाने का काम किया । जहां से राख हुई झुग्गी झोपड़ियों को फिर से खड़ा करने के लिए विधायक व समाजसेवी सावित्री जिंदल ने सबसे पहले सूचना मिलने पर घटनास्थल का दौरा किया, वहीं हरसंभव सहायता करने का विश्वास दिलाया और उन परिवारों को नये आशियाने बनाने के लिए तिरपाल व बांस उपलब्ध करवाये तो अनेक समाजसेवी संस्थायें इन परिवारों के लिए अन्न, वस्त्र और रसोई का सामान से लेकर चाय, खाना, बिस्किट, दूध, ब्रेड यहां तक कि बच्चों के लिए किताबें कापियां तक लेकर देवदूतों की तरह हाज़िर हो गये । ये लोग मेरी क्रिसमस पर खुशियां लेकर आने वाले सांता क्लाॅज से कम नहीं रहे । सेक्टर सोलह सत्रह के कम्युनिटी सेंटर में इन परिवारों को अस्थायी बसेरा दिया गया और वहीं इनकी हर जरूरत पूरी की गयी ! वहां रविवार को अनेक संस्थायें इनके लिए कम्बल, चादरें, स्वैटर और जलपान के मोर्चे पर कदम कदम पर खड़ी मिलीं । अपनों से बढ़कर अपनों जैसा प्यार व केयर दी ।
कल सायं फिर इनके सबसे बड़े पर्व छठ पर्व पर सभी संस्थाओं के प्रतिनिधि पहुंचे और इन सभी पैंसठ परिवारों को पर्व खुशी से मनाने के लिए फिर से रसोई का सूखा राशन ही नहीं बल्कि रसोई में उपयोग आने वाले बर्तन भी दिये । इनको दूध, ब्रेड और बिस्किट तक भेंट किये जाते रहे । इनके चेहरों पर समाजसेवी संस्थाओं ने रौनक लौटाने और छठ पर्व की खुशी देने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी ।
समाजसेवी त्रिलोक बंसल ने हमारा प्यार हिसार का नेतृत्व करते सबके साथ मिलकर बड़े ढंग व तरीके से ये 28 चीज़ें कतारबद्ध कर सबके साथ मिलकर प्रदान कीं । इन सब संस्थाओं में मणिकर्णिका, दिल से, खुशी, राॅबिन हुड आर्मी, लाडली चेरिटेबल ट्रस्ट, भीख नहीं, किताब दो, मंदबुद्धि महिला अनाथाश्रम, गुरुद्वारा सिंह सभा आदि संस्थाओं से त्रिलोक बंसल, बबली चाहर, नेहा मेहता, रेज़ी, प्रवीण खुराना, मंजू स्याहड़वा, अनिल बागड़ी, अन्नू चिनिया, गरिमा बंसल, दर्शना, चेतना कौशिक, निर्मल गर्ग, अजय सिंह पूनिया मंगालीवाला, वेदप्रकाश, पवन कुमार, सुभाषचंद्र, मुन्नी देवी राणा, पायल विश्वास, मंजुला, सुमन नेहरा आदि न जाने कितने लोगों के हाथ इनकी सहायता के लिए बढ़े, जिससे इनकी छठ के त्योहार की खुशी इनके चेहरों पर लौटाई जा सके । यह मंजर देखकर खुशी के आंसू इन परिवारों की आंखों में देखे जा सकते थे और मुझे कुंवर बेचैन की ये पंक्तियां याद हो आईं :
किसी के पांव का कांटा तो निकालकर देखो
तुम्हारे पांव की चुभन भी जरूर कम होगी!