समाचार विश्लेषण/लिंचिंग पर छिड़ा विवाद
-*कमलेश भारतीय
पिछले कुछ वर्षों से लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं । यह एक नयी तरह की बुराई पनपने लगी है । जैसे कुछ फिल्मों में न अपील , न दलील , फैसले ऑन द स्पाॅट , बिल्कुल वैसे ही न कोई पूलिस , न कोई वकील फैसले ऑन द स्पाॅट होने लगे हैं । चाहे किसान आंदोलन के दौरान गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के चलते क्रूरतम हत्या की गयी हो या फिर इन दिनों पंजाब में ऐसी दो घटनाएं सामने आई हों । यही नहीं महाराष्ट्र में भी दो साधुओं की पीट पीट कर हत्या कर दी गयी थी । हरियाणा के मेवात में बी गौरक्षकों ने ऐसा ही कदम उठाया था । यदि सज़ा देने की जिम्मेवारी खुद भीड़ ही उठाने लग जाये तो फिर वकील और अदालतें किस काम के लिए हैं ? आखिर कोई फैसले एक भीड़ कैसे ले सकती है और कितना सही फैसला कहा या माना जा सकता है ? भीड़ सदा उन्माद में आकर फैसले करती है , होश में नहीं ।
इस लिंचिंग के मुद्दे को जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा के सत्ता में आने के साथ जोड़ा तो भाजपा ने भी करारा गवाह देते इसे राजीव गांधी के साथ जोड़ते कहा कि लिंचिंग के पिता राजीव गांधी थे और उन्होंने इसकी शुरूआत सन् 1984 में दंगों से की थी जिनमें बड़ी संख्या में एक समाज के लोग शिकार हुए थे । वैसे इन दंगों से जगदीश टाइटलर की राजनीति सदा सदा के लिए खत्म हो गयी । यह भी एक सच है लेकिन क्या राजीव गांधी के समय जो हुआ वह क्या भाजपा सरकार के समय भी जायज कहा जा सकता है ? क्या सन् 84 के दंगों की सज़ा कांग्रेस को नहीं मिली ? क्या किसी ने भी उन दुखद घटनाओं को सराहा? नहीं लेकिन अब सन् 84 के दंगों को भाजपा ने राजनीति में भुनाया नहीं ? हर चुनाव और खासतौर पर दिल्ली के विधानसभा चुनाव में इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया जाता है । फिर चाहे भाजपा हो या आप । इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं । इस राजनीति का आधार घृणा ही मानी जा सकती है । राजनीति ने जोड़ने की नहीं समाज के विभिन्न वर्गों को तोड़ने की नीति अपना रखी है । गोधरा कांड किस श्रेणी में रखा जाये? रेल मे दो महिलाओं को इसलिए पीटा गया कि वे ले जा तो रही थीं भैंस का मांस लेकिन इसे गोमांस माना गया । इसी तरह एक फ्रिज में मुस्लिम परिवार द्वारा रखे मांस को भी गौवंश बता कर खूब हंगामा किया गया था उत्तर प्रदेश में । ऐसे कितने कांड सामने आएं इससे पहले लिंचिंग पर मंथन जरूरी है । इस नयी बुराई को समाप्त किया जाना चाहिए । नहीं तो एक दूसरे को दोषी ठहराना कोई हल नहीं ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।