दस दस सवालों का खेला भाई/कमलेश भारतीय
यह दस सवालों का सिलसिला तो चलता रहेगा। मीडिया को भी मनोरंजक बहस मिल गयी है।
कभी राम जेठमलानी प्रतिदिन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सवाल पूछा करते थे। एक सवाल जवाब बहुत मजेदार रहा था जब राम जेठमलानी को कुत्ता कहा गया तो उन्होंने जवाब में कहा कि कुत्ते वहीं भौंकते हैं जहां चोर होते हैं। उन दिनों ये सवाल जवाब अखबारों का गर्म मसाला होते थे। आजकल चीन विवाद पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला के बीच वैसी ही जंग यानी बयानबाज़ी देखने को मिल रही है। जेपी नड्डा और भाजपा पीएम फंड से राजीव गांधी फाउंडेशन को फंड दिए जाने की बात उठा रहे हैं, तो सुरजेवाला आरएसएस से जुड़ी संस्थाओं को फंड दिए जाने को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं। यदि दोनों के बयान सही हैं तो यह तो कहा जा सकता है कि अंधा बांटे रेवडियां, मुड़ मुड़ अपनों को ही दे। पर क्या और कितनी सच्चाई है? नड्डा कहते हैं कि हमें सवालों से बचना नहीं चाहिए। देश जवाब मांग रहा है कांग्रेस से। जबकि सुरजेवाला कह रहे हैं कि क्या विपक्ष सवाल न पूछे? बहुत सारे सवाल पूछ डाले हैं सुरजेवाला ने भी।
सवाल पूछना विपक्ष का धर्म है और लोकतांत्रिक अधिकार भी। जवाब इतना कि भाजपा चीन विवाद से ध्यान हटाने के लिए यह फंड का फंडा चलाया जा रहा है। अब यह तो जनता भी समझती है कि कौन कौन कितने पानी में है? इधर पूर्व केंद्रीय मंत्री व एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार भी कूदे हैं विवाद में यह बताते हुए कि चीन ने सन् 1962 में भारत का 45000 वर्ग क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिया था। हालांकि वे यह भी अनुरोध कर रहे हैं कि सुरक्षा से जुड़े मामलों का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। गलवान घाटी की घटना को रक्षा मंत्री की नाकामी बताने की जल्दबाजी नहीं करने की हिदायत भी की है। उन्होंने कहा कि यह सारा प्रकरण बड़ा संवेदनशील प्रकृति का है।
सब जानते हैं कि हिंदी चीनी भाई भाई के नारे के बीच ही चीन ने सन् 1962 में भारतीय सीमा पर हमला बोला था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल के पंचशील के कार्यक्रम को बहुत आघात लगा था। कृपलानी की छवि भी प्रभावित हुई थी। अब प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर होने की बात कह रहे हैं लेकिन चीन से व्यापार कितना बड़ा और क्यों? ऐसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंध क्यों चलते रहे? टिक टाॅक की बड़ी चर्चा है लेकिन टिक टाॅक बंद कहां हुआ? चीनी सामान खासतौर पर दीपावली पर बिजली की लड़ियों ने हमारे मिट्टी के दीये बनाने वालों का रोज़गार बुरी तरह प्रभावित किया। बहुत सा क्राकरी का सामान भी। व्यापार के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने व बनाने की जरूरत है। यह दस सवालों का सिलसिला तो चलता रहेगा। मीडिया को भी मनोरंजक बहस मिल गयी है।