समाचार विश्लेषण/ बेटियों की घुड़चढ़ी: एक अच्छी पहल
बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ के नारे से असल में बेटियों की दशा और दिशा की ओर ध्यान दिलाना था । यह नारा भी हरियाणा के पानीपत में दिया गया जो बड़ी बड़ी ऐतिहासिक लड़ाइयों का गवाह है तो इस नारे का गवाह भी बनाया गया । देश के प्रधानमंत्री ने इसी शहर को चुना ।
-*कमलेश भारतीय
बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ के नारे से असल में बेटियों की दशा और दिशा की ओर ध्यान दिलाना था । यह नारा भी हरियाणा के पानीपत में दिया गया जो बड़ी बड़ी ऐतिहासिक लड़ाइयों का गवाह है तो इस नारे का गवाह भी बनाया गया । देश के प्रधानमंत्री ने इसी शहर को चुना । हरियाणा की बेटियों ने फिर हाॅकी में मान सम्मान और गौरव बढ़ाया । ओलम्पिक में पहली बार फाइनल तक पहुंचीं । हार गयीं लेकिन दुनिया का दिल जीत लिया । हरियाणा का गौरव और सिर ऊँचा कर दिया ।
वैसे आठवें फेरे की बात भी चली । यानी दहेज न लाने का फेरा । दहेज न लेने का प्रण । बेटियों ने दहेज लोभियों की बारातों को लौटाने का साहस दिखाया तो दहेज लोभियों के पसीने छूट गये । बारात सीधे पुलिस थाने ले जाने लगीं लड़कियां ।
इसी तरह घुड़चढ़ी की रस्म है जो आम तौर पर लड़कों के लिए है । लड़के को घोड़े पर बिठाकर अपने पवित्र गुरुओं या सम्मान में पूजा अर्चना करने ले जाते हैं । इस बार झज्जर के गांव माजरी के रमेश कुमार ने अपनी बेटी पूजा की घुड़चढ़ी निकाली और सारा गांव इसे देखने उमड़ पड़ा । ग्रामीणों ने कहा भी कि जब लड़के की घुड़चढ़ी निकाली जा सकती है तो लड़की की क्यों नहीं ? रमेश ने अपनी बेटी पूजा की घुड़चढ़ी निकाल कर बेटियां बेटों से कम नहीं होने का संदेश दिया है । बेटी इस प्रकार की इच्छा रखते है तो इस परंपरा को निभाना चाहिए । पूजा जब घोड़ी पर बैठकर , हाथ में तलवार लेकर निकली तो उसे देखने के लिए महिलाएं , बच्चे , युवा , ग्रामीण सभी गांव की गलियों में अपने घरों के सामने या छत पर नजर आये । पूजा घोड़ी पर अपनी आराध्या देवी के मंदिर पहुंची और पूजा अर्चना की ।
बेशक यह पहली घटना नहीं लेकिन ये घटनाएं बढ़ती जानी चाहिएं ताकि बेटियां बेटों के समान होने का अहसास कर सकें और स्वाभिमान से जी सकें । हरियाणा के दूर दराज गांवों में तो अभी पर्दा प्रथा से ही छुटकारा नहीं मिला है महिलाओं को , घुड़चढ़ी तो बहुत दूर की बात है । इस सामाजिक कुप्रथा को दूर करने के लिए अभियान की जरूरत है ।
मुझे याद है कि हिसार की महिला उपायुक्त के सामने कुछ महिलाएं मुंह ढांपे ही आईं । तब उन्होंने कहा कि यहां तो मैं एक महिला अधिकारी हूं तो आप यह पर्दा कर क्यों आई हैं ?
इस पर उनका जवाब बहुत ही अव्यावहारिक व हास्यास्पद था कि बाहर तो म्हारे देवर जेठ खड़े हैं न जी । इतनी मानसिक गुलामी से पीछा कैसे छूटेगा ? यह सोचने की बात है । विचार करने की बात है । बेशक रानी रामपाल , कल्पना चावला , संतोष यादव , रीना भट्टी , मनीषा पायल , अनिता कुंडू , कविता और शिवांगी पाठक जैसी हरियाणा की बेटियां न केवल पर्वतारोहण कर आईं बल्कि कल्पना चावला ने तो अंतरिक्ष अभियान में हिस्सा लिया लेकिन इस परदा प्रथा को यदि हटाया जाये तो और प्रतिभाएं भी सामने आ सकती हैं ।
अब नारा लगे -पर्दा हटवाओ और बेटी बचाओ ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष , हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।