समाचार विश्लेषण/परिवार में नहीं टिकट तो दलबदल
-*कमलेश भारतीय
अपर्णा यादव को परिवार में टिकट नहीं मिली । हालांकि कोशिश की ससुर मुलायम सिंह यादव के माध्यम से लेकिन बात नहीं बनी तो अपर्णा यादव ने दलबदल कर कमल थाम लिया । इसे दलबदल कहना भी सही नहीं और सपा को कोई झटका लगा यह भी सही नहीं क्योंकि अपर्णा अपने इरादे बहुत पहले जाहिर कर चुकी थीं जब योगी आदित्यनाथ को अपनी गौशाला में लेकर गयी थीं । वे पहले भी भाजपा के करीब थीं और मोदी की प्रशंसक । इसके बावजूद इसे परिवारवाद से जोड़कर देखा जा रहा है कि अखिलेश यादव इस परिवारवाद से मुक्त होना चाहते हैं और यह निश्चय कर लिया है कि परिवार में से किसी को टिकट नहीं देंगे । जब सामने इतना बड़ा मुकाबला हो तो नये नियम क्या कोई मदद कर सकेंगे ? फिर अपर्णा तो पहले भी लखनऊ कैंट से सपा की ओर से चुनाव लड़ चुकी हैं बेशक रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थीं । खुद अखिलेश यादव प्रचार करने भी गये थे । फिर इस बार उसी प्रत्याशी का टिकट क्यों काट रहे थे ? असल में अपर्णा समाजवादी पार्टी के प्रमुख परिवार की अंदरूनी लड़ाई का शिकार हुई हैं । न कि किसी नये सिद्धांत या नियम के चलते टिकट काटा गया । इससे कोई झटका भी नहीं माना जा सकता क्योंकि यह लगभग बहुत पहले से तय था । अब भाजपा को भी सपा को थोड़ा दलबदल में जवाब देना था तो यह कमल थमा कर अपर्णा को आगे कर दिया ।
जहां तक परिवारवाद की बात है तो हरियाणा के चौटाला परिवार के सदस्य भी अलग अलग दलों में शामिल होते रहे हैं । आज जजपा भाजपा की सरकार में मंत्री रणजीत सिंह चौटाला एक समय कांग्रेस में शामिल हो गये थे और कुछ समय भाजपा में भी रहे और आखिरकार निर्दलीय चुनाव जीते और मंत्री हैं । उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और उनके पिता अजय चौटाला इनेलो की शान और प्राण रहे लेकिन फिर जजपा नाम से अलग पार्टी बना ली और अब सरकार में शामिल हैं दुष्यंत चौटाला । अभय चौटाला अब इनेलो की ओर से एकमात्र विधायक हैं । इस तरह इनेलो या कहिए चौटाला परिवार तीन तीन रूपों में विधानसभा में मौजूद है ।
परिवारवाद का उदाहरण देश का सिंधिया परिवार भी है जिसकी बेटी बसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं और ज्योतिरादित्य सिंधिया जो पहले कांग्रेस में रहे और राहुल की ड्रीम टीम के भी सदस्य रहे लेकिन अब भाजपा में और मंत्रिमंडल में भी शामिल । पंजाब के बादल परिवार के सदस्य मनप्रीत बादल ने अकाली दल छोड़कर कांग्रेस का साथ थामा और वित्तमंत्री भी रहे । इस तरह पंजाब , हरियाणा हो या मध्य प्रदेश सभी परिवारवाद के आरोप से मुक्त नहीं हैं । परिवारवाद का एक और उदाहरण मेनका गांधी और उनके बेटे वरूण गांधी भी हैं जो भाजपा में शामिल हुए और कांग्रेस के गांधी परिवार से अलग राजनीति कर रहे हैं ।
दरअसल यह परिवारवाद राजनीति में अपने पांव पसारता ही गया । फैलता ही गया । इसे अखिलेश यादव चाह कर भी खत्म नहीं कर पायेंगे । खत्म होना चाहिए लेकिन नेता अपने परिवार से आगे सोचते और देखते ही नहीं । एक समय सपा ने 44 ऐसे लोगों को टिकट दिये जो यादव परिवार के करीबी रिश्तेदार थे । फिर एक टिकट अपर्णा भी ले जातीं तो क्या गम था ? यदि अखिलेश ने सच्ची भावना से परिवारवाद को खत्म करने की सोची है तो बधाई के पात्र हैं । कम से कम एक नेता तो ऐसा सख्त कदम उठाने जा रहा है ।
आगे आगे देखिये होता है क्या ...
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।