दिल्ली सरकार , किसान आंदोलन और कीलें
-कमलेश भारतीय
दिल्ली सरकार से बातचीत के लिए हम तैयार हैं न केवल आज बल्कि एक साल बाद भी । जब चाहे बातचीत के लिए सरकार बुला सकती है । यह कहना है किसान आंदोलन का चेहरा बने राकेश टिकैत व गुरनाम सिंह चढ़ूनी का । उनका यह भी कहना है कि अब गांव गांव खापों ने इस आंदोलन की कमान संभाल ली है । अब इस आंदोलन को सफल होने से कोई रोक नहीं सकता । नरेश टिकैत ने भी कहा है कि जो कीलें दिल्ली सरकार ने राह में बिछायी थीं , वे सब निकाल कर और किसान आंदोलन सफल कर ही घर लौटेंगे । आंदोलन बढ़कर लाल रोको तक जाने वाला है । अब सरकार की मर्जी है कि कब बातचीत करनी है और कब किसानों की बात सुननी है या इस पर गौर करना है ।
सरकार अभी तक मुगालते में है और यही सोच कर चल रही है कि किसान थक बार कर लौट जायेंगे या कानून होल्ड करो आ पर मान जायेंगे या इनको मनवा लेंगे । कुछ फूट डालने की कोशिशें भी जारी हैं जैसे किसी भाल है यह नेता को आंदोलन से देर कर दिया । इससे कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि भाल सिंह ही काली भेड़ साबित हुआ ।
प्रधानमंत्री जी एक फोन काॅल की दूरी पर बैठे हैं और खुद फोन नहीं कर रहे किसान नेताओं को । किसानों ने मैसेज भेज दिया है फिर भी अनसुना क्यों कर रहे हैं ? कम से कम सत्तर लोग इस आंदोलन में अपनी जाने गंवा चुके । क्या इन जानों का कोई मोल नहीं ? क्या इनके निधन पर संसद में दो मिनट का मौन भी नहीं , साहब ? ये इसी देश के वासी थे । वासी है । इन्होंने जैसा कि आपने स्वीकार किया आपके थोपे गये कानूनों को रद्द करवाने की मांग को लेकर जानें दीं ।
इधर कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी बाड्रा यूपी की किसान महापंचायतों में जाने लगी हैं । आप अपनी देरी से कांग्रेस को जीवनदान देते जा रहे हो , साहब । विपक्ष को ऊपर उठाने में आपका ही सहयोग है जैसे आपके नेता कहते हैं कि राहुल गांधी अध्यक्ष बने तो भाजपा को फायदा है । अब किसका फायदा हो रहा है यह सोचना आपका काम है । पर सोच लीजिए । समय रहते कदम उठा लीजिए । कीलें लगा कर बदनाम हुए और अब फोन काॅल कब करोगे ?