लम्बे गुलामी काल के बावजूद भारत ने अपनी दिव्य सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखा: गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद

लम्बे गुलामी काल के बावजूद भारत ने अपनी दिव्य सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखा: गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद

हिसार, गिरीश सैनी। जियो गीता, गीता ज्ञान संस्थानम, कुरूक्षेत्र के संस्थापक गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा है कि लम्बे गुलामी काल के बावजूद भारत ने अपनी दिव्य सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखा।  भारत की धरा कभी भी महान गुरूजनों, चिंतकों, विचारकों तथा संतों से वंचित नहीं रही।  गुरु जम्भेश्वर महाराज भारत धरा के ऐसे ही महान संत एवं पर्यावरणविद् थे।  

स्वामी ज्ञानानंद महाराज गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार के गुरु जम्भेश्वर महाराज धार्मिक अध्ययन संस्थान के सौजन्य से वीरवार  को शुरु हुए दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को मुख्यातिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। 'गुरु जम्भेश्वर जी के नैतिक, आध्यात्मिक एवं पर्यावरणीय चिंतन की वर्तमान युग में प्रासंगिकता' विषय पर इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में लालासर साथरीधाम, बीकानेर के महंत स्वामी सच्चिदानंद आचार्य विशिष्ट अतिथि के रूप में जबकि हिमाचल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलाधिपति पदम्श्री प्रो. हरमोहिन्द्र सिंह बेदी मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। अध्यक्षता गुजवि के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने की।  

गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि हर युग में महान व्यक्तित्वों की उपस्थिति भारत का गौरवशाली पक्ष है।  इसी पक्ष के कारण भारत की संस्कृति जीवंत बनी रही।  उन्होंने कहा कि गुरु जम्भेश्वर महाराज का नैतिक, आध्यात्मिक एवं पर्यावरणीय चिंतन सैकड़ों वर्षों के बाद भी और अधिक प्रासंगिक होता जा रहा है।  उनके चिंतन की यही प्रासंगिकता इस तथ्य का प्रमाण है कि उनका व्यक्तित्व विराट है।  जम्भवाणी के हर श्लोक में श्रीमदभगवद गीता के तत्व भी झलकते हैं।  उन्होंने गीता और जम्भवाणी को अध्ययन ही नहीं, बल्कि जीवन जीने का मार्ग भी बताया।  

स्वामी ज्ञानानंद ने कहा कि भारत में कथनी का नहीं, बल्कि करनी का सम्मान हुआ है।  जंगल में मंगल तो महापुरूष कर देते हैं, लेकिन गुरु जम्भेश्वर महाराज ने तो अपनी दिव्यता से जंगल को ही मंगल बना दिया।  उन्होंने कहा कि हमें अपने प्रत्येक कार्य में आस्था की दृष्टि को भी शामिल करना चाहिए।  

मुख्य वक्ता पदमश्री प्रो. हरमोहिन्द्र सिंह बेदी ने अपने सम्बोधन में गुरु जम्भेश्वर महाराज के जीवन से जुड़ी प्रामाणिक जानकारियों के स्रोतों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस गुरु जम्भेश्वर महाराज के नाम पर ही मनाया जाना चाहिए।  
उन्होंने कहा कि जम्भवाणी का हिन्दी साहित्य में अग्रणी योगदान है।

विशिष्ट अतिथि महंत स्वामी सच्चिदानंद आचार्य ने गुरु जम्भेश्वर महाराज के आरंभिक तथा आध्यात्मिक जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी दी।  

कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने अपने स्वागत सम्बोधन में गुरु जम्भेश्वर महाराज के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी दी।  उन्होंने कहा कि उनका दर्शन केवल धार्मिक उपदेश नहीं हैं, बल्कि मनुष्य के नैतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक जीवन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।  भौतिकवाद के वर्तमान युग में गुरु जी के सिद्धांत हमारा मार्गदर्शन करते हैं तथा जीवन की जटिलताओं को सुलझाने में मदद करते हैं।  हरे पेड़ न काटने तथा हर जीवित प्राणी के प्रति दया भाव रखने का उनका सिद्धांत समग्र मानवता के विकास व जीव संरक्षण तथा प्रकृति संरक्षण का सिद्धांत है।  उनके सिद्धांत आने वाली पीढ़ियों को भी पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करते रहेंगे। 

कुलसचिव प्रो. विनोद छोकर ने कहा कि गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार गुरु जम्भेश्वर महाराज के सिद्धांतों पर चलते हुए युवाओं को एक नैतिक कौशलयुक्त तथा जिम्मेदार नागरिक बनाने का प्रयास कर रहा है। संस्थान के अध्यक्ष एवं सम्मेलन की संयोजक प्रो. किशना राम बिश्नोई ने बताया कि सम्मेलन में देश-विदेश से 130 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे।  दो दिन के इस सम्मेलन में कुल 10 सत्रों का आयोजन होगा।  

समारोह में सम्मेलन की विवरणिका 'रिफ्लेक्शंस' तथा 'संतवाणी : घर में घर की खोज' का विमोचन किया गया। उद्घाटन सत्र आरंभ होने से पूर्व मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता तथा अन्य अतिथियों ने विवि प्रांगण में पौधारोपण भी किया।