गहलोत और पायलट में संवाद
-कमलेश भारतीय
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच मीडिया चैनलों के माध्यम से रोचक संवाद सामने आ रहा है । जहां बागी सचिन पायलट के तेवर कुछ ढीले पड़े हैं , वहीं अशोक गहलोत आक्रामक हो गये हैं । अशोक गहलोत का आरोप है कि उनका उपमुख्यमंत्री ही सरकार अस्थिर करने में लगा था और बीस करोड़ रुपये की डीलिंग के सबूत हैं । भाजपा के साथ मिल कर सरकार गिराने के फेर में थे सचिन । वे मुंह में सोने की छुरी लेकर पैदा हुए और उनकी रगड़ाई नहीं हुई यानी संघर्ष नहीं करना पड़ा जो वे पिछले बयालिस साल से करके यहां तक पहुंचे हैं । उधर सचिन का साफ साफ कहना है कि वे भाजपा में नहीं जा रहे और न ही किसी भाजपा नेता के सम्पर्क में हैं । वे तो मुख्यमंत्री को जनता से किए वादे याद दिला रहे थे लेकिन उनकी बात सुनी नहीं जा रही थी । वे तो कांग्रेस में ही हैं ।
रणदीप सुरजेवाला फिर सामने आते हैं और कहते हैं कि उन्हें चार पांच दिन तक बुलाया जाता रहा । दो दिन तक वे विधायक दल की बैठक में नहीं आए । यदि वे भाजपा में नहीं जाना चाहते तो घर वापसी करने से पहले हरियाणा में भाजपा की मेजबानी से मुक्त क्यों नहीं हो जाते ? सीधे कांग्रेस हाईकमान के पास आएं और बातचीत के माध्यम से अपनी समस्याएं रखें और उन्हें पहले की तरह पूरा मान सम्मान दिया जायेगा ।
एक तरफ कहा जा रहा है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी मनाने की कोशिश की और यह बात भी निकल कर आ रही है कि राहुल ने यहां तक भरोसा दिया कि आखिरी डेढ़ साल तुम ही मुख्यमंत्री होंगे लेकिन सचिन टस पे मस नहीं हुए । ज़रा नहीं पिघले और अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली में बंटे रहने के बावजूद न राहुल , न सोनिया गांधी और न ही प्रियंका गांधी से मिलने की कोई जहमत उठाई । बस अड़े और डटे रहे । लौटे ही नहीं । अब राहुल के तेवर देखिए कि युवा कांग्रेसियों को संबोधित करते कह दिया कि जिसे पार्टी में रहना है वह रहे , नहीं तो जाए । अब सचिन के लिए राह मुश्किल हो गयी । लौटना कैसे होगा ?
भाजपा मज़े ले रही है लेकिन उसके भी किरकिरी ही हुई है । जहां भाजपा सचिन पायलट की उड़ान पर अपना हवाईजहाज राजस्थान में लैंड करने की सोच रही थी , वहीं अशोक गहलोत एक बार तो संभल गये । भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी सचिन पायलट का हवाईजहाज भाजपा की पिच पर उतारने का विरोध किया और विरोध जताने बैठक में भी नहीं आई । यह सही है कि वसुंधरा राजे क्यों चाहेगी कि पायलट उसकी सत्ता को चुनौती दें भाजपा में आकर । भाजपा अब फ्लोर टेस्ट की मांग भी नहीं कर,रही । तो क्या सचिन का मुख्यमंत्री बनने का सपना फिलहाल तार तार हो गया है ? मीडिया भी अब अपने दूसरे कामों में लग गया । यह मैच अब रोमांचक नहीं रहा । हरियाणा के होटल में शायद उतनी गर्मजोशी से मेजबानी भी न हो रही हो और कहीं सारा बिल सचिन को ही न थमा दिया जाये ।
जहां तक कांग्रेस की बात है इसमें युवा पीढ़ी बनाम पुरानी पीढ़ी की बहस चलाने की मीडिया ने चाल चली । फिर भी कांग्रेस को युवा नेताओं की आशाओं व उम्मीदों को समझना चाहिए नहीं तो सचिन के माध्यम से यह बगावत कभी आने वाले दिनों में भी जोर पकड़ सकती है । दूसरे राज्यों मैं भी कोई न कोई संवाद युवाओं से करना चाहिए ।