दिलीप कुमार पाण्डेय की पुस्तक `रचनाशीलता का गणित' (समीक्षात्मक लेख) आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए करती है प्रेरित
कवि, समीक्षक और लेखक के तौर पर जाने जाते दिलीप कुमार पाण्डेय की नई पुस्तक `रचनाशीलता का गणित' (समीक्षात्मक लेख) पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। 191 पृष्ठों की इस पुस्तक में विभिन्न लेखक-लेखिकाओं की पुस्तकों पर लेखक द्वारा लिखित समीक्षात्मक लेख प्रकाशित किये गए है। पुस्तक को पांच खंडों में विभाजित किया गया है: काव्य संग्रह, प्रबंध काव्य, दोहा/क्षणिका/कुण्डलिया/ग़ज़ल संग्रह, उपन्यास और कहानी/लघुकथा संग्रह।
-मनोज धीमान।
कवि, समीक्षक और लेखक के तौर पर जाने जाते दिलीप कुमार पाण्डेय की नई पुस्तक `रचनाशीलता का गणित' (समीक्षात्मक लेख) पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। 191 पृष्ठों की इस पुस्तक में विभिन्न लेखक-लेखिकाओं की पुस्तकों पर लेखक द्वारा लिखित समीक्षात्मक लेख प्रकाशित किये गए है।
पुस्तक को पांच खंडों में विभाजित किया गया है: काव्य संग्रह, प्रबंध काव्य, दोहा/क्षणिका/कुण्डलिया/ग़ज़ल संग्रह, उपन्यास और कहानी/लघुकथा संग्रह।
जिन लेखकों की पुस्तकों पर समीक्षात्मक लेख प्रकाशित किये गए हैं उनके नाम इस प्रकार है:प्रो मोहन सप्रा, रंजीता सिंह `फ़लक', रामपाल श्रीवास्तव `अनथक', प्रियंवदा पाण्डेय, सीमा भाटिया, डॉ रश्मि खुराना, डॉ विनोद कुमार, सरला भारद्वाज, अतुल कुमार शर्मा, मनमोहन बरकोटि `तमाचा लखनवी', डॉ शशिकला लढ़िया, डॉ प्रेमलता त्रिपाठी, डॉ जयप्रकाश तिवारी, शरद कुमार पाण्डेय `शंशाक', डॉ ज्ञान प्रकाश `पीयूष', शिव कुमार `चंदन', ज्ञानेंद्र पाण्डेय, डॉ अजय त्रिपाठी `वाक़िफ़', मैत्रेयी पुष्पा, डॉ हंसा दीप, डॉ अजय शर्मा, मधुर कुलश्रेष्ठ, अजय सिंह राणा, डॉ धर्मपाल साहिल, अजय शर्मा, विकेश निझावन, सुरेश बरनवाल, डॉ मनोज प्रीत, रामनगीना मौर्य, डॉ जवाहर धीर, शैलजा कौशल कोछड़, मनोज धीमान और आई.जे.नाहल।
वर्तमान युग में जबकि पाठकों के पास पुस्तक पढ़ने के लिए समय का भारी अभाव है या यूं कहें कि बेहद उदासीनता है, लेखक ने 33 पुस्तकों को न केवल पढ़ा, बल्कि उन पर विस्तृत तौर पर समीक्षात्मक लेख भी लिखे। लेखक यहीं नहीं रुका बल्कि उसने इन लेखों पर `रचनाशीलता का गणित' नामक पुस्तक भी प्रकाशित करने का निर्णय लिया। सबसे बड़ी और सराहनीय बात यह रही कि लेखक ने सभी लेखक-लेखिकाओं को को पुस्तक की एक-एक लेखकीय प्रति भी सप्रेम भेंट की है।
दिलीप कुमार पाण्डेय ने पुस्तक के प्राक्क्थन में अपने अनुभव का निचोड़ कुछ इस तरह ब्यान किया है -"पुस्तकों को पढ़ने के पश्चात उनका सम्यक विवेचन करते हुए समीक्षात्मक टिप्पणी करने का प्रयास किया गया है। साहित्य केवल समाज का दर्पण ही नहीं होता संवेदना के संचार में महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा करता है। समकालीन हिंदी साहित्य जगत में आज के बदलते परिप्रेक्ष्य में लेखकों ने समय व समाज में हो रहे परिवर्तनों को रेखांकित करने का प्रयास किया है"।
डॉ ओंकारनाथ द्विवेदी, डॉ तरसेम गुजराल और डॉ लेखराज शर्मा को समर्पित इस पुस्तक का प्रकाशन आस्था प्रकाशन गृह द्वारा किया गया है और पुस्तक का मूल्य 325 रुपए है। प्रत्येक समीक्षात्मक लेख के साथ पुस्तक का कवर और सम्बन्धित लेखक का चित्र प्रकाशित किया गया है। पुस्तक की साज-सज्जा प्रशंसनीय है। पहली नज़र से देखने पर ही पाठक का मन पुस्तक पढ़ने को लालायित हो जाता है। पुस्तक किसी दस्तावेज़ से कम दिखाई नहीं देती है। साहित्य का अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों के लिए पुस्तक बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।
दिलीप कुमार पाण्डेय द्वारा किये गए इस महत्वपूर्ण व सराहनीय कार्य से न केवल लेखक-लेखिकाओं को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि नए रचनाकारों को भी बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त होगा। इस पुस्तक से कोई भी साहित्य की गहरी समझ भी विकसित कर सकता है। समीक्षात्मक लेखन की कला में पारंगत होने में भी यह पुस्तक सहायक हो सकती है। पुस्तक न केवल पाठकों को समीक्षा की प्रक्रिया से परिचित कराती है, बल्कि उन्हें आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए प्रेरित भी करती है। अंत में अगर यह कहा जाये कि इस पुस्तक को साहित्यिक अध्ययन के लिए एक अमूल्य साधन माना जा सकता है, तो गलत न होगा। दिलीप कुमार पाण्डेय को इस पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई। आशा है कि वे भविष्य में भी ऐसी पुस्तकों का रहेंगे जिन के लिए गहरे अध्ययन व सहस की आवश्यकता होती है। पुस्तक में प्रकाशित समीक्षात्मक लेखों का लेखा-जोखा पाठक बेहतर ढंग से कर सकते हैं। आशा है यह पुस्तक साहित्य जगत में न केवल चर्चित होगी बल्कि अपनी पैठ बनाने में भी सफल होगी।