समाचार विश्लेषण/ऐना सच्च न बोल कि कल्ला रह जावें
आखिरकार कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वायनाड से पूर्व सांसद राहुल गाधी ने अपना सरकारी बंगला खाली कर दिया और मां सोनिया गांधी के बंगले में शिफ्ट हो गये । सूरत कोर्ट से जो फैसला आया उससे उन्हें जो सजा मिली , उसके चलते सरकारी बंगला भी खाली करने का नोटिस आ गया ।
-*कमलेश भारतीय
आखिरकार कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वायनाड से पूर्व सांसद राहुल गाधी ने अपना सरकारी बंगला खाली कर दिया और मां सोनिया गांधी के बंगले में शिफ्ट हो गये । सूरत कोर्ट से जो फैसला आया उससे उन्हें जो सजा मिली , उसके चलते सरकारी बंगला भी खाली करने का नोटिस आ गया । उनकी संसद सदस्यता रद्द हो जाने के बाद वे बंगले के अधिकारी नहीं रहे थे । राहुल गांधी इस बंगले में उन्नीस साल तक रहे और जाते समय जनता का हार्दिक धन्यवाद किया कि उन्हें इस बंगले में उन्नीस साल रहने का अधिकार व अवसर प्रदान किया । राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें सच बोलने की सजा दी गयी है अंर ने सच बोलते रहेंगे चाहे कितनी भी कीमत चुकानी पड़े ! इस तरह राहुल गांधी की संसद व सरकारी बंगले से विदाई हो गयी ।
इस समय मुझे पंजाबी के प्रसिद्ध कवि सुरजीत पातर की पंक्तियाँ बहुत याद आ रही हैं :
ऐना सच न बोल
कि कल्ला रह जावें
दो चार बंदे छड्ड ला
मोड्डा देन लई !
इतना सच न बोल कि कोई साथ देने के लिये बचे ही न ! कोई अंतिम समय तक साथ ही न देने वाला रहे ! लेखिका दुर्गा भागवत ने भी कहा था कि सच बोलने की कीमत चुकानी पड़ती है । सो राहुल गांधी ने भी चुकाई ।
सच बोलने की कीमत तो स्वतंत्रता सेनानियों ने भी चुकाई और अंडमान निकोबार जैसी काला पानी की सजायें भोगी । आपातकाल में जेलों मे ठूंस दिये गये अनगिनत नेताओं ने भी चुकाई । तब वे भी आपातकाल का विरोध ही तो कर रहे थे जिसकी भारी कीमत बाद मे कांग्रेस को भी चुकानी पड़ी जब इस चुनाव की आंधी में इंदिरा गांधी , बंसी लाल जैसे दिग्गज भी धराशायी हो गये थे । प्रचंड बहुमत से जनता पार्टी ने सरकार बनाई थी । आपातकाल के काले साये को भाजपा ने बहुत भुनाया । यहां तक कि इन नेताओं और कुछ कार्यकर्त्ताओं को स्वतंत्रता सेनानियों के बराबर सम्मानपत्र दिये गये । खुद लालकृष्ण आडवाणी रोहतक जेल को देखने आये थे , जहां उन्हें रखा गया था । पर अब लालकृष्ण आडवाणी को ही निर्वासन जैसा दर्द भोगना पड़ रहा है । तो क्या आपातकाल का सच और इसके परिणाम भूल गये ? इससे कोई सबक नहीं लोगे ? सच बोलने की कीमत तो पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी चुका रहे हैं ! तभी तो प्रसिद्ध लेखक उपेंदूरनाथ अश्क को यह पंक्तियाँ बहुत प्रिय थीं :
चौपट रहा तां कुज्ज न बचदा ए
सच कहां तां बांभड़ मचदा ए
मुद्दे पर राहुल गांधी सवाल उठा रहे थे और बदले में संसद से बाहर कर दिये गये या यह महज संयोग है सूरत कोर्ट का फैसला ? इसके बाद भी संसद ठप्प रही और भाजपा नेता कह रहे हैं कि राहुल गांधी की संसद सदस्यता को लोकतंत्र की लड़ाई बनाना गलत है । यह फैसला तो अहंकार को तमाचा है । अहंकार और लोकतंत्र का टकराव सहज ही हो गया है ? नहीं ! ऐसा लगता तो नहीं ! पर सच की कीमत तो अब आठ साल चुकानी पड़ेगी । हम तो गालिब के शब्दों में इतना ही कहेंगे :
या रब्ब वो न समझे हैं , न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको या मुझको जुबां और !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।