दोस्ती का रंग

दोस्ती का रंग

झगड़ों के धागों से बुनी,
हमारी यह प्यारी कहानी है।
रूठने-मनाने के पल,
दोस्ती की यही निशानी है।

तकरार में भी छुपा है प्यार,
शब्दों में नहीं, दिल का इज़हार।
हंसते-खेलते बीतते दिन,
गिले-शिकवे रह जाते वहीं।

कभी तू मान, कभी मैं झुक जाऊं,
यही तो रिश्तों की बुनियाद है।
झगड़ों के बावजूद मुस्कान है,
दोस्ती अब भी बरकरार है।

साथ चलें तो हर राह आसान है,
हर मुश्किल का हल भी आसान है।
यही तो दोस्ती का सच्चा राग है,
दोस्ती तो सुहाना सा फाग है।

( ललित बेरी)